यम पाश से मुक्ति का त्यौहार भैया दूज
लोक में माता,बहन और पुत्री तीन रूपों में स्त्रियां सदैव देवीतुल्य औरकि वंदनीय मानी जाती हैं।कदाचित आदर की यह भावना विश्व के सभी पंथों और धर्मों में सनातन धर्म जैसी ही दिखती है।अलबत्ता देशकाल परिस्थिति के अनुसार थोड़ा बहुत रद्दोबदल दिखता अवश्य है किंतु इन तीनों रूपों में नारियों की महत्ता,ग्राह्यता और स्वीकार्यता कमोवेश हर जगह है।भैया दूज भी उन्हीं में से एक अत्यंत पवित्र और पापनाशक पर्व माना जाता है।
भैयादूज का पर्व कार्तिक माह के शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को प्रतिवर्ष मनाया जाता है।इसप्रकार पँचदिवसीय दीपोत्सव पर्व का यही आखिरी उत्सव होता है।जिसकी लोकमान्यता रक्षा बंधनसदृश औरकि भाई-बहन के अटूट रिश्ते की परिचायक होती है।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य और सन्ध्या के पुत्र धर्मराज यमदेव व पुत्री यमुना हैं।सूर्य के अत्यंत तेज़ से पीड़ित हो सन्ध्या अपनी प्रतिकृति छाया को रखकर अपने मायके जाकर रहने लगीं।जिससे उनके पुत्र यम और पुत्री यमुना को उनकी विमाता छाया से मातृ स्नेह नहीं मिला।किन्तु फिर भी यम और यमुना दोनों भाई बहन अत्यंत स्नेह से साथ-साथ रहते थे।
पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार बहन यमुना के पाणिग्रहण के उपरांत यमदेव कभी भी व्यस्ततावश उनसे मिलने नहीं जा पाते थे।किंतु एकबार यमराज कार्तिक माह के शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को अचानक अपनी बहन के घर पहुंचकर उन्हें आश्चर्यचकित कर दिया।भाई को अपने घर आया देखकर यमुना ने उनका तिलक चंदन लगाते हुए आवभगत करने के साथ-साथ स्वागत किया।तभी से यह दिन यम द्वितीया और भैया दूज के नामों से जाना जाता है।यमदेव ने उपहार स्वरूप अपनी बहन यमुना को वचन दिया कि यम द्वितीया को जो भी भाई अपनी बहन के घर जाएगा,उनका सम्मान करेगा, उन्हें यम पाश सहित कभी भी किसी अनिष्ट का भय नहीं होगा।
इसप्रकार यम द्वितीया और रक्षाबंधन दोनों भी पर्व भाई-बहन के अटूट और निष्काम निश्छल प्रेम के प्रतीक पर्व हैं।यह पर्व जहां सामाजिक सम्बन्धों की दृढ़ता दर्शाता है वहीं नारी शक्ति के प्रति अगाध श्रद्धा और सम्मान दिए जाने की भी प्रेरणा देता है।इस दिन हर भाई को अपनी बहन के यहां जाकर यथोचित धन धान्य प्रदान करते हुए उनका स्नेहभाजन बनना चाहिये।
-उदयराज मिश्र
नेशनल अवार्डी शिक्षक
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