पूर्वांचल ब्यूरो /अनुपम श्रीवास्तव
सुबह-ए-बनारस का मंच एक बार फिर से प्रभाती रागों से जीवंत हो उठा। करीब साढ़े छह महीने के बाद बृहस्पतिवार से सुबह ए बनारस की संगीतमयी शुरुआत हुई। सूर्योदय के साथ आस्था के सुरों से सजे गीतों ने लंबे अंतराल के बाद हर किसी का मन मोह लिया।कोरोना संक्रमण के कारण आठ अप्रैल को सुबह-ए-बनारस की अंतिम प्रस्तुति हुई थी।
बृहस्पतिवार को अस्सी घाट पर सुबह-ए-बनारस की शुरुआत गंगा आरती के साथ हुई। पाणिनी कन्या महाविद्यालय की ऋषि कन्याओं ने संजीवनी के मार्गदर्शन में मंत्रोच्चार किया। इसके बाद गंगा जी को पुष्पांजलि अर्पित की गई तथा सूर्य को जल अर्घ्य अर्पित किया गया।
डॉ. रागिनी सरना ने प्रात: काल राग बैरागी भैरव में विलंबित एक ताल में निबद्ध बंदिश पूरब दिस भये अजोर… से संगीत की शुरुआत की। इसके बाद मध्य एकताल में निबद्ध बंदिश सामवेद सुर अधार…।
इसी क्रम में द्रुत एकताल में निबद्ध बंदिश आओ गावो भयो प्रभात….पेश किया। गायन का समापन भजन निर्धन के धन राम हमारे…से हुआ। डॉ. रागिनी के साथ तबले पर डॉ. संदीप राव केवले एवं हारमोनियम पर मानस परिदा ने संगत की।
कलाकार को विधायक सौरभ श्रीवास्तव और जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा ने प्रमाणपत्र दिया। इस दौरान डॉ. प्रीतेश आचार्य, डॉ. वीरेंद्र प्रताप सिंह, दीपक मिश्रा, डॉ. रत्नेश वर्मा, पं. प्रमोद मिश्रा, रमेश तिवारी, विनय तिवारी, उदय प्रताप सिंह, सुनील शुक्ला, जयप्रकाश, कृष्णमोहन उपस्थित थे।