अक्षय नवमी को पुण्य फलों की प्राप्ति और स्वास्थ्य की शुभता हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण दिन माना जाता है.अपने काम के अनुरुप यह कभी न क्षय होने वाले फल प्रदान करती है. अक्षय नवमी तिथि का संयोग कई मामलों में महत्वपूर्ण होता है. इस दिन को प्रमुख हिंदू पर्वों में से माना गया है जो जीवन में नई चेतना और उसके विकसित होने की संभावनाओं का विकास भी होता है. एक पारंपरिक हिंदू कैलेंडर में ‘कार्तिक’ के महीने के दौरान ‘शुक्ल पक्ष’ के ‘नवमी तिथि’ नवम दिन पर इस पर्व को मनाया जाता है. अक्षय का संबंध तृतीया तिथि के साथ भी जुड़ा है जब इसे अक्षय तृतीया के रुप में जाना जाता है और ये समय वैशाख मास में आता है.
अक्षय नवमी है आंवला नवमी
अक्षय नवमी को देश के विभिन्न हिस्सों में ‘आंवला नवमी’ के रूप में भी मनाया जाता है. इस दिन, आमला के पेड़ की पूजा की जाती है क्योंकि इसे सभी देवी-देवताओं का निवास माना जाता है.
देश भर में होती है अक्षय नवमी की धूम
भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल में, इस दिन को ‘जगधात्री पूजा’ के रूप में मनाया जाता है, जिसमें देवी ‘जगधात्री’ की पूरी भक्ति भाव के साथ पूजा की जाती है. साथ ही अक्षय नवमी के दिन मथुरा-वृंदावन की परिक्रमा बहुत शुभ मानी जाती है. देश के कोने-कोने से हिंदू भक्त इस दिन पर पवित्र धर्म स्थलों एवं नदियों में स्नान एवं दर्शन करने हेतु एकत्र होते हैं.
अक्षय नवमी पूजा अनुष्ठान
अक्षय नवमी के दिन, भक्त सूर्योदय के समय जल्दी उठकर गंगा और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करना शुभ माना जाता है. यह स्नान शरीर को मजबूत बनाता है तथा इंद्रियों पर नियंत्रण देता है.
स्नान के बाद, नदी के तट पर पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं. इन अनुष्ठानों द्वारा वातावरण की शुद्धि होती है तथा मानसिक सबलता प्राप्त होती है.
पूजा पर हल्दी का उपयोग करके 30 वर्ग बनाए जाते हैं. इन वर्गों को ‘कोष्ठ’ के रूप में जाना जाता है और फिर इन्हें दालों, अनाज और खाद्य पदार्थों से भरा होता है.
वैदिक मंत्रों से पूजा की जाती है, नवमी पर यह विशेष अनुष्ठान एक समृद्ध फसल और खाद्यान्न की वृद्धि तथा भंडारण के फलों को दर्शाता है जो जीव की क्षुधा शांति का महत्व देता है.