अम्बेडकर: मुख्य सचिव चिल्लाते रहे, पर अवैध निर्माण रोकने वालों की नहीं खुली नींद

मुख्य सचिव चिल्लाते रहे, पर अवैध निर्माण रोकने वालों की नहीं खुली नींद

अंबेडकरनगर | काश! 12 साल पहले तत्कालीन मुख्य सचिव अतुल कुमार गुप्ता के आदेश को अधिकारियों ने गंभीरता से लिया होता, तो आज बेगुनाह लोग बर्बाद होने से बच जाते। तमसा नदी के किनारे तक भरी गई नींव दशकों से अधिकारियों की अनदेखी का ही नतीजा है। आज न्यायालय एवं शासन सख्त हुआ तो सरकारी आदेश हाथ में लिए जनता का निर्माण अवैध हो गया। शासन भी आदेशों की अवहेलना करने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई करने में चुप्पी साधे है।
नदी किनारे अवैध निर्माण रोकने के लिए शासन एवं न्यायालय लगातार चिल्लाता रहा, लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों की नींद नहीं खुली। नतीजतन, अकबरपुर व जलालपुर तहसील में तमसा नदी के किनारे आवासीय कालोनियां बस गईं। करीब 12 साल पहले 16 मार्च 2010 को मुख्य सचिव अतुल कुमार गुप्त ने सिचाई विभाग, बाढ़खंड, प्रशासन, पुलिस एवं नगरीय निकायों को पत्र जारी कर नदी किनारे निर्माण रोकने का निर्देश दिया था। खासतौर पर सिचाई विभाग के अधिकारियों को नदी किनारे के हुए अवैध निर्माण को बल पूर्वक हटाने और इन्हें मिल रही कल्याणकारी योजनाओं में राशनकार्ड, बिजली व पानी के कनेक्शन की सुविधाएं बंद करने का निर्देश दिया था। सिचाई विभाग के अधिकारियों को शिथिलता एवं लापरवाही करने पर जवाबदेही तय कर कार्रवाई की सख्त चेतावनी दी गई थी। लेकिन, मुख्य सचिव का आदेश फाइलों में आज भी दफन है। सबसे बड़े हाकिम का आदेश भी नदी किनारे के अवैध निर्माण को रोकने में नाकाम रहा। एसडीएम पवन जायसवाल ने बताया कि सिचाई विभाग व बाढ़ खंड को आदेश की प्रति के साथ नदी किनारे अवैध निर्माण हटवाने के लिए पत्र भेजा गया है।
तीन दशक पहले सरकार ने जताई थी चिता: करीब 30 साल पहले भारत सरकार ने नदियों किनारे बाढ़ क्षेत्रों में अवैध निर्माण होने पर चिता जताते हुए राज्य सरकार को इस पर लगाम लगाने एवं अवैध निर्माण हटाने का निर्देश जारी किया था। तीन फरवरी 1992 को विशेष सचिव आलोक कुमार ने इसका संज्ञान लेकर सभी जिलाधिकारियों को तत्समय पत्र जारी कर नदी किनारे के निर्माण व विकास करने पर पाबंदी लगाने को कहा था। इसके बाद 18 मई 1995 व चार अप्रैल 2003 को भी आदेश जारी हुआ। तत्कालीन मुख्य सचिव ने पिछले आदेशों का कठोरता से अनुपालन नहीं करने पर गहरी नाराजगी जाहिर की थी। निर्माण अनुमति और नक्शा पास करने पर पाबंदी लगाई थी। लेकिन, अधिकारियों ने इसे भुलाकर भवन निर्माण के लिए नवैयत बदलने समेत नक्शा भी पास किया। तीन दशक पहले जिले का गठन होने के बाद ही यहां नदी किनारे निर्माण ने तेजी पकड़ी थी, लेकिन सिचाई विभाग व नगरीय निकाय को इस आदेश की जानकारी ही नहीं है। तहसील प्रशासन ने अब यह आदेश खोजकर निकाला है। सवाल उठता है कि जब अधिकारी ही नियमों से अनभिज्ञ हैं तो जनता को इसके बारे में जानकारी कैसे होती।

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