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आकाश हॉस्पिटल में तीन महीने के शिशु की सफल जीवन रक्षक सर्जरी की गई।
हिसार 22 सितंबर :- जटिल जीवनरक्षक सर्जरी करते हुए आकाश हॉस्पिटल, द्वारका के डॉक्टरों ने मस्तिष्क और रीढ़ में दुर्लभ जन्मजात विकृति से पीडि़त तीन महीने के शिशु की जान बचा ली। बच्चे के जन्म के चार दिन बाद ही माता-पिता ने शिशु के कमर के पास हल्का जख्म महसूस किया। मस्तिष्क और रीढ़ की विस्तृत जांच और एमआरआई से स्पाइनल कॉर्ड में अपर्याप्त वृद्धि का पता चला जिस कारण स्पाइनल फ्लूइड में कई जगह से लीकेज हो रहा था। ऐसी स्थिति में एकदम किसी बड़े अस्पताल लेकर जाना चाहिए अन्यथा बच्चे में जानलेवा इन्फेक्शन हो सकता है। नवजात की गंभीर स्थिति को देखते हुए डॉक्टरों की टीम ने तत्काल एन आई सी यू में भर्ती कर इलाज शुरू कर दिया। बच्चे को सर्जरी के लिए ले जाने से पहले उसकी स्थिति की जांच के लिए अलग-अलग विभागों की टीम बुलाई गई। बच्चे को दो अलग-अलग सर्जरी की जरूरत थी। एक तो उसके स्पाइनल कॉर्ड में गड़बड़ी ठीक करने के लिए जबकि दूसरी सर्जरी अत्यधिक जमा हुए द्रव को बाहर निकालने के लिए की गई।
प्रोग्रामेबल वीपी शंटिंग के नाम से जाने जानी वाली एडवांस्ड चिकित्सा पद्धति का इस्तेमाल करते हुए सर्जरी करने में 5 – 6 घंटे लगे। सर्जरी के बावजूद बच्चे के सिर का आकार बढ़ता जा रहा था और बच्चे में दिमाग का दौरा भी विकसित हो गया था जिसके लिए फिर से शंटिंग की जरूरत पड़ी। नई दिल्ली स्तिथ आकाश हेल्थकेयर के न्यूरो सर्जरी विभाग के निदेशक डॉ. अमित श्रीवास्तव ने बताया कि बच्चे को 20 दिन के लिए एसिनेटोबैक्टर और एंटी-सीजर मेडिकेशन का प्रभाव कम करने के लिए एंटीबायोटिक्स पर रखा गया और फिर दूसरी बार स्टराइल कल्चर रिपोर्ट के साथ सफल प्रोग्रामेबल वीपी शंट किया गया। नर्व फाइबर को दुरुस्त करने के लिए आखिरी उपाय के 7 तौर पर सर्जरी ही बच गई थी। लिहाजा मस्तिष्क और रीढ़ पर दबाव कम करने के लिए सर्जरी की गई और सामान्य फ्लूइड सर्कुलेशन को बहाल किया गया। इस केस में बच्चे का सफल इलाज हो गया और भविष्य में किसी तरह की विकलांगता की संभावना को भी खत्म कर दिया। उन्होंने बताया कि बच्चे की स्थिति स्पाइनल कॉर्ड में दुर्लभ जन्मजात गड़बड़ी से जुड़ी थी जिसमें अन्य हिस्से को प्रभावित किए बिना स्पाइनल कॉर्ड की सफल सर्जरी की गई।
आकाश हेल्थकेयर के न्यूरोसर्जरी और स्पाइन सर्जरी विभाग के वरिष्ठ सलाहकार और प्रमुख, डॉ. नागेश चंद्र, ने बताया कि इस तरह की कई समस्याओं के मामले में अलग-अलग व्यक्तियों में अलग-अलग लक्षण होते हैं। कुछ लोगों में युवावस्था तक कोई लक्षण नजर नहीं आता, जबकि कुछ लोगों में बचपन में ही लक्षण लगातार दिखने लगते हैं। इस समस्या का इलाज तभी हो पाया क्योंकि ज्यादा समय होने से पहले ही माता पिता ने जागरूकता दिखाई और बच्चे को इलाज के लिए तुरंत ले आए।