कुरुक्षेत्र संवाददाता , वीना गर्ग।
छाया – उमेश।
कविता रचियता- डॉ. अशोक कुमार वर्मा।
कुरुक्षेत्र , ये कैसा आया मोबाइल ये कैसा….
एक परिवार में जितने जीव हैं, सबके अलग-अलग हैं।
एक कमरे में होकर भी, एक दूजे से अलग-थलग है। ये कैसा…..
पहले जब मोबाइल नहीं था, सब करते थे बात।
मन की सब दूरी मिट जाती, नहीं था कोई विवाद।
प्रेम प्यार से सुनते थे, एक दूजे की बात।
कितनी भी हो बड़ी समस्या, दे देते थे मात। ये कैसा…..
चिट्ठी छीनी, पत्र छीना, और छीना तार।
बहुत दिनों तक प्रतीक्षा करते, तब पूरी होती आस।
दूर-दूर बैठे लोगों में नहीं होती थी बात।
मन रुपी संदेशों से, होती थी ह्रदय वार्तालाप। ये कैसा…..
मोबाइल नहीं था जब बंदे पे, अंदर से था सुख।
अपनों के संग रहता था, और नहीं था कोई दुःख।
थोड़ी सी परेशानी आती, मिल कर सभी सुलझाते।
एक दूजे के सुख-दुख में, शीघ्र खड़े हो जाते। ये कैसा…..
अब हैं इसके लाभ कितने, क्या क्या मैं बतलाऊं।
कोई भी दुविधा हो तो, गूगल से सुलझाऊं।
कोई भी अड़चन आए, तो तुरंत फोन लगा दूं।
इससे भी न काम चले, तो वीडियो कॉल लगा दूं।
एक दूजे से कोसों दूर हो, पल में बात करा दूं। ये कैसा…..
इसके इतने लाभ है तो, क्यूं दोष धरूं मैं।
गाने, फिल्मे और फेसबुक इस पर ही चलाऊं।
थोड़ी सी जो आए परेशानी तो इससे ही सुलझाऊं।
इतने इसके लाभ हैं, फिर भी है यह बदनाम।
परिवार इसने तोड़ दिए, एक पल न आराम। ये कैसा…..
डॉ अशोक कुमार बताए मोबाइल तुम चलाओ।
जितना हो जरुरी उतना ही जीवन में अपनाओ।
आंखों का दुश्मन है यह, चश्मा तुम्हें लगाता।
भाईचारे में भी यह, बहुत रोड़े अटकाता। ये कैसा…..
कविता प्रस्तुति , डॉ. अशोक कुमार वर्मा हरियाणा पुलिस विभाग में उच्च अधिकारी है।