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विषय – श्री गणपति मूर्ति विसर्जन क्यो ?
पानीपत :- उत्तरभारत के प्रख्यात ज्योतिषाचार्य आयुर्वेदिक शास्त्री अस्पताल पानीपत के संचालक डॉ. महेंद्र शर्मा आज श्री गणपति विसर्जन के बारे में सनातनधर्म पद्धति के बारे में चर्चा करते हुए बताया कि गणपति विसर्जन विषय को हम गत 3 वर्षों से सोशल मीडिया के माध्यम से उठा रहा है , जो आज पूर्णतया आन्दोलित हो चुका है कि मूर्तियों का विसर्जन नहीं होना चाहिए। इस के कई कारण है प्रथम तो वैदिक तथ्यों से ही चर्चा प्रारम्भ करें कि भाद्रपद शु ४ को मध्याह्ने रिद्धि सिद्धि के दाता गणपति भगवान का प्राकट्योत्सव होता है 10 दिन पर्यन्त तक अनन्त चतुर्दशी तक यह उत्सव चलता है। विसर्जन की बात करें तो हम गणपति भगवान को पुत्र रूप में अपने यहां प्रकट करते हैं और गरुड़ पुराण में यह लिखा है “पुत्र” शब्द का अर्थ दिया गया पिता व पित्रों को ‘पु’ नामक नरक से त्राण दिलवाने वाला क्या हम सभी कभी भी यह चाहते हैं कि कोई पिता अपने पुत्र को निष्प्राण कर के जल प्रवाहित करे। दूसरा तथ्य यह है कि हम सनातन धर्मी जब भी कोई अनुष्ठान करते हैं तो सभी देवताओं को विनयपूर्वक आवाहित करते हैं। यज्ञ अनुष्ठान की पूर्णाहुति के पश्चात जब सभी आवाहित देवी देवताओं को बिदाई देते समय ब्राह्मण यह श्लोक पढ़ते हैं कि मेरे निवास पर गणपति भगवान और आदि शक्ति सदैव निवास करें। चाहे मूर्ति मृतिका की हो या गौ गोबर की चाहे 1 इंच की हो या 1 फ़ीट की जब हम उक्त श्लोकों का पूजा में उच्चारण करते हैं तो उन का विच्छोह नहीं करना चाहिये। धर्म नियमन की स्थापना के सर्वप्रथम स्वयं कुछ ऐसा करना चाहिये जो दृष्टांत बन सके। कुछ भी मैंने जीवन में एक स्थिति ऐसी भी देखी है जब 10 वर्ष पूर्व अपनी बिरादरी के श्मशान घाट में स्थापित श्री शिव मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ था तो उसमें श्री शिव मन्दिर की स्थापना हमारे परिवार ने करवाई थी जिसमें सभी विग्रहों की प्राण प्रतिष्ठा हुई थी। अब पुराने श्री शिव मन्दिर में भी यही मूर्तियां थी तो उनका क्या करें, अपनी बिरादरी कोई भी भक्त विग्रहों को निष्प्राण कर के विसर्जन यज्ञ का यजमान नहीं बनना चाहता था, तब भी यही विसर्जन की ही समस्या थी , सभी डरते थे कि यह हम नहीं कर सकते तो संस्था के सदस्य फिर हमारे परिवार में आये और समस्या बताई तो हमारे परिवार ने ही उन मूर्तियों को निष्प्राण करने के प्रायश्चित यज्ञ करवाया था क्यों कि हम को ही वैदिक अधिकार था कि इस मन्दिर में इन देवताओं के श्रीविग्रहों की स्थापना करवाई थी, यह पूरा मूर्ति स्थापना और निष्क्रमण का पूजाकर्म पूज्य प0 श्री सत्य प्रसाद जोशी जी ने सम्पन्न करवाया था, साक्ष्य चाहिये तो श्मशान के संस्था से पूछ सकते हैं और मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा में आजकल जींद शहर के विधायक श्री कृष्ण मिढा भी यजमान थे क्यों कि इनके परिवार ने भी विशाल शिव की मूर्ति दान दी थी। यह है मूर्तियों के स्थापन और विसर्जन का नियम। यदि आप भी ऐसा कर सकते हों मूर्ति विसर्जन से पूर्व उक्त देवता की मूर्ति को प्रतिष्ठित कर सकते हों तो पुराने विग्रहों का अवश्य विसर्जन करें अन्यथा यह गलत नियमन है जिसका हम अन्धा अनुकरण करते आ रहे हैं।
इसी तरह से सत्य को प्रकट करते रहें ताकि धर्म जीवन्त हो, मैंने और भी कुछ विषय चुन रखे हैं जिन के गलत नियमन से धर्म प्रभावित है जैसे राहु काल काल सर्प दोष यह उत्तर भारत में प्रभावी नहीं है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी जब पंचांग के नियम से बाहर जाती है तो वह श्री कृष्ण जन्माष्टमी न रह कर श्री कृष्ण जन्मोत्सव नवमी हो जाती है और सनातन धर्म का एक वर्ग बलात अपने वैष्णव नियमन से उदया तिथि की वकालत करता हुआ हम से भूल करवाता है। वर्ष भर दो या तीन एकादशी पर्व भी अपने उदया तिथि के नियम से यही वर्ग दो बार मनवाता है। तुलसी व्रत भी केवल हरि प्रबोधिनी एकादशी को प्रदोष काल में मनवाने की वेदाज्ञा है और हम पूर्णिमा तक मनाते है और दशहरा पर 40 दिवसीय मूर्ति धारण यज्ञ गुरु पूर्णिमा का वास्तविक महत्व केवल आषाढ़ पूर्णिमा के दिन है इस को कुछ लोग 4 दिन पहले से मनवाना प्रारम्भ कर देते हैं और भक्त जन दुहाई देते हैं कि महाराज के सेवक बहुत हैं। यदि भक्तजनों को स्वामी जी से इतना ही लगाव है तो गुरु पूर्णिमा में गुरु पूजा समारोह का कार्यक्रम किसी भी केंद्र भूमि पर होना चाहिये जहां सब का पहुंचना सुलभ हो अन्यथा तो यह वेदाज्ञा और पंचांग नियमन का उल्लंघन ही है। धीरे धीरे सत्य अवश्य प्रकट होगा। इन विषयों पर मुझे बहुत आलोचना भी सहनी पड़ती है तो परोक्ष रूप से घोर आलोचक है वही कहीं न कहीं प्रशंसक भी बन जाते हैं जब किसी विषय पर अनिर्णय की स्थिति होती है। ब्रह्मकुल में जन्म हुआ है तो धर्म के कठोर मार्ग का पथिक तो बनना ही होगा अन्यथा ब्राह्मणत्व ही निष्फल हो जाएगा।
क्षमा सहित – आचार्य डॉ. महेन्द्र शर्मा “महेश” दूरभाष : 92157-00495 पानीपत।