जाति-धर्म से हटकर टांडा की जनता चुनती अपना विधायक
अंबेडकरनगर : देश की आजादी के बाद प्रथम परिसीमन में टांडा विधानसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया। मुस्लिम, दलित एवं कुर्मी बाहुल्य इस विधानसभा क्षेत्र में कभी हिदू-मुस्लिम का कार्ड नहीं चला। यहां हिदू महासभा और मुस्लिम मजलिस पनप नहीं सकी। जाति और धर्म से ऊपर उठाकर यहां की जनता आजतक विधायक चुनती रही।
कांग्रेस एवं बसपा पर मेहरबान मतदाता : कांग्रेस, जनता पार्टी, लोकदल, लोकदल-ब, जनता दल, दलित मजदूर किसान पार्टी, सपा और भाजपा-बसपा को विधायकी का स्वाद चखने का मतदाताओं ने अवसर दिया। कांग्रेस व बसपा को चार-चार बार, जनता पार्टी, जनता दल, लोकदल, लोकदल-ब, दलित मजदूर किसान पार्टी, सपा एवं भाजपा को एक-एक बार यहां से जीत मिली। मुस्लिम व दलित, कुर्मी बाहुल्य इस क्षेत्र में सिर्फ एक बार प्रथम विधानसभा चुनाव में सामान्य वर्ग का मुस्लिम विधायक बना। हिदू और मुस्लिम पिछड़े वर्ग के हाथों में यहां प्रतिनिधित्व रहा।विधायकी का सफर: विधानसभा का प्रथम चुनाव 1952 में हुआ था। पूर्वांचल के गांधी कहे जाने वाले जयराम वर्मा कांग्रेस से टांडा पूर्वी (अब आलापुर) के विधायक बने। टांडा विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे मौलाना सैय्यद मोहम्मद नसीर ने चुनाव जीता। 1957 के चुनाव में टांडा पूर्वी सीट आरक्षित होने पर कांग्रेस से जयराम वर्मा ने टांडा से चुनाव जीता। 1962 में फिर जयराम वर्मा विधायक चुने गए। 1967 में बीकेडी के रामचंद्र आजाद जीते, लेकिन उन्होंने अपने राजनीतिक गुरु जयराम वर्मा से आहत होकर विधायकी से त्याग पत्र दे दिया। उपचुनाव में जयराम वर्मा ने जीत हासिल की। 1969 में रामचंद्र आजाद जीते। 1971 में कांग्रेस के निसार अहमद अंसारी जीते। 1977 की जनता पार्टी के अब्दुल हफीज विधायक बने। 1980 में दलित मजदूर किसान पार्टी के गोपीनाथ वर्मा विधायक बने। 1984 में कांग्रेस के जयराम वर्मा जीते। जयराम वर्मा की मृत्यु होने पर 1988 में हुए उपचुनाव में गोपीनाथ वर्मा फिर विधायक चुन लिए गए। 1991 में जनता दल के लालजी वर्मा, 1993 में सपा-बसपा गठबंधन से बसपा के डा. मसूद खां विधायक बने। 1996, 2002 व 2007 में बसपा के लालजी वर्मा लगातार तीन बार विधायक रहे। 2012 में पहली बार सपा के अजीमुलहक पहलवान व 2017 में भाजपा की संजू देवी को यहां की जनता ने विधायक चुना।