अम्बेडकर नगर:जल और जीवन

जल और जीवन

कहावत है कि-जल ही जीवन है।अर्थात जल के बिना जीवन की संकल्पना ही व्यर्थ है।जल सभी प्रकार की जीवों,जंतुओं और वनस्पतियों का प्राणाधार है।इसीलिए जल को जीवन की संज्ञा दी गयी है।
व्याकरण की दृष्टि से जल शब्द में श्लेष होता है।इसे पानी के पर्याय के रूप में पानी(honour),पानी(water) और जलने के परिप्रेक्ष्य में जल(burn)कहते हैं।वैसे भी पानी के कुल 27 पर्यायवाची होते हैं जिनमें स्वयम जीवन शब्द भी जल का पर्याय होता है।इसप्रकार जल ही जीवन को जल ही जल या जीवन ही जल भी कहा जा सकता है।किंतु प्राणिमात्र के अस्तित्व और जल के महत्त्व को व्यक्त करने हेतु जल ही जीवन को व्यापक रूप से व्यवहार में कहने हेतु प्रयुक्त किया जाता है।
जल की व्यापकता और सार्वभौमिक महत्ता का वर्णन करते हुए रहीम जी ने लिखा है–
रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून।
पानी गए न उबरें मोती मानस चून।।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने मानस में जल विशेषकर गंगाजल का वर्णन करते हुए कहा है कि-
बरबस राम सुमंत्र पठाये।
सुरसरि तीर आपु प्रभु आये।।
— —- —- —–
जल बिनु मीन नयन बिनु बारी।
तैसहि नाथ पुरुष बिनु नारी।।
अन्यान्य कवियों ने पानी का अगाध वर्णन करते हुए यहां तक लिखा है कि-
जिन ढूंढा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठि।
मैं बपुरा बूडन डरा रहा किनारे बैठि।।
वस्तुतः पानी एकतरफ जहां शरीर की सभी उपापचयी क्रियाओं और रक्तादि के संचरण हेतु नितांत आवश्यक है वहीं इसे मान प्रतिष्ठा का सूचक भी माना गया है।किसी भी स्थिति में पानी का ह्रास या कमी मानवमात्र के लिए दुखदाई पीड़ादायी और त्रासद ही होती है।
विज्ञान की दृष्टि से पानी एक रंगहीन,गन्धहीन,स्वादहीन, पारदर्शी अकार्बनिक रसायन होता है।जिसमें हायड्रोजन के दो परमाणु और ऑक्सिजेन के एक परमाणु मिलकर पानी के एक अणु का निर्माण करते हैं।जिसमें सहसंयोजक बन्ध बनता है।पृथ्वी पर कुल 71%भाग पर जल है।जिसमें 96.5%जल केवल समुद्रों में संचित है।शुद्ध पानी के सबसे बड़े स्रोत के रूप में अंटार्कटिका में जमी बर्फ है,जो 61%शुद्ध पानी का भंडार है।जहांतक भूगर्भ जल की सीमा और संरक्षण तथा उपयोग की बात है तो केवल 1.7%जल ही भूगर्भ जल के रूप में अनुमानित हैं।जिसका निरंतर दोहन और अनर्गल दुरुपयोग पानी के संकट के साथ साथ अगला विश्वयुद्ध पानी के लिए होने का आगाज देता है।
जलचक्र ही जल संचयन और इसकी उपलब्धि का एकमात्र माध्यम है।अतः वर्षा के जल का संचयन,भुगर्भजल का समुचित प्रयोग और वनीकरण इत्यादि ऐसे उपाय हैं जो जल की निरंतर उपलब्धता बनाये रखने में सहायक हैं अन्यथा घरों में भोजन तो रहेगा किन्तु पानी के अभाव में प्राणियों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।ठीक ही कहा गया है कि-
का वर्षा जब कृषि सुखाने।
समय चूकि अब का पछिताने।।

-उदयराज मिश्र
मण्डल संयोजक,अयोध्यामण्डल
राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ,उत्तर प्रदेश
(माध्यमिक संवर्ग)
9453434900

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