गांधी:-एक सार्वभौमिक व्यक्तित्व व विचारधारा
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम हो या फिर दक्षिण अफ्रीका में नेटाल कांग्रेस की स्थापना अथवा कि रंगभेद,भाषावाद,क्षेत्रवाद की संकीर्णताओं को तोड़ खण्ड-खण्ड में बंटे राष्ट्र के निवासियों में राष्ट्रीयता के बीज वपनकर ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ एकजुट करने की महती भूमिका हो-सबमें अगर किसी भारतीय सेनानी ने सर्वाधिक इगदं दिया है तो निःसन्देह वह राष्ट्रपिता गांधी जी ही थे।जिनके कृतित्व के बिना राष्ट्रीयता की प्रबल भावना का विकसित और कि जागृत होना कदाचित असम्भव था।इस प्रकार यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि गांधी जी व्यक्तित्व सार्वभौमिक था औरकि उनकी विचारधारा आज भी प्रासंगिक है।जिसके अनुशीलन से ही वैश्विक शांति और समृद्धि का विकास सम्भव है।
इसे दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि देश के विभाजन के पश्चात पाकिस्तान को आर्थिक मदद करने की जिद और नेता जी सुभाष चन्द्र बोस को पर्याप्त समर्थन न देने के कारण जनमानस का एक बड़ा वर्ग आज गांधी जी को कटघरे में आयेदिन खड़ा करता रहता है किंतु शायद ऐसे लोग गांधी जी के समग्र व्यक्तित्व का एकांगी मूल्यांकन करते हैं,जोकि अनुचित है।गांधी का व्यक्तित्व कुछेक पंक्तियों में रेखांकित करने मुमकिन नहीं है।गांधी हरप्रकार की सीमारेखाओं से परे औरकि अवर्णीय हैं।
भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में गांधी जी के सत्य और अहिंसा जैसे प्रयोगों को लेकर भी कुछ लोग कटाक्ष किया करते हैं,जोकि ठीक नहीं है।स्मरण रहे कि 1947 से पूर्व देश कई सौ देसी रियासतों में खण्ड-खण्ड बंटा हुआ था।सभी राजे-महाराजे ,जमींदार और तालुकेदार केवल और केवल अपनी -अपनी रियासतों को बचाने के चक्कर में थे।उन्हें न तो स्वाधीनता की चिंता थी और नकि स्वाधीनता आंदोलन की।और तो और कश्मीर से कन्याकुमारी तक देश में भाषावाद,क्षेत्रवाद,अलगाववाद और छुवाछूत जैसी विषमताएं थीं।जिनके कारण भारतीय जनमानस एकदूसरे से पूरी तरफ कटा हुआ था।स्वाधीनता से पूर्व आज़ादी के संग्राम को गतिशील और सफल बनाने के लिए भारतीय लोगों में क्षेत्र,भाषा,वर्ग आदि को मिटाकर राष्ट्रीयता की भावना जागृत करना सबसे बड़ी आवश्यकता थी।यह काम गांधी जी को छोड़ कदाचित कोई भी अन्य भारतीय सेनानी नहीं कर सकता था।इस प्रकार गांधी जे आंदोलनों की सबसे बड़ी देन जन जन में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करना रहा।इसी के चलते कालांतर में नरम और गरम दलों का उदय हुआ।कहा जाता है कि”चल पड़े जिधर दो पग डग में,चल पड़े कोटि पग उसी ओर” कदाचित यह पंक्ति देश के तमिल,तेलगु,उड़िया,कन्नड़,मराठा,बंगाली,पंजाबी,हिन्दू,मुस्लिम,सिख सहित सभी भाषा भाषियों व पंथानुयायियों के अंदर राष्ट्रभाव के पनपने का ही प्रतिफल है।जिसे भुलाया नहीं जा सकता।
अछूतोद्धार गांधी के व्यक्तित्व का ही एक अंग है।सामाजिक विषमता को समाप्त करने की दिशा में अछूतों को उनके अधिकार और हक प्रदान करने के साथ साथ सामाजिक सम्मान दिलवाने के गांधी का प्रयास अविस्मरणीय है।गांधी का यह कहना कि-जिन हाथों ने संसार गढ़ा, क्या उसने हरिजन नहीं गढ़े।
फिर ये कैसा छुआछूत,वे किस गीता में पाठ पढ़ें” यह दर्शाता है कि गांधी जी सर्वसामान्य को एकसमान तथा समानाधिकारी समझते थे।सत्य और अहिंसा जैसे अस्त्रों को लेकर राजकोट के दीवान के पुत्र के रूप में विलायत में पढ़े और दक्षिण अफ्रीका में वकालत करने वाले मोहनदास करमचंद गांधी का जीवन दर्शन एक दार्शनिक,शिक्षाशास्त्री,अहिंसावादी और देश के वास्तविक सपूत के रूप में ही मूल्यांकित किया जाना चाहिए।जिनकी मृत्यु तो हो सकती है किंतु जिनके विचारों को कभी भी मारा नहीं जा सकता।वस्तुतः राष्ट्रवाद की समग्र भावना का बीजमन्त्र यदि किसी स्वाधीनता सेनानी ने वपन किया था तो वह केवल व केवल गांधी ही थे।
-उदयराज मिश्र
नेशनल अवार्डी शिक्षक