बिहार:गैयारी के शायर हारून रशीद गाफिल की एक पंक्ति ‘पढ़ेगी रजिया, पढ़ेगा हरिया, साक्षर होगा जिला अररिया’ से सार्थक हुआ था साक्षरता अभियान

गैयारी के शायर हारून रशीद गाफिल की एक पंक्ति ‘पढ़ेगी रजिया, पढ़ेगा हरिया, साक्षर होगा जिला अररिया’ से सार्थक हुआ था साक्षरता अभियान।

अररिया संवाददाता

5 मई 1965 को ननिहाल बसंतपुर ककुड़वा में जन्मे गाफिल ने 1980 में आंचलिक कुल्हैया शायरी की शुरुआत की थी।
1999 में साक्षरता अभियान गीत का आगाज कर पूरे जिले में नाम कमाया और साक्षरता अभियान को जन-जन तक पहुंचाने के लिए और निरक्षरों को अक्षर ज्ञान की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए एक नारा बहुत प्रसिद्ध हुआ था। वह नारा था पढ़ेगी रजिया, पढ़ेगा हरिया, साक्षर होगा जिला अररिया। यह नारा जिले के एक छोटे से गांव गैयारी के रहने वाले हारून रशीद गाफिल ने तैयार किया था। आंचलिक भाषा में ग़ाफ़िल कई शेरो शायरी तैयार कर जिले की समस्याओं को सामने ला चुके हैं। जिले भर में शानदार मंच उद्घोषक की भूमिका निभाने वाले हारून रशीद गाफिल पेशे से अधिवक्ता थे। 6 दिसंबर 1992 को पूर्णिया आकाशवाणी से उनका पहला प्रसारण हुआ था। जबकि 1987 में ही पटना आकाशवाणी केंद्र से उनका प्रसारण हो चुका था। रेडियो आकाशवाणी पूर्णिया में वो बतौर उद्घोषक भी थे। कहा भी जाता है कि जिंदगी के विरोधाभास से कविताओं का जन्म होता है। यही वजह है कि गैयारी के रहने वाले अवामी शायर हारून रशीद गाफिल की कविताओं में जहां गांव की खुशी और गम एक साथ गूंजती है। सुदूर गांव में पले बढ़े गाफिल की कविताओं ने देश के सारे मुशायरा और कवि सम्मेलनों में जिले का नाम ऊंचा किया है।
पारिवारिक संघर्षों से जलते हुए गाफिल की एक शेर सबसे अधिक चर्चित हुई थी, जमीर बेचकर जिंदा रहूं ये नामुमकिन, मैं अपने आप से दगा करूं ये नामुमकिन, जमाना तुझको मसीहा कहे ये मुमकिन है, मगर मैं तुझको मसीहा कहूं ये नामुमकिन। इस शेर को सिनेमास्टार शत्रुघ्न सिन्हा ने अमेरिका के एक कार्यक्रम में पढ़ा तो खूब सुर्खियां बटोरी। जिले में मुख्यमंत्री से लेकर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस तक के समारोह में मंच संचालन का दायित्व बखूबी निभा चुके हैं। जबकि अररिया जिला बनने के बाद से मुख्य समारोह स्थल नेताजी सुभाष स्टेडियम में स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के मौके पर शानदार तरीके से मंच संचालन कर अपनी अदाकारी पेश करते रहे हैं। हालांकि वे कहते थे कि उनके गुरु डॉ अशोक कुमार झा अब इस दुनिया में नहीं रहे। जब थे तो उनका बहुत हौसला अफजाई करते थे, ये बात पिछले साल इसी समय अररिया के एक होटल में लंच के दोरान गाफिल साहब ने मुझे बताई थी।
Haroon Rasheed Ghafil साहब आबरू-ए- सीमांचल खिताब से नवाजे जा चुके हैं, जबकि अलंकार शान-ए-अररिया, कवीर, पूर्णिया श्री से भी नवाजे जा चुके हैं। इसके अलावा उन्हें आवामी शायर ही कहकर ही लोग पुकारते रहे हैं। कुल्हैया जाति से ताल्लुक रखने वाले गाफिल सभी समुदाय में बहुत प्रचलित थे और निहायत ही सादा जीवन यापन करने वाले व्यक्ती थे, गाफिल साहब का इस दुनिया से जाना अररिया के साथ साथ पूरे बिहार वासियों के लिए अपूर्णीयक्षति है।

अल्लाह आपकी मगफिरत फरमाए और आपके परिवार वालों को सब्र अता फरमाए।

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