हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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कुरुक्षेत्र, 21 मार्च : कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के आईआईएचएस के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष डॉ. रामचन्द्र ने कहा कि भारत का अतीत गौरवशाली था। मध्यकाल में इसके दिव्यतेज में कुछ कमी आ गई उसे सूर्य के समान विश्व पटल पर प्रकाशित करने में स्वामी दयानन्द सरस्वती का योगदान अतुलनीय है । वे शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के विशिष्ट संस्थान भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् द्वारा स्वामी दयानन्द सरस्वती की 198 वी जयंती के अवसर पर भारतीय पुनर्जागरण में स्वामी दयानंद सरस्वती का योगदान विषय पर आयोजित विशिष्ट व्याख्यान में मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित करते हुए बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि भारत की आत्मा वेदों के रूप में सुरक्षित थी। वेदों के सत्य अर्थो का प्रकाश करके उन्होंने अंग्रेजों एवं पाश्चात्य विद्वानों के योजनाबद्ध
सांस्कृतिक आक्रमण को सदा के लिए नष्ट कर दिया। भारतीयों के मन में अपने अतीत के प्रति अपूर्व गौरव बोध का श्रेय भी स्वामी दयानंद को जाता है जिसका प्रभाव बाद में करोड़ों लोगों तक पहुंचा। डॉ. रामचन्द्र ने कहा कि स्वामी दयानन्द पहले व्यक्ति थे जिन्होंने स्वदेशी, स्वभाषा एवं स्वराज को स्थापित किया। उन्होंने अमीर एवं गरीब सबके लिए समान आसन, खानपान, वस्त्र एवं शिक्षा की वकालत करके शिक्षा के क्षेत्र में एक नई क्रांति का सूत्रपात किया। भारतीय दर्शन के क्षेत्र में उनका योगदान स्वर्णाक्षरों में लेखनीय है ।
उन्होंने बताया कि स्वतंत्रता संग्राम के महानायक राम प्रसाद बिस्मिल, लाला लाजपत राय, श्री अरविंद, महात्मा हंसराज, सरदार वल्लभभाई पटेल, भाई परमानंद एवं वीर सावरकर के वे प्रेरणास्रोत थे। आचार्या नन्दिता शास्त्री ने वेद व्याख्या, यज्ञ पद्धति एवं वर्णाश्रम के संदर्भ में स्वामी जी के योगदान को रेखांकित किया।
कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. सच्चिदानन्द मिश्र ने कहा कि भारत के नवनिर्माण एवं पुनर्जागरण में स्वामी दयानन्द का योगदान कालजयी है। उनके कार्य एवं दर्शन से सनातन परम्परा समृद्ध हुई है। इस अवसर पर प्रोफेसर शशिप्रभा कुमार, डॉ. पूजा व्यास, डॉ. जयशंकर सिंह, डॉ. संदीप कुमार सहित बड़ी संख्या में शिक्षाविद एवं शोधार्थी उपस्थित रहे ।