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चार दिवसीय छठ पूजा में खरना का अर्थ होता है शुद्धिकरण : सुनील राय।
कुरुक्षेत्र, 9 नवम्बर : उत्तर प्रदेश एवं बिहार की भांति ही धर्मनगरी कुरुक्षेत्र में भी पर्वांचल समाज के लोगों द्वारा छठ पर्व बड़े भक्तिभाव के साथ मनाया जा रहा है। महिलाएं पूरी आस्था के साथ व्रत रखे हुए हैं। श्री पूर्वांचल छठ पर्व महासभा से जुड़े सुनील राय, प. अनिल शास्त्री व सरिता देवी ने बताया कि पिछले कई वर्षों से कुरुक्षेत्र में छठ पूजा होती है। मंगलवार को छठ पर्व का दूसरा दिन है। उन्होंने बताया कि दूसरे दिन भी व्रती महिलाएं छठ पर्व की पूजा एवं प्रक्रिया पूरी करने में श्रद्धा से जुटी रही। यह छठ का पर्व चार दिनों का होता है और इसका व्रत सभी व्रतों में सबसे कठिन होता है। इसलिए इसे महापर्व के नाम से जाना जाता है। सुनील राय ने बताया कि हिन्दू पंचाग के अनुसार छठ पूजा का खरना कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को होता है। खरना को लोहंडा भी कहा जाता है। इसका छठ पूजा में विशेष महत्व होता है। उन्होंने बताया कि खरना के दिन छठ पूजा के लिए विशेष प्रसाद बनाया जाता है। खरना के दिन भर व्रत रखा जाता है और रात को प्रसाद स्वरूप खीर ग्रहण किया जाता है। राय ने बताया यह छठ पर्व पूजा 11 नवम्बर तक है। उन्होंने छठ पर्व में खरना के महत्व के बारे में विस्तार से बताया कि खरना का मतलब शुद्धिकरण होता है। जो व्यक्ति छठ का व्रत करता है उसे इस पर्व के खरना वाले दिन उपवास रखना होता है। इस दिन केवल एक ही समय भोजन किया जाता है। यह शरीर से लेकर मन तक सभी को शुद्ध करने का प्रयास होता है। इसकी पूर्णता अगले दिन होती है।
उन्होंने बताया कि खरना पर प्रसाद ग्रहण करने का भी विशेष नियम है। जब खरना पर व्रती प्रसाद ग्रहण करता है तो घर के सभी लोग बिल्कुल शांत रहते हैं। क्योंकि मान्यता के अनुसार शोर होने के बाद व्रती खाना खाना बंद कर देता है। साथ ही व्रती प्रसाद ग्रहण करता है तो उसके बाद ही परिवार के अन्य लोग भोजन ग्रहण करते हैं। मंगलवार को कुरुक्षेत्र अर्बन एस्टेट में पूर्वांचल समाज की महिलाओं किरण देवी,पूजा देवी, मंजू देवी,सरिता पंडित, लालशा, सुषमा राय, पुष्टम राय, मनीषा राय, रीना देवी, ममता देवी, गीता देवी, सरिता देवी, विभा इत्यादि ने खरना पूजन किया।
खरना के दिन विशेष प्रसाद।
सुनील राय ने बताया कि खरना के दिन रसिया का विशेष प्रसाद बनाया जाता है। यह प्रसाद गुड़ से बनाया जाता है। इस प्रसाद को हमेशा मिट्टी के नए चूल्हे पर बनाया जाता है और इसमें आम की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। खरना वाले दिन पूरियां और मिठाइयों का भी भोग लगाया जाता है। छठ पूजा का महापर्व नई फसल के उत्सव का भी प्रतीक है। सूर्यदेव को दिए जाने प्रसाद में फल के अलावा इस नई फसल से भोजन तैयार किया जाता है।
पूरे देश में मनाया जा रहा है पर्व।
यह त्योहार पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में मुख्य तौर पर मनाया जाता है। अब देशभर के कई हिस्सों में इस पर्व का प्रचलन शुरू हो गया है। सुनील राय ने कहा कि उत्तरांचल की भांति पूर्वांचल के लोगों द्वारा हरियाणा में भी छठ पर्व पर 10 नवम्बर को सार्वजनिक अवकाश की मांग की गई है। उल्लेखनीय है छठ पूजा में सूर्य देवता का पूजन किया जाता है और यह पर्व 4 दिनों तक चलता है।
खरना प्रसाद।
खरना में प्रसाद के तौर पर मुख्य रूप से खीर बनती है इसके अलावा खरना की पूजा में मूली और केला व मौसमी फल रखकर भी पूजा की जाती है। साथ ही प्रसाद में पूड़ियां, गुड़ की पूड़ियां तथा मिठाइयां रखकर भी भगवान को भोग लगाया जाता है। छठी मइया को भोग लगाने के बाद प्रसाद को व्रत करने वाला व्यक्ति ग्रहण करता है। खरना के दिन व्रती इसी यही आहार को ग्रहण करता है।
खरना के बाद 36 घंटे निर्जला व्रत।
इस दिन व्रती सूर्य देव को प्रसाद चढ़ाने के बाद ही सूर्यास्त के बाद अपना उपवास तोड़ सकते हैं। तीसरे दिन का उपवास दूसरे दिन प्रसाद ग्रहण करने के बाद शुरू होता है। इस दिन गुड़ की खीर खाने के बाद, भक्त निर्जला व्रत शुरू करते हैं, जो छठ पूजा के समापन तक 36 घंटे तक चलता है।
सात्विक भोजन
छठ पूजा के चार दिनों के दौरान श्रद्धालु पूरी स्वच्छता के साथ और स्नान करने के बाद केवल सात्विक भोजन करते हैं जिसमें प्याज और लहसुन का प्रयोग नहीं किया जाता।
फोटो परिचय : छठ के दूसरे दिन खरना पर पूजन करती हुई महिलाएं।