यदि भारत में एक साथ 11 लक्षचंडी महायज्ञ का अनुष्ठान हो तो शत्रु देश होंगें घुटनों पर : जगदगुरु शंकराचार्य नरेन्द्रानंद सरस्वती

हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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थीम पार्क में 501 कुंडीय लक्षचंडी महायज्ञ का छठा दिन।

कुरुक्षेत्र, 27 अक्तूबर :-
मां मोक्षदायिनी गंगाधाम ट्रस्ट ऋषिकेश-हरिद्वार द्वारा थीम पार्क में 501 कुंडीय लक्षचंडी महायज्ञ में आदिगुरु शंकराचार्य महासंस्थान सुमेरू मठ काशी के जगदगुरु शंकराचार्य नरेन्द्रानंद सरस्वती महाराज पहुंचे।मंगलवार सायं जगदगुरु शंकराचार्य नरेन्द्रानंद जी सरस्वती ने अपने संबोधन में सत्य सनातन संस्कृति,संस्कार व हिन्दुत्व पर विस्तार से व्याख्यान दिया।यज्ञ सम्राट हरिओम महाराज, महामंडलेश्वर डा. प्रेमानंद, महामंडलेश्वर विकास दास महाराज मोहड़ा धाम, लक्षचंडी महायज्ञ आयोजन समिति के अध्यक्ष कुलदीप शर्मा गोल्डी, अशोक शर्मा, आशुतोष गोस्वामी, राजेश मौदगिल, विजयंत बिंदल, राहुल तंवर व सतपाल द्विवेदी सहित व्यवस्था में जुटे समस्त कार्यकर्ताओं ने सभी संतों का स्वागत किया।अपने सम्बोधन में जगदगुरु शंकराचार्य नरेन्द्रानंद जी सरस्वती ने कहा कि यदि भारत में एक साथ 11 लक्षचंडी महायज्ञ का अनुष्ठान हो तो शत्रु देश घुटनों पर होंगें और हमारे देश की तरफ किसी भी राष्ट्र विरोधी ताकतों की आंख उठाने की हिम्मत नहीं होगी।उन्होनें कहा कि भगवान को निर्मल मन से भक्ति करने वाले भक्त बहुत ही प्रिय होते हैं। छल और कपट करने वालों को परमात्मा की कृपा नहीं मिलती है। इस संसार में परमात्मा की शरण ही सच्ची शरण है।उन्होंने कहा कि इस संसार में जो भी होता है वह परमात्मा की शरण से ही होता है।भगवान की भक्ति मोह के वशीभूत होकर नहीं करना चाहिए। साधना के पथ पर कठिनाईयां आती हैं परंतु जो भी साधक भक्ति के पथ पर जाते हैं उनके जीवन की सभी कठिनाईयां दूर होती है।
क्या है लक्षचंडी का महत्त्व :-
माँ दुर्गा को शक्ति की देवी कहा जाता है। श्री दुर्गाजीका एक नाम ‘चंडी’ भी है। मार्कंडेय पुराणमें इसी देवीचंडीका माहात्म्य बताया है । उसमें देवीके विविध रूपों एवं पराक्रमोंका विस्तारसे वर्णन किया गया है । इसमेंसे सात सौ श्लोक एकत्रित कर देवी उपासनाके लिए क्वश्री दुर्गा सप्तशती’ नामक ग्रंथ बनाया गया है । सुख, लाभ, जय इत्यादि कामनाओंकी पूर्तिके लिए सप्तशतीपाठ करनेका महत्त्व बताया गया है। दुर्गा जी को प्रसन्न करने के लिए जिस यज्ञ विधि को पूर्ण किया जाता है उसे चंडी यज्ञ बोला जाता है। लक्षचंडी यज्ञ को सनातन धर्म में बेहद शक्तिशाली वर्णित किया गया है। इस यज्ञ से बिगड़े हुए ग्रहों की स्थिति को सही किया जा सकता है और सौभाग्य इस विधि के बाद आपका साथ देने लगता है। इस यज्ञ के बाद मनुष्य खुद को एक आनंदित वातावरण में महसूस कर सकता है। वेदों में इसकी महिमा के बारे में यहाँ तक बोला है कि लक्षचंडी यज्ञ के बाद आपके दुश्मन आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकते हैं। इस यज्ञ को गणेशजी, भगवान शिव, नव ग्रह, और नव दुर्गा (देवी) को समर्पित करने से मनुष्य जीवन धन्य होता है।
बुधवार सुबह सभी संतों ने लक्षचंडी महायज्ञ में आहुतियां दी। कार्यक्रम में विद्या भारती उत्तर क्षेत्र के संगठन मंत्री बालकिशन, खंड कार्यवाह राजीव, दिनेश कुमार जींद, आरएसएस विभाग कार्यवाह डा.प्रीतम, डा. मनीष, परुषोतम सिंह ठाकरान, अनुज, सह जिला संघचालक रणजीत, सोनू मल्होत्रा, दीपक सचदेवा, इकबाल लुखी, डा. संजीव शर्मा, अतुल शास्त्री, इश्वर सिंह, बलबीर सिंह,परीक्षित शर्मा, राहुल पांचाल, लखीराम, कृष्णा, लीलूराम हिसार, सोमप्रकाश कौशिक, ओमप्रकाश लुखी, सतीश शर्मा, सतीश मित्तल, ओमप्रकाश जलगांव, रमेश कौशिक, हरीश शर्मा,जनकराज सिरसा, बी.डी.गौड़ चंडीगढ़, सीमा लोहिया व ममता गोयल सिरसा, देवेंद्र शर्मा, हरि प्रकाश शर्मा सोनीपत, हरीश अरोड़ा, कंवरपाल शर्मा, सरजन्त सिंह,अनिल देवगण,भगवत दयाल शर्मा, लेखराज सचदेवा, दीपक सचदेवा,सुरेन्द्र शर्मा, मुनीष राव, राज सिंह मलिक, लवकुश पंडित, दीपक शर्मा, कमल शर्मा, कृष्ण दहिया सिसाना, राजीव सैनी, विजेंद्र सिंह, अनिल डागर, ईश्वर शामड़ी, सुशील,आर.डी.शर्मा,राजेश अरोड़ा,सुरेश जोशी व अन्य श्रद्धालु शामिल रहे।

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