मोगा:कैप्टन
वात,पित एवं कफ [त्रिदोष] के कारण विभिन्न रोगों की उत्पत्ति : डाॅ मनु शर्मा,बी ए एम एस [एम डी] समिति सदस्य आयुष विभाग पंजाब सरकार
डाॅ मनु शर्मा ने प्रैस वार्ता में न्यूज टीम को आयुर्वेद के अनुसार त्रिदोष के बारे अति सरल शब्दों जनमानस कल्याणार्थ हेतु बताया कि :=
वात पित्त और कफ को त्रिदोष कहते हैं। इनके असतुंलन होने से क्रोनिक डिजीज की समस्याएं हो जाती है।
आयुर्वेद के अनुसार कफ दोष में 28 रोग, पित्त रोग में 40 रोग और वात दोष में 80 प्रकार के रोग होते हैं। जहां कफ की समस्या चेस्ट के ऊपरी हिस्से में होती है। वहीं पित्त की समस्या चेस्ट के नीचे और कमर में होती है। इसके अलावा वात की समस्या कमर के नीचे हिस्से और हाथों में होती है।
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कफ रोग
⏯️ मोटापा होना
⏯️ थायराइड होना
⏯️ सर्दी, खांसी-जुकाम
⏯️ आंखों में मोतियाबिंद होना।
⏯️ कम सुनाई देना।
⏯️ आंखों का लाल होना।
⏯️ डार्क सर्कल होना।
पित्त रोग
⏯️ हिचकियां आना।
⏯️ जॉन्डिस की समस्या होना।
⏯️ स्किन , नाखून और आंखों का रंग पीला होना।
⏯️ अधिक गुस्सा आना।
⏯️ शरीर में तेज जलन या गर्मी लगना
⏯️ मुंह, गला आदि का पकना।
⏯️ बेहोशी या चक्कर आना।
➡वात रोग
⏯️ हड्डियों में ढीलापन।
⏯️ हड्डियों का सखिसकना या टूटना।
⏯️ कब्ज की समस्या
⏯️ मुंह का स्वाद कड़वा होना।
⏯️ अंगों का ठंडा और सुन्न होना।
⏯️ शरीर में अधिक रूखापन होना।
⏯️ सुई के चुभने जैसा दर्द
⏯️ हाथों और पैरों की अंगुलियों में अचानक दर्द
⏯️ शरीर में अकड़न
डाॅ शर्मा जी ने त्रिदोष के कारण विभिन्न रोगों की उत्पत्ति की विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने बताया कि आयुर्वेद के अनुसार वात पित एवं कफ से बचाव हेतु किसी विशेषज्ञ की देख रेख में त्रिफला [आंवला, हरड़ एवं बहेड़ा] का प्रयोग करना चाहिए। न्यूज टीम ने डाॅ साहिब का विस्तृत जानकारी देने हेतु हार्दिक आभार व्यक्त किया।