बिगड़ैल होते कोरोना में कक्षोन्नत विद्यार्थी
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जीवन में अनुशासन का क्या महत्त्व होता है यह रहस्य किसी से छिपा नहीं है।किंतु जब कभी कभी बिना परिश्रम किये ही कोई उपलब्धि या सफलता मिल जाती है तो लोग उसकी कीमत नहीं समझते।यही नहीं अपितु अकारण बिना परिश्रम ही सफलता को प्राप्त लोगों में श्रम और अनुशासन की भावनाओं के प्रति भी उपेक्षात्मक रवैया साफ साफ दृष्टिगोचर होता है।कदाचित कोरोनाकाल में बिना परीक्षा और बिना नियमित पढ़ाई के ही अगली कक्षाओं में कक्षोन्नत विद्यार्थियों का भी यही हाल है।जिसके चलते जहाँ उनमें अभी भी परीक्षाओं के समय कोरोनाकाल की तरह फिर उत्तीर्ण होने की चाह जहाँ बनी हुई है वहीं माध्यमिक विद्यालयों के विद्यार्थियों में दिनोंदिन बढ़ती अशिष्टता और आचरणहीनता जहाँ विद्यालयों के अनुशासन के लिए चुनौती बनती जा रही है वहीं छात्रों में गुटीय सङ्घर्ष भी बढ़ते जा रहे हैं,जोकि शिक्षण-अधिगम के स्वस्थ परिवेश के लिए घातक हैं।
वस्तुतः यदि विद्यार्थियों में दिनोंदिन बढ़ती गुटीय सङ्घर्ष की भावना और अनुशासनहीनता के लिए जिम्मेदार कारकों पर नजर डाली जाए तो साफ-साफ पता चलता है कि शिक्षा सत्र 2019-20 व 2020-21 में विद्यालयों नियमित शिक्षण न होने के चलते विद्यार्थियों ने अपना अधिकतर समय ऑनलाइन शिक्षण की आड़ में मोबाइल और कम्प्यूटर पर अन्य बेमतलब की सामग्रियों को देखने व पढ़ने में व्यतीत किया है।घरों में अलग कमरों व सुनसान जगहों पर अभिभावको की उदासीनता व अनुपस्थिति भी विद्यार्थियों के बिगडैलपन व चिड़चिड़ेपन हेतु कम जिम्मेदार नहीं है।इतना ही नहीं विद्यार्थियों के अंदर परिश्रम की भावना को गायब औरकि लुप्तप्राय करने में सरकारी मशीनरी भिनकम जिम्मेदार नहीं हैं।नियमित पढाई न होने के कारण जहां सत्रों बको शून्य होना चाहिए था वहाँ सरकारों ने मापन व मूल्यांकन की उन नवाचारी प्रणालियों का आश्रय लेकर विद्यार्थियों को कक्षोन्नत किया जिसका आजतक अनुशीलन नहीं किया गया था।औसत दर्जे के विद्यार्थियों को भी सम्मानसाहित उत्तीर्ण किये जाने से जहाँ पढ़ने वालों का मनोबल गिरा वहीं नकारा और आवारा प्रवृत्ति के विद्यार्थियों में पढाई तथा अनुशासन को लेकर और भी नकारात्मक सोच पनप रही है।यही कारण है कि ऐसे लोग अब विद्यालय आकर पढ़ने,शिक्षकों की डांट खाने की बजाय गोलबंदी और आवारागर्दी को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं।इन बिगड़ैलों का यकीन है कि अगलीबार भी बिना परीक्षा दिए अच्छे अंकों से उत्तीर्ण कर दिए जाएंगे।यही कारण है कि माध्यमिक विद्यालयों में आयेदिन विद्यार्थियों के उत्पात और मारपीट बढ़ती दिखाई दे रही है।अम्बेडकर नगर में तो कहीं कहीं थानों में इस बाबत रिपोर्ट तक दर्ज की गई है।जबकि अन्य विद्यालयों में भी आयेदिन भिड़ंत बढ़ती जा रही है।कदाचित यही स्थिति प्रदेश के अन्य जिलों व माध्यमिक विद्यालयों की भी है।
अनुशासन ही विद्यालयों की आत्मा और व्यक्तियों की सफलता का सोपान होता है।इस बाबत अम्बेडकर नगर के नामचीन विद्यालय में प्रधानाचार्य कप्तानसिंह मानते हैं कि जो विद्यालय अनुशासन स्थापित करने में विफल होते हैं,वहां पढाई की कल्पना करनी व्यर्थ है।श्री सिंह के मुताबिक कोरोनाकाल में अभिभावकों ने अपनी जिम्मेदारी ठीक ढंग से नहीं निभाई तथा विद्यालय बन्द होने से छात्रों को उचित परिवेश नहीं मिला।जिसके चलते अनुशासन स्थापना में मुश्किल तो है किंतु अनुशासन से समझौता नहीं किया जाएगा।कदाचित यही वक्तव्य प्रधानाचार्य उमेश कुमार पांडेय व शरतेन्दु गुप्त भी देते हैं।इसप्रकार यह स्प्ष्ट है कि कोरोनाकाल जहाँ अनुशासन के लिए भी एक चुनौती बनकर आया है वह्यन अभिभावकों की सक्रिय भूमिका का भी समय लाया है।यदि इस समय विद्यालय,समाज और छात्र तीनों मिलकर काम नहीं किये तो शिक्षा के लक्ष्यों की पूर्ति सम्भव नहीं होगी।
-उदयराज मिश्र
नेशनल अवार्डी शिक्षक
9453433900