गर्भ का चिकित्सीय समापन कानून (MTP Act 1971) के 50 साल के बाद भी महिलाओं की प्रजनन स्वास्थ्य अधिकार तक नही बनी पहुँच ?
विवेक जायसवाल की रिपोर्ट
बुढ़नपुर आजमगढ़ दिनांक २८ सितम्बर 2021 को गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम, 1971 के 50 साल पूरे होने पर आज ग्रामीण पुनर्निर्माण संस्थान, कामन हेल्थ एवं प्रजनन स्वास्थ्य अधिकार अभियान द्वारा ब्लाक सभागार अतरौलिया में एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर संयुक्त रूप से मांग पत्र तैयार किया गया जिसको लेकर जिले के स्वास्थ्य अधिकारिओं को मेल / व्यक्तिगत रूप से दिया गया !
मुख्य अतिथि डा0 शिवाजी सिंह ने बताया कि गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम, 1971 के अंतर्गत कुछ विशेष परिस्थितियों में अनचाहे गर्भ से छुटकारा पाने की अनुमति दी गई है। इसके तहत महिलायें कुछ विशेष परिस्थितियों में सरकारी अस्पताल में या सरकार की ओर से अधिकृत किसी से भी अस्पताल में अधिकृत व प्रशिक्षित डॉक्टर द्वारा गर्भ समापन करा सकती है। एमटीपी कानून कहता है कि जब गर्भावस्था बरकरार रहने से गर्भवती महिला की जान की खतरा हो, उसके मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान हो सकता हो (बलात्कार और गर्भ निरोध के उपायों के असफल होने सहित), या भ्रूण के असामान्य होने पर। गर्भावस्था के किसी भी चरण में महिला के जीवन को बचाने के लिए में गर्भपात कराया जा सकता है।
इस कानून के आने बाद मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी विधेयक- (संशोधन)2002 में किया इसके बाद मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी नियम 2003 बनाये गए ! हाल ही में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेन्सी (संशोधन) बिल,2020 पारित किया गया ! संशोधित कानून उन स्थितियों को रेगुलेट करता है जिनमें गर्भ समापन कराया जा सकता है। बिल उस समय अवधि को बढ़ाता है जिस दौरान गर्भ समापन कराया जा सकता है। इसके अंतर्गत अगर 20 हफ्ते तक गर्भ समापन कराना है तो एक डॉक्टर की सलाह की जरूरत होगी। इसके अतिरिक्त कुछ श्रेणी की महिलाओं को 20 से 24 हफ्ते के बीच गर्भ समापन कराने के लिए दो डॉक्टरों की सलाह की जरूरत होगी। असामान्यभ्रूण (फीटलअबनॉर्मिलिटी) के मामलों मे 24 हफ्ते के बाद गर्भ समापन पर फैसला लेने के लिए बिल में राज्य स्तरीय मेडिकल बोर्ड्स का गठन की बात की गई है।
भारत में गर्भ समापन की स्थिति ( गुटमाकर इंस्टिट्यूट के आंकड़ों के अनुसार) के बारे में बताते हुए राजदेव चतुर्वेदी ने बताया कि भारत में हर साल लगभग 15.6 मिलियन गर्भ समापन होते हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश के असुरक्षित होने की आशंका है। असुरक्षित गर्भ समापन भारत में मातृ मृत्यु दर का तीसरा सबसे बड़ा कारण है। रिपोर्ट किए गए गर्भसमापन की संख्या और भारत में होने वाले अनुमानित गर्भसमापन की कुल संख्या के अनुमानों में महत्वपूर्ण अंतर है।
उत्तर प्रदेश में सालाना अनुमानित 3.15 मिलियन गर्भ समापन किए जाते हैं। वर्ष 2015 में यह 1,000 महिलाओं पर 61 गर्भ समापन का औसत था जो की प्रजनन आयु (15-49) की आयु दर में ! राज्य में सालाना होने वाले गर्भ समापन लगभग 11 प्रतिशत है – अनुमानित 359,100 ,इनमें से पांच में से लगभग तीन सर्जिकल हैं और पांच में से दो गर्भ समापन चिकित्सा पद्धति (एमएमए) का उपयोग करके किए जाते हैं। 65 प्रतिशत गर्भ समापन निजी स्वास्थ्य सुविधाओं में, लगभग 32 % सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में और लगभग 4% एनजीओ आदि के द्वारा प्रदान किए जाते हैं।
राज्य में अनुमानित 49% गर्भधारण (2015 में 4.92 मिलियन) अनपेक्षित हैं। इन अनपेक्षित गर्भधारण में से लगभग दो-तिहाई (64%) गर्भ समापन में समाप्त हो जाते हैं। गर्भ समापन की सेवाएँ न मिल पाने के पीछे बड़ा कारण है स्टाफ की कमी, स्टाफ का ट्रेंड होना , एकुप्मेंट आदि मुख्य समस्या है इसके अलावा गर्भ समापन हेतु अस्पताल स्टाफ द्वारा अधिक पैसों की मांग, पति या परिवार की आपत्ति तथा सामाजिक मिथ आदि बाधा के रूप में रहते है !
इस क़ानून के आने के 50 साल बाद भी आज महिलाओं हेतु सुरक्षित गर्भ समापन सुविधाओं व सेवाओं की उपलब्धता का न होना या न मिल पाना चिंता की बात है
उत्तर प्रदेश में सुरक्षित गर्भ समापन सुविधाओं व सेवाओं की उपलब्धता हेतु मुख्य चिकित्सा अधिकारी आज़मगढ़ को सम्बोधित 10 सूत्रीय मांगपत्र शांति,मंजू और कालिंदी के द्वारा अधीक्षक को दिया गया।
अधीक्षक ने कहा कि हमारा प्रयास होगा कि अतरौलिया के 100 शैया मेटरनिटी विंग में भी महिला डॉक्टर हो जिससे महिलाओं को यही पर सुरक्षित गर्भ समापन सहित अन्य मातृत्व स्वास्थ्य सुविधाएं मिल सकें। कार्यक्रम में सुरेश कुमार पांडेय बीसीपीएम, तारा देवी, गीता वर्मा, नीलम यादव, ज्योति, फूला, अंजलि एव अम्बुज से सक्रिय सहयोग किया।
वी वी न्यूज़ तहसील संवाददाता विवेक जायसवाल की रिपोर्ट, खबर के लिए संपर्क करें 9452717909