विश्व टीबी दिवस: राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल में हुई विचार संगोष्ठी
-जागरूकता रथ को हरी झंडी दिखाकर किया गया रवाना:
-वैज्ञानिक डॉ रॉबर्ट कोच की याद में मनाया जाता हैं टीबी दिवस: सीएस
-टीबी के मरीज़ों से आदर भाव के साथ करें व्यवहार: डॉ मोहम्मद साबिर
-टीबी मुक्त अभियान में एसटीएस सहित अन्य कर्मियों की भूमिका सराहनीय: डीपीएम
पूर्णिया, 24 मार्च।
“टीबी हारेगा- देश जीतेगा” टीबी मुक्त भारत जैसे उद्बोधन के साथ राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल परिसर में एएनएम स्कूल के समीप जागरूकता रैली निकाली गई। सिविल सर्जन डॉ एसके वर्मा, जिला यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ मोहम्मद साबिर, स्वास्थ्य विभाग के डीपीएम ब्रजेश कुमार सिंह, एआरटी के चिकित्सा पदाधिकारी डॉ सौरभ कुमार, डॉ आलोक कुमार, डॉ पीके ठाकुर सहित कई अधिकारियों के द्वारा संयुक्त रूप से जागरूकता रथ को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया गया। इसके बाद एएनएम स्कूल परिसर के सभागार में विश्व टीबी दिवस के अवसर पर विचार संगोष्ठी का आयोजन किया। इस अवसर पर यक्ष्मा विभाग के डीपीएस राजेश कुमार शर्मा, यूनिसेफ़ के क्षेत्रीय सलाहकार शिव शेखर आनंद, सहयोगी संस्था रीच के डीसी चंदन कुमार, केएचपीटी के विजय शंकर दुबे, जीत कार्यक्रम के डीसी रंजीत कुमार, डीटीसी के एसटीएस धीरज कुमार सहित यक्ष्मा विभाग के कई अन्य कर्मी उपस्थित थे।
-वैज्ञानिक डॉ रॉबर्ट कोच की याद में मनाया जाता हैं टीबी दिवस: सीएस
सिविल सर्जन डॉ संतोष कुमार वर्मा ने टीबी दिवस के अवसर पर विचार संगोष्ठी के दौरान उपस्थित समूह को सम्बोधित करते हुए कहा कि महान वैज्ञानिक डॉ रॉबर्ट कोच के द्वारा 24 मार्च 1882 को टीबी बीमारी के जीवाणु “माइको बैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस” की खोज की गई थी। इसे यादगार पल बनाने के लिए पूरे विश्व में विश्व यक्ष्मा दिवस मनाया जाता है। विश्व से टीबी जैसी संक्रामक बीमारी को जड़ से मिटाने एवं लोगों के बीच जागरूकता लाने के उद्देश्य से संकल्प लिया जाता है। केंद्र सरकार की ओर से राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत देश को वर्ष 2025 तक टीबी मुक्त करने का लक्ष्य रखा गया है। इसे पूरा करने के लिए ही राष्ट्रीय यक्ष्मा उन्मूलन कार्यक्रम चलाया जा रहा है। जिसके तहत
स्वास्थ्य विभाग सहित अन्य सहयोगी संस्थाओं द्वारा टीबी के मरीजों की खोज की जा रही है ताकि समय से उसका उपचार एवं दवा चलाया जा सके।
-टीबी के मरीज़ों से आदर भाव के साथ करें व्यवहार: डॉ मोहम्मद साबिर
जिला यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ मोहम्मद साबिर ने बताया कि कल तक किसी को टीबी यानि क्षय रोग हो जाने की स्थिति में उसको घृणा की दृष्टि से देखा जाता था। लेकिन आज की स्थिति ठीक विपरीत है। क्योंकि सरकार, स्वास्थ्य विभाग एवं मीडिया के सार्थक प्रयासों से लोगों की इस मानसिकता का भी बदलाव हुआ है। ज़िले में टीबी के मरीज़ों की संख्या में लगातार कमी आ रही है। इसके साथ ही टीबी प्रभावित मरीजों की मृत्यु दर में भी कमी हो रही है। राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) के द्वारा ग्रामीण चिकित्सकों के साथ समन्वय स्थापित कर इस अभियान को मजबूत करने के लिए जिला से लेकर प्रखण्ड तक स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों व कर्मियों के सहयोग से रोग मुक्त मरीज़ों के माध्यम से सामुदायिक स्तर पर बैठक आयोजित कर संक्रमित रोगियों से मिलकर उनको समय से दवा खाने की सलाह दी जाती है। वर्ष 2021 में 11, 592 संभावित टीबी रोगी की बलगम जांच की गयी थी। जिसमें 8, 39 बलगम धनात्मक रोगी पाए गए थे। जबकि वर्ष 2022 में फरवरी तक 2060 संभावित टीबी के मरीज़ों की बलगम जांच की गयी है। जिसमें मात्र 196 बलगम धनात्मक रोगी के मिले हैं। वहीं पिछले वर्ष 2021 में 4, 837 टीबी रोगियों का इलाज किया गया तथा वर्ष 2022 में मार्च महीने में 443 टीबी के मरीज़ों का उपचार चल रहा है।
-टीबी मुक्त अभियान में एसटीएस सहित अन्य कर्मियों की भूमिका सराहनीय: डीपीएम
स्वास्थ्य विभाग के जिला कार्यक्रम प्रबंधक ब्रजेश कुमार सिंह ने कहा कि विगत वर्ष की अपेक्षा इस बार टीबी जैसी संक्रामक बीमारी से मुक्त हुए मरीज़ों की संख्या में इज़ाफ़ा हुआ है। जिले को यक्ष्मा बीमारी को जड़ से मिटाने वाले अभियान में जिले को राज्य में उच्च स्थान मिल सके इसके लिए ज़िले के सभी एसटीएस सहित अन्य स्वास्थ्य कर्मियों की भूमिका काफ़ी सराहनीय होती है। क्योंकि टीबी के मरीज़ों की खोज करना एवं उसकी जांच कराने की जिम्मेदारी एसटीएस की होती है। जब तक जांच नहीं होगी तब तक मरीज़ों को उचित समय पर दवा का वितरण नहीं किया जा सकता है। ज़िले को टीबी मुक्त बनाने के लिए शत प्रतिशत लक्ष्य को पूरा करना अनिवार्य हैं। तभी इसकी सार्थकता हो सकती हैं अन्यथा नहीं।