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कुरुक्षेत्र में सूर्य ग्रहण के अवसर पर राधा रानी का हुआ था श्री कृष्ण से मिलन : बाबा बलिया।
भगवान श्री कृष्ण की कर्म भूमि कुरुक्षेत्र में भी बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है राधाष्टमी पर्व : डॉ. स्वामी चिदानंद ब्रह्मचारी।
राधा के वियोग के बाद श्रीकृष्ण ने लिए था ये बड़ा फैसला।
हरियाणा कुरुक्षेत्र : – राधाष्टमी पर्व भादों माह शुक्लपक्ष की अष्टमी को श्रीराधा अष्टमी के रूप में मनाया जाता है.जो कि इस बार यह त्योहार आज 14 सितम्बर मंगलवार को शिशु अनंत आश्रम बाबा बलिया जी महाराज ओडिसा के मार्गदर्शन में कुरुक्षेत्र की पावन भूमि श्री गीता भवन ट्रस्ट कुरुक्षेत्र में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। शिशु अनंत आश्रम ओडिसा आश्रम के व्यवस्थापक बाबा बलिया जी महाराज के शिष्य डॉ. स्वामी चिदानंद ब्रह्मचारी भागवताचार्य ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार कृष्ण के जन्मदिन भादों कृष्णपक्ष अष्टमी से पन्द्रह दिन बाद शुक्लपक्ष की अष्टमी को दोपहर अभिजित मुहूर्त में श्रीराधा जी राजा वृषभानु की यज्ञ भूमि से प्रकट हुई थीं। राधाष्टमी का पर्व जीवन में प्रेम के महत्व को बताने वाला पर्व है। राधा और कृष्ण का प्रेम सबसे पवित्र प्रेम माना गया है। राधा और कृष्ण के प्रेम के बारे में राधा और बांसुरी से था श्रीकृष्ण को अटूट प्रेम।
भगवान श्रीकृष्ण के बारे में ये कहा जाता है कि वे राधा और बांसुरी से अटूट प्रेम करते थे। जब राधा का अंत समय आया तो भगवान श्रीकृष्ण राधा से मिलने आए राधा अंत समय में बहुत कमजोर हो गईं, राधा की इस अवस्था को देख श्रीकृष्ण की आंखों में आंसू आ गए श्रीकृष्ण को देख राधा की आंखों में चमक आ गई दोनों एक दूसरे को काफी देर तक निहारते रहे और मथुरा में बिताए दिनों को याद करने लगे। राधा और कृष्ण पुरानी यादों में इस तरह से खो गए कि उन्हें समय का पता ही नहीं चला जब काफी देर हो गई तो श्रीकृष्ण ने राधा से कुछ मांगने के लिए कहा। राधा ने कुछ मांगने से साफ इंकार कर दिया। राधा ने कहा कि प्रभु आपने इतना सबकुछ दिया है कि अब उन्हें किसी भी चीज की कोई इच्छा नहीं है। तब राधा ने कहा कि कृष्ण बस मुझे तुम अपनी मुरली की धुन सुना दो।
श्रीकृष्ण ने राधा की इच्छा पूरी करने के बाद तोड़ दी बांसुरी।
राधा की इस इच्छा को पूरी करने के लिए श्रीकृष्ण ने तुरंत बांसुरी निकाली और बजाना शुरू कर दिया बांसुरी की धुन पर राधा आंख बंद कर मग्न हो गईं श्रीकृष्ण बांसुरी ही बजाते रहे उधर राधा ने बांसुरी की धुन सुनते हुए अपने प्राण त्याग दिए। राधा की मृत्यु से भगवान श्रीकृष्ण को बहुत दुख हुआ। श्रीकृष्ण की आंखों से आंसु की धारा बह निकली। श्रीकृष्ण राधा को अपनी बांहो में लेकर बहुत देर तक विलाप करते रहे। राधा के जाने का वियोग भगवान श्रीकृष्ण सहन नहीं कर सके और इसी वियोग में उन्होंने बांसुरी को तोड़ दिया और फिर कभी श्रीकृष्ण ने बांसुरी को अपने होठों से नहीं लगाया। डॉ. स्वामी चिदानंद ब्रह्मचारी ने बताया कि वैसे तो श्री कृष्ण जन्माष्टमी ओर राधाष्टमी का पर्व पूरे विश्व न में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है लेकिन कुरुक्षेत्र मथुरा और द्वारिका में इस पर्व को मनाने का अपना अलग ही महत्व है।
गौरतलब है कि पिछले कई वर्षों से शिशु अनंत आश्रम ओडिसा से बाबा बलिया जी व देश विदेश से बाबा जी के शिष्य भगत श्रद्धालु कुरुक्षेत्र आकर श्री गीता जी की जन्मस्थली ज्योतिसर में श्री गीता जी के सभी 18 अध्याय के साथ हवन व भण्डारे का आयोजन होता रहा है व श्री कृष्णा म्यूजियम में गीता संगोष्ठी भी होती रही पर इस बार कॅरोना महामारी के कारण सभी प्रोग्राम को स्थिगित कर बाबा जी के मार्गदर्शन में कुरुक्षेत्र के श्रद्धालुओं ने यह भूमिका निभाई इस अवसर पर प्रमुख रूप से षड्दर्शन साधुसमाज के राष्ट्रीय संगठन सचिव वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक , ज्ञान चंद शर्मा, पण्डित पंकज शुक्ला, अजय शुक्ला अशोक , ओम प्रकाश, संतोष व काफी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।