हिन्दी उपभोक्ता के व्यवहार की भाषा बन चुकी है : कुलपति

हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
दूरभाष – 94161-91877

साहित्य समाज का दर्पण: डॉ. राकेश बी. दूबे।
हिन्दी ने आजादी दिलाने में अहम् भूमिका निभाई : डॉ. चन्द्र त्रिखा।
हिंदी भाषा और स्वाधीनता आंदोलन दोनों पर्यायवाची : लाल चन्द्र गुप्त मंगल।
कुवि के हिन्दी विभाग, युवा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम विभाग तथा इंस्टीट्यूट ऑफ इन्टीग्रेटिड एण्ड ऑनर्स स्टड़ीज के संयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन।

कुरुक्षेत्र, 14 सितम्बर :- कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा ने कहा कि हिन्दी एक वैज्ञानिक भाषा है क्यांकि हिन्दी जैसी बोली जाती है वैसे ही लिखी भी जाती है। सम्पर्क भाषा, संवाद या संख्या की दृष्टि से हिन्दी सबसे ज्यादा प्रयोग होने वाली भाषा है। वे मंगलवार को कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के सीनेट हॉल में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग, युवा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम विभाग तथा इंस्टीट्यूट ऑफ इन्टीग्रेटिड एण्ड ऑनर्स स्टड़ीज के संयुक्त तत्वावधान में आजादी का अमृत महोत्सव कार्यक्रमों की श्रंखला में भारत की आजादी में साहित्यकारों का योगदान विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में बतौर मुख्यातिथि बोल रहे थे। इससे पहले कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा, कुलसचिव डॉ. संजीव शर्मा, मुख्य वक्ता डॉ. राकेश बी. दूबे विशेष कार्य अधिकारी राष्ट्रपति सचिवालय नई दिल्ली, डॉ. सुधान्शु शुक्ला पूर्व अध्यक्ष आईसीसीआर हिन्दी पीठ वारसॉ विश्वविद्यालय पोलैंड, हरियाणा साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. चन्द्र त्रिखा, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पूर्व हिन्दी अध्यक्ष प्रो. लाल चन्द गुप्त मंगल तथा बी.आर. अम्बेडक़र अध्ययन केन्द्र के सह-निदेशक डॉ. प्रीतम सिंह ने मॉं सरस्वती की प्रतिमा पर दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इस मौके पर कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा ने डॉ. सुधान्शु शुक्ला द्वारा रचित तीन पुस्तकों का विमोचन भी किया।
कुलपति प्रो. सोमनाथ ने कहा कि हिन्दी वैज्ञानिक भाषा है। वर्तमान में हिन्दी उपभोक्ता के व्यवहार की भाषा बन चुकी है। आने वाले दिनों में हिन्दी वैश्विक रूप धारण कर पूरे विश्व में प्रसारित एवं प्रचारित होगी। अभी जितनी भी क्षेत्रीय भाषाएं हैं वो सभी हिन्दी से मिली जुली हैं। हिन्दी हमारी राजभाषा है। अभी कम्प्यूटर में हिन्दी लिपि का विकास हुआ है साथ ही हिन्दी भाषा का विकास हुआ है। उन्होंने कहा कि अनेक राज्यों के अंदर, कार्यालयों में हिन्दी का प्रयोग होना शुरू हो चुका है। नई शिक्षा नीति 2020 के अंतर्गत मातृभाषा में पढ़ाए जाने पर जोर दिया गया है। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के शैक्षणिक पाठ्यक्रम भी हिन्दी व अंग्रेजी माध्यम में चलाए जा रहे हैं। लॉ व इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों को भी हिंदी भाषा में चलाए जाने का प्रयास किया जा रहा है। कुवि के विधि विभाग ने इसका श्रेय लेते हुए अपने विभाग में विद्यार्थियों को प्रश्न पत्र हिन्दी व अंग्रेजी दोनों माध्यम में देने का संकल्प लिया है। पुस्तकालय में इन कोर्सो की हिंदी माध्यम की पुस्तकें मंगवाकर रखा जाएगा।
कुलपति ने कहा कि नई शिक्षा नीति के अंतर्गत विद्यार्थी अंग्रेजी पढने के लिए बाध्य नहीं होंगे, उन्हें अंग्रेजी पढनी है तो अपनी इच्छानुसार भाषा चुन सकते हैं। आजादी दिलाने में व क्रान्तिकारियों, स्वतंत्रता सेनानियों के अंदर देशप्रेम व जोश भरने के कार्य में हिन्दी का अहम् रोल रहा है। संवाद के लिए हिंदी से अच्छी कोई भाषा नहीं है। आजकल कई टीवी चैनलों ने भी पब्लिक डिमांड को देखते हुए अपने कई अंग्रेजी भाषा के चैनलों को हिन्दी में डब किया है और वो प्रसारित हो रहे हैं जिनमें डिस्कवरी, नेशनल ज्योग्राफिक चैनल प्रमुख हैं।
कुलपति ने कहा कि आज बहुत से देशों में हिंदी सिखाई जा रही है। 45 से अधिक देशों में हिन्दी में अध्ययन व अध्यापन कार्य चल रहा है। हिंदी का भविष्य आने वाले समय में उज्ज्वल है। शायद ही कोई दूसरी भाषा होगी जो दूसरी भाषा को अपने में समाहित करती होगी। इसका अध्ययन करने में हमें गर्व करना चाहिए।
मुख्य वक्ता डॉ. राकेश बी. दूबे विशेष कार्य अधिकारी राष्ट्रपति सचिवालय नई दिल्ली ने कहा कि साहित्य को समाज का दर्पण भी कहा जाता है। पत्रकारिता का कार्य जोखिम भरा कार्य है। पत्रकारिता ने स्वतंत्रता में परतंत्रता की बेडिया काटने का कार्य किया। पत्रकारों/साहित्यकारों ने हिम्मत नहीं हारी उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों को जगाने का कार्य किया। भारत को भारत माता के पद पर प्रतिष्ठित किया। स्वराज के बिना भारत की गति नहीं है।
हरियाणा साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. चन्द्र त्रिखा ने कहा कि हिन्दी ने आजादी दिलाने में अहम् भूमिका निभाई व राष्ट्रीय चेतना जगाई। साहित्यकारों ने स्वतंत्रता की लौ जलाए रखी। ब्र्रिटिश हुकूमत में सेंसर बोर्ड कड़ा था। सम्पादक बनना कठिन था। समाचार पत्र यदि स्वाधीनता संग्राम के दिनों में छपता था और उसमें कुछ सत्ता के खिलाफ होता था तो अखबारों की प्रतियां जब्त कर ली जाती थी, सम्पादक को जेल भेजा जाता था तथा उन्हें यातनाएं दी जाती थी। उस वक्त कलम ने सशक्त भूमिका निभाई। आजादी के जज्बे को जन-जन तक पहुंचाने का काम किया। आज संचार क्रान्ति में हिंदी की अहम् भूमिका है। हिंदी के समाचार पत्रों की संख्या 6 गुना अधिक है। सूचना विस्फोट के युग में आम आदमी को सूचना चाहिए और वो यदि हिंदी भाषा में मिले तो ज्यादा अच्छा होगा। हिन्दी का व्यापक बाजार है। हिंदी में उपभोक्ता की संख्या ज्यादा मिल सकती है।
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पूर्व हिन्दी अध्यक्ष प्रो. लाल चन्द गुप्त मंगल ने कहा कि हिंदी भाषा और स्वाधीनता आंदोलन दोनों पर्यायवाची हैं। दोनों का गहरा सम्बंध है। इसके बिना दूसरे की कल्पना भी नहीं की जा सकती। 10 मई 1857 को हरियाणा के अम्बाला व उधर मेरठ से जब स्वाधीनता आंदोलन की चिंगारी उठी तो उस समय भारतेन्दु हरिशचंद्र केवल 7 वर्ष के थे। वे 1850 को जन्में थे और उनकी मृत्यु सन् 1885 में 35 वर्ष की अल्पायु में हो गई थी। इतनी अल्पायु में ही उन्होंने 98 दोहों के माध्यम से स्वाधीनता आंदोलन को गति देने का कार्य किया। यदि हम उनके यह 98 दोहें पढ़ ले तो हमें पूरे स्वाधीनता आंदोलन के बारे में पता लग सकता है। उन्होंने कहा कि हिंदी पत्रिकाओं ने भी आजादी दिलवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रथम सत्र में हिंदी विभाग के प्रो. डॉ. सुभाष ने सभी का धन्यवाद किया।
दूसरे सत्र में डॉ. सुधान्शु शुक्ला पूर्व अध्यक्ष आईसीसीआर हिन्दी पीठ वारसॉ विश्वविद्यालय पोलैंड ने कहा कि भाषा हमारा संस्कार एवं संस्कृति है। उन्होंने कहा कि हिन्दी केवल मातृभाषा नहीं है बल्कि यह हमारी अस्मिता एवं संस्कृति का प्रतीक है। जो हिन्दी पढ़ाए केवल वही हिन्दी प्रेमी नहीं अपितु देश का प्रत्येक नागरिक, पत्रकार, साहित्यकार, व्यापार वर्ग है। उन्होंने युवा पीढ़ी विद्वतजनों के आचरण, भाषा, कुर्बानी को याद कर संभालकर रखने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि जो राष्ट्र अपनी संस्कृति को नहीं संभाल सकते उसका भविष्य सुरक्षित नही रह सकता।
कुवि के बी.आर. अम्बेडक़र अध्ययन केन्द्र के सह-निदेशक डॉ. प्रीतम सिंह ने कहा कि राष्ट्रवाद की परम्परा अत्यन्त प्राचीन है जिसका सीधा सम्बन्ध भारत की जनता के भावों से है, सीमाओं से नहीं। आवश्यकता है भारतीय इतिहास को पारदर्शी शोधात्मक दृष्टि से फिर से पुनः लेखन की ताकि भारत की भावी पीढ़ी इतिहास की सच्चाई से रूबरू हो सके।
मंच का संचालन युवा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम विभाग के निदेशक डॉ. महासिंह पूनिया ने किया। इस मौके पर शिक्षक, शोधार्थी व विद्यार्थी मौजूद रहे। संगोष्ठी को तीन सत्रों में आयोजित किया गया। संगोष्ठी के लिए 60 से अधिक शोध पत्र प्राप्त हुए जिनमें से स्तरीय शोध पत्रों का प्रस्तुतिकरण हुआ। साहित्य अकादमी की ओर से घोषणा की गई की संगोष्ठी पर आधारित शोध पत्रों पर अकादमी पुस्तक प्रकाशित करेगी।
संगोष्ठी में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. संजीव शर्मा, कुवि के अधिष्ठाता छात्र कल्याण प्रो. अनिल वशिष्ठ, प्रो. बिन्दु शर्मा, कुटा प्रधान डॉ. परमेश कुमार, सचिव डॉ. विवेक गौड़, डॉ. राजपाल, डॉ. संजीव गुप्ता, डॉ. जसविन्द्र, डॉ. कामराज, प्रो. भीम सिंह, डॉ. गुरचरण सिंह, डॉ. नवनीत बहल, डॉ. रामचन्द्र, डॉ. अशोक शर्मा, प्राचार्य डॉ. कामदेव झा सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
विदेशों से भी प्राप्त हुए हिंदी दिवस पर बधाई संदेश।
कुवि के युवा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम विभाग के निदेशक डॉ. महासिंह पूनिया ने बताया कि विदेशों में भी हिंदी का बहुत महत्व है। विदेशों में रहने वाले भारतमूल के लोग व विदेशी लोगों में भी हिंदी में राष्ट्रीय संगोष्ठी के आयोजन के अवसर पर अपने बधाई संदेश भेजे हैं जिनमें सिंगापुर से अराता झा श्रीवास्तव, बुल्गारिया से वान्या गांचेवा व मोना कौशिक, कैलिफोर्निया से नीरू गुप्ता, बेल्जियम से कपिल कुमार, जापान से रमा शर्मा, जर्मनी से केथरीन, यूक्रेन से एलीना निश्चल, यूके से जया वर्मा, मारीशस से विनय गोडारी, श्रीलंका से अनुषा निलामिनी शामिल हैं। इस अवसर पर संगोष्ठी में विदेशी हिन्दी विद्वानों के संदेशों पर बनी एक लघु फिल्म भी दिखाई गई।
हिन्दी दिवस पर तीन पुस्तकों का हुआ विमोचन
हिन्दी दिवस के अवसर पर सीनेट हॉल में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में डॉ. सुधांशु शुक्ला द्वारा लिखित तीन पुस्तकों, अंत हीन विमर्शों का पुंज, प्रतीक्षा एक कर्त्तव्य गाथा, बीएल गौड़ का लोकगीत पुस्तकों का विमोचन कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सोमनाथ सचदेवा, हरियाणा साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. चन्द्र त्रिखा सहित सभी विद्वानों ने किया।

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