रुड़की
स्टोरी—मासूम जिंदगी का तमाशा
एंकर— उत्तराखण्ड के रूडकी में दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में पांच साल की मासूम अपनी जान जोखम में डालने को मजबूर है. जिस उम्र में बच्ची को स्कुल के आंगन में पढना और खेलना चाहिए था उस उम्र में ये बच्ची सडको पर करतब दिखा रही है.. इस उम्र के पडाव में बच्चे जमीन पर चलने में लडखडा जाते है और ये मासूम बच्ची बिना डरे रस्से पर चलकर लोगो को तमाशा दिखा रही है..और लोगो का हुजूम बच्ची के करतब पर तालिया बजा रहे है.. इन्ही सडको से बड़े बड़े समाजसेवी और प्रशासन के नुमाइंदे गुजरते है लेकिन कोई भी इन बच्चो को इस मुसीबत से निकालने की जहमत तक गवारा नही करता.. सडको पर दम तोड़ता बचपन देश का भविष्य कैसे बनेगा, ये सवाल किसी के भी गले से निचे नही उतर रहा है.. देखिय ये ख़ास रिपोर्ट……
वीओ— पांच साल की मजबूरी का तमाशा देखने के लिए सडक पर भीड़ देखिय. पेट के खातिर जाम जोखम में डालना भी देख लीजिए, ये बच्ची बचपन को दरकिनार कर पेट की आग बुझाने के लिए करतब दिखा रही है, रूडकी की सडको पर स्कुल जाने की उम्र में दो जून की रोटी की जुगत में बच्ची हमारे समाज से कई सवाल पूछ रही है..
जान जोखम में डालकर रस्सी पर चलना इनकी जिंदगी का हिस्सा बन गया है, चन्द रुपयों की खातिर जीवन को खतरे डालकर मौत की राह पर चलता ये बचपन बताता है की जिन्दगी कितनी सस्ती है.. अपने और अपने परिवार के लिए दो वक़्त की रोटी जुटाने के लिए पांच साल की एक मासूम बच्ची रोजाना रस्सी पर चल कर अपनी जान जोखिम में डाल कर लोगो को तमाशा दिखाती है पर कोई भी यह जानने की कौशिश नहीं करता की आखिरकार यह बच्ची ऐसा क्यों कर रही है.
वीओ— जिन सडको पर ये बच्ची तमाशा दिखा रही है उन्ही सडको पर सरकार के नुमाइंदो से लेकर प्रशासन के अधिकारी भी गुजरते है लेकिन कोई भी इन बच्चो की मासूमियत पर रहम नही खाता बल्कि आँखे फेरकर चलते बनते है.. वही प्रदेश में गठित बाल श्रम विभाग की नजर भी इस और नही जाती.. सरकारों की नीतिया भी इन्ही सडको पर दम तोडती देखी जाती है.. केंद्र सरकार से लेकर प्रदेश सरकार बच्चो का भविष्य सुधरने के लिए विभिन्न योजनाए बनाती है और करोड़ो खर्च करती है लेकिन क्या इन योजनाओ का हक़ उन्हें मिल रहा है जिन्हें मिलना चाहिए था ये तस्वीर उन योजनाओ पर भी प्रश्नचिन्ह लगाती है…
वीओ— देश को डिजिटल बनाने के दावे जरा देख लीजिए.. पेट की भूख मिटाने के लिए मध्य प्रदेश के रहने वाले इस परिवार ने इस वक़्त रूडकी इलाके में अपनी झोपडी डाली हुई है.. और रोजाना यह परिवार अपने छोटे छोटे बच्चो सहित सडको पर निकल पढता है और कहीं भी जगह देख कर अपना जोखिम भरा खेल शुरू कर देते है, एक रस्से पर पांच साल की यह मासूम अलग अलग तरह के करतब दिखाती है कभी डंडा लेकर रस्से पर चलती है तो कभी पहिये के सहारे रस्से का खतरे वाला रास्ता पूरा करती है और लोगो की भीड़ उसके हैरत अंगेज स्टंड को देखकर दांतों तले ऊँगली दबा लेते है.. करतब दिखाने के बाद लोगो से यह मासूम अपने और अपने परिवार के लिए पैसे भी इकठ्ठा करती है.. यह खेल एक या दो दिन का नहीं बल्कि प्रति दिन का है क्योंकि पापी पेट का सवाल है इसलिय यह मासूम अपनी जान को रोजाना जोखिम में डालती है..
फाइनल वीओ— ये मासूम बचपन कई तरह के सवाल खड़े करता है.. क्या इन जिंदगियो का कोई भविष्य नही है.. आखिर कब तक हमारे देश के भविष्य को रस्सी के सहारे भूख मिटाने के लिए जान जोखम में डालनी पड़ेगी.. क्या सरकारों को दावे और वादे महज दिखावा होते है.. सवाल कई है लेकिन जवाब किसी के पास नही…
बाईट– तमाशबीन बच्ची की माँ
बाईट– तमाशबीन बच्ची