हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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कुरुक्षेत्र :- क्या क्या नहीं कर रहे हैं पैसे के लोभी।
नमक देश का खा रहे, शत्रुओं से निभातें हैं दोस्ती।
गुप्त सूचना देकर दगा देश से करते।
ऐसे जयचंद ही भारत मां से छल हैं करते।
क्या क्या नहीं कर रहे हैं पैसे के लोभी।
मिलावट का धंधा भी यहाँ बहुत किया जा रहा।
भारत की संतान के स्वास्थ्य का भी ध्यान न रहा।
मिलावटी खाद्य से प्रतिदिन मर जाते हैं बहुत लोग।
कुछ रुग्ण हो कर उठा रहे हैं जीवन का बोझ।
क्या क्या नहीं कर रहे हैं पैसे के लोभी।
नशे का कारोबार भी यहां बहुत पनप रहा।
मानव की धमनियों का रक्त श्वेत पड़ रहा।
युवाओं का भविष्य अंधकारमय हो रहा।
परिवार और समाज संकट का बोझा ढ़ो रहा।
क्या क्या नहीं कर रहे हैं पैसे के लोभी।
भ्रष्टाचार भी पैसे के लोभियों की देन है।
कर्तव्य से विमुख हुआ पैसे के लोभ में।
पैसा ही इनके लिए भगवान बन गया।
क्या क्या नहीं कर रहे हैं पैसे के लोभी।
पैसे से ही आज मानव का मूल्य हैं तोलते।
आदर्शों को छोड़ संचय धन और पाप का करते।
ऐसे लोग हैं ये जो जीते जी ही मरते।
क्या क्या नहीं कर रहे हैं पैसे के लोभी।
भगवान ने भेजा था मानव को सद्कर्मों के लिए।
कुकर्मों से भर लिया है पापों के घड़े।
अब कौन समझाए इन लोभी भेड़ियों को।
जिस दिन देश की जनता जाग जाएगी मुख छिपाने के लिए तुम्हे जगह न मिल पाएगी।
क्या क्या नहीं कर रहे हैं पैसे के लोभी।
देश रहेगा तो ही तू बचेगा, विश्वास खो दिया तो तू क्या करेगा।
जयचंद का नाम आज बुरा माना जाता है, पृथ्वीराज का आज भी सत्कार हुआ है।
क्या क्या नहीं कर रहे हैं पैसे के लोभी।
कविता रचयिता – डॉ. अशोक कुमार वर्मा हरियाणा पुलिस विभाग में उच्च अधिकारी है।