हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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कुरुक्षेत्र : – श्राद्ध से तृप्त हो कर पितृ गण हमारी सभी कामनाओं को पूर्ण करते हैं और आशीर्वाद देते हैं इसके अतिरिक्त श्राद्ध कर्ता से देवगण और समस्त पूर्वज संतुष्ट संतुष्ट होते हैं।
पितृपक्ष 21 सितंबर से शुरू हो चुके हैं और 6 अक्टूबर तक चलेंगे । इस पक्ष में पितर यमलोक से धरती पर आते हैं और अपने परिवार के आसपास विचरण करते हैं।
श्राद्ध के लिए उचित द्रव्य हैं – तिल, चावल, जौ, जल, मूल ( जड़युक्त सब्जी ) और फल। श्राद्ध में दूध, दही और घी पितरों के लिए विशेष तुष्टिकारक माने जाते हैं।
शास्त्रों से ये प्रमाणित होता है कि आत्मा मृत्यु के पश्चात पूर्व के स्थूल शरीर को छोड़कर शुक्ष्म शरीर के साथ नए स्थूल शरीर में प्रवेश करती है। जिसको हम पूर्वजन्म कहते हैं 84 लाख योनियों में मनुष्य योनि सर्वश्रेष्ठ होने के कारण सभी जीवात्माएं मनुष्य योनि में आना चाहती हैं परन्तु मनुष्य योनि प्राप्त करने के लिए उसको कुछ ऐसे कर्म करने पड़ते हैं जिसका पुण्य उसको मरने के पश्चात मिले और कुछ कर्म उसके वंशज करें जैसे श्राद्ध तर्पण इत्यादि ताकि उसके पूर्वजों को उत्तम योनि मिले और वो उसमें सुखी रहें या उनको मुक्ति मिले।
याद रखे श्राद्ध में पण्डित जी को एक दिन पहले निमंत्रण देवे ओर उचित दक्षिणा के साथ आने जाने का खर्चा भी देवे।
कायदे के मुताबिक जिस दिन पण्डित जी आपके घर का संकल्प किया हुआ अन्न ग्रहण करेंगे उस दिन का पण्डित जी द्वारा किया गया नित्यकर्म पूजा पाठ का पुण्य भी आपको प्राप्त होगा सो जब आप पण्डित जी का एक दिन का पुण्य अर्जित कर रहे है तो अपनी एक दिन की कमाई तो पण्डित जी को दक्षिणा में देनी बनती है।