पूर्वांचल ब्यूरो /अनुपम श्रीवास्तव
आचार्य रामचंद्र शुक्ल हिंदी साहित्य की महानतम विभूति थे। उनके वंश से जुड़े होना ही अपने आप में गौरव की अनुभूति कराता है। ये बातें डॉ. मुक्ता ने बुधवार को नागरी प्रचारिणी सभा में आयोजित आचार्य रामचंद शुक्ल जयंती समारोह में कहीं।
उन्होंने कहा कि आचार्य रामचंद्र शुक्ल के आदर्श से प्रेरित होकर जो कुछ भी लिखती हूं तो यह ध्यान रखती हूं कि उसके मूल में लोक मंगल अवश्य हो। मुख्य वक्ता प्रो. श्रद्धानंद ने कहा कि आचार्य शब्द शुक्लजी के साथ ही सबसे अधिक फबता है। उनकी दृष्टि सम्यक होने के साथ ही विराट भी थी। डॉ. रामअवतार पांडेय ने कहा कि आचार्यवर का व्यक्तित्व एवं कृतित्व अत्यंत महनीय, विपुल, विराट एवं बहुआयामी है। उनके विचार सदा सर्वदा प्रासंगिक रहेंगे। समारोह में भारतेंदु के वंशज दीपेश चौधरी, नरोत्तम शिल्पी, सिद्धनाथ शर्मा, जयशंकर जय, अमृत पांडेय ने भी विचार रखे। स्वागत सभाजीत शुक्ल, संचालन डॉ. जितेंद्रनाथ मिश्र एवं धन्यवाद ज्ञापन बृजेशचंद्र पांडेय ने किया।