आखिर कैसे हो गयी,बबुआ से ये चूक।
चाचा ने भी दाग दी,फिर लोडेड बंदूक।।
फिर लोडेड बंदूक,नाव को छेद डुबोये।
जब टूटे परिवार, पड़ोसी कभी न रोये।।
कहत उदय पतियाय,चचा भी पक्के शातिर।
धरिहैं गर्दन धाय,राह बस एक्कै आखिर।।
हानि-लाभ के फेर जँह ,कबहुँ न उपजे नेह।
जर से जर्जर हो गया,आज मुलायम गेह।।
आज मुलायम गेह, किसी की सुनै न कोई।
कौन बड़ा लघु कौन,सिसकती ममता रोई।।
कहत उदय करिसोच,लडहिंअपने जियजानि।
निसिदिन दरके गेह, चतुर्दिक पगपग हानि।।
-उदयराज मिश्र
9453433900
(लुप्तप्राय रिश्ते)
देख रहा हूँ राहु ग्रस रहा,सामाजिक सम्बन्धों को।
उठापटक माथापच्ची में,नहीं सूझता अंधों को।।
मौसी मौसा लुप्तप्राय से,चिड़ियाघर में नहीं मिलेंगें।
जीजा साली के रिश्ते भी,पुस्तक में सबलोग पढेंगें।।
मान लिया परिवार बड़ा होने पर मुश्किल आती है।
लेकिन रिश्ता भी तो अपने जीवन की परिपाटी है।।
पुत्रमोह में पढेलिखे जन किस हदतक गिर जाते हैं।
जाने कैसा स्वाद स्वयं वे ऐसा करके पाते हैं।।
अर्पण तर्पण के चक्कर में क्या से क्या कर जाते हैं।
शहरों की इस चकाचौंध में रिश्ते गुम हो जाते हैं।।
अभी समय है जागो जागो मत मारो सम्बन्धों को।
कोई तो नई राह दिखाये पुत्र मोह के अंधों को।।
-उदयराज मिश्र
मण्डल संयोजक,अयोध्या मण्डल
राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ,उत्तर प्रदेश
(माध्यमिक संवर्ग)