सुरुचि से नहीं बल्कि सुनीति से होती हैै भगवद् प्राप्ति-आचार्य सागर
कोंच(जालौन) कन कने आवास पर चल रही श्रीमद्भागवत कथा के तृतीय दिवस कथा व्यास आचार्य सागर वोहरे शास्त्री ने कहा, सुरुचि अर्थात् अच्छी रुचि से नहीं बल्कि सुनीति अच्छी नीति से ही भगवान की प्राप्ति संभव है सुनीति से उत्पन्न ध्रुव जी ने छोटी सी उम्र में ही भगवान को प्राप्त कर लिया था ध्रुव जी इस बात के उदाहरण हैं भगवद्प्राप्ति के लिए उम्र बाधा नहीं है बल्कि निर्मल मन से परमात्मा की भक्ति करके छोटी सी उम्र में भी उन्हें प्राप्त किया जा सकता है लेकिन इसके लिए एक सच्चे गुरु की भी आव श्यकता होती है जो शिष्य का सही मार्गदर्शन करे। जिस तरह से देवर्षि नारद द्वारा ज्ञान प्राप्त करके ध्रुव जी ने घनघोर वन में जाकर एकनिष्ठ भाव से जगतपिता जगदी श्वर का ध्यान किया और श्रीहरि बिष्णु ने उन्हें दर्शन देकर इच्छित वर प्रदान किया कथा व्यास ने ध्रुव जी की कथा विस्तार से सुनाते हुए कहा महाराज उत्तानपाद के दो विवाह हुए जिसमें एक का नाम सुनीति दूसरे का नाम सुरुचि है। सुनीति ने एक सुंदर से बालक को जन्म दिया जिसका नाम ध्रुव रखा गया। बचपन से ही ध्रुव भगवद् भक्त हुए। एक दिन बालक ध्रुव खेलते हुए राजमहल में पहुंचे और अपने पिता उत्तान पाद की गोद में बैठ गए। महाराज उत्तानपाद भी लाड़ प्यार करने लगे लेकिन उसी समय सुरुचि वहां आ गई और ध्रुव को गोद से नीचे गिरा दिया। सुरुचि ने बालक ध्रुव से कहा, अगर इस गोद में बैठने की इच्छा है तो भगवान को प्रसन्न करके उनसे वर मांगना कि उसे सुरुचि के गर्भ से जन्म मिले। बालक ध्रुव रोता हुआ अपनी माता सुनीति के पास आया और कहा वह भगवान को प्रसन्न करने के लिए वन में तप करने के लिए जा रहा है। सुनीति के रोकने पर भी ध्रुव नहीं रुके वन की ओर प्रस्थान कर गए। राह में देवर्षि नारद से उनकी भेंट होती है और उनसे गुरु मंत्र व आशी र्वाद लेकर घोर तप करके भगवान नारायण को सिर्फ पांच वर्ष की आयु में प्राप्त कर लिया। अंत में कथा परीक्षित आशा पत्नी कमलेश कनकने ने भागवत जी की आरती उतारी प्रसाद वितरित किया गया स्वदेश श्रेयस,शौमिल, सचिन, शिवम कनकने आदि भक्त उपस्थित रहे।