मिट्टी के दीये बनाकर कर रहे हैं परिवार का भरण पोषण
कोंच। हिंदू धर्मावलंबियों के सबसे बड़े पर्व के रूप में मनाए जाने वाले दीपोत्सव महापर्व की प्रमुख पहचान व महत्व मिट्टी से निर्मित दीये (दीपक) ही हैं। दीपावली अर्थात दीपकों की कतार का मर्म भी इन्हीं दीयों में विद्यमान हैं। आगामी 4 अक्तूबर को मनाए जाने वाले दीपोत्सव महापर्व की तैयारियों में सभी लोग लगे हुए हैं। घरों की सजावट के लिए बाजारों में विद्युत चालित तमाम आकर्षक चीजें बिक रही हैं। बदलते परिवेश में दीपोत्सव महापर्व के दिन घरों में लगाई जाने वाली झालरें, मोमबत्ती आदि की दुकानें भी सज गयी हैं। वहीं दूसरी ओर दीपावली कुम्हारों के लिए भी किसी वरदान से कम नहीं है क्योंकि इस पर्व पर दीयों का निर्माण कर उन्हें बेचने से ही इनके परिवारों का भरण पोषण होता है।
कस्बे के मोहल्ला गांधीनगर में ऐसे तमाम परिवार रहते हैं जो कुम्हारी कला से ही अपनी गृहस्थी की गाड़ी साल भर खींचते हैं। शिवकुमार प्रजापति, रामदास प्रजापति, शंकरलाल, रवि कुमार, परमसुख, घनश्याम, अनिल, हरिश्चंद्र, भगवान सिंह, राजकुमार, राजेश, शारदा अपने परिजनों के साथ बीते बर्षों की तरह इस वर्ष भी अपने हाथों से मिट्टी के दीये बनाने में दिन रात एक किए हैं। उक्त कारीगरों ने बताया कि हजारों की संख्या में दीये बनाए जा रहे हैं और ये दीये कोंच नगर के साथ ही आसपास के क्षेत्रों में भी बिक्री हेतु भेजे जाएंगे। उन्होंने बताया कि प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में दीयों की बिक्री हो जाने से हमारे घर परिवार का भरण पोषण हो जाता है। उन्होंने इस बात पर दुःख और चिंता जताई कि बदलते आधुनिक परिवेश में बिजली की झालरों, बल्ब, मोमबत्ती आदि की बिक्री बढ़ जाने से उनकी वृत्ति प्रभावित हुई है, पूर्व के वर्षों की अपेक्षा दीयों की बिक्री में काफी हद तक गिरावट आई है लेकिन दीपोत्सव महापर्व की प्राचीन महत्वता को मानने वाले लोग आज भी मिट्टी से निर्मित दीये ही खरीदते हैं। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा विद्युत चालित चाक प्रदान किए जाने से दीये बनाने में लगने वाला समय व शारीरिक श्रम अब कम लगता है। दीयों की बिक्री हेतु अगर सरकार कोई नीति बनाती है तो निश्चित रूप से कुमारी कला का भला हो सकेगा।
मिट्टी के लिए हुए पट्टे पर दबंगों के कब्जे से है परेशानी
कोंच। मिट्टी से दीये बनाने को लेकर उक्त कारीगरों ने बताया कि मिट्टी जुटाने में परेशानी होती है। उरई रोड पर कृपाल टॉकीज के पीछे शासन द्वारा करीब एक बीघा खेत का पट्टा मिट्टी खोदने के लिए दिया गया है लेकिन वहां आसपास के दबंग खेत मालिकों द्वारा पट्टे की काफी जगह पर अबैध रूप से कब्जा कर लिया गया है जिससे वहां तक जाने के लिए कोई रास्ता भी अब नहीं बचा है।