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खुद निष्क्रिय रहकर अपने पैरों पर मारी कुल्हाड़ी!
बसपा की आलाकमान सदमे में लगते हैं!इतनी बुरी गत तो 1989 के बाद पहली बार हुई है! कॉंग्रेस से भी पीछे चली गई! खुद किसी भी सदन की सदस्य नहीं हैं! विधान सभा के हाल में हुए चुनाव में अपना दल सुभासपा निषाद पार्टी और कॉंग्रेस से भी पिछड़ गई मायावती की पार्टी! एक ही विधायक जीत पाया वह भी अपने बूते सीटें तो पिछले चुनाव में भी 19 ही मिली थीं!जनाधार तो फिर भी सलामत बच गया था।हारकर भी 22 फीसद वोट मिले थे बसपा को! इस बार घटकर आधे रह गए! जबकि बीस फीसद से ज्यादा तो केवल दलित ही हैं सूबे में उनका कट्टर वोट बैंक समझे जाने वाले जाटव मतदाता भी करीब 15 फीसद हैं!नतीजे संकेत दे रहे हैं कि उन्हें जाटव मतदाताओं का भी पूरा समर्थन नहीं मिला!अपने दलित वोट बैंक के बूते ही तो मायावती ने बहुजन हिताय की जगह सर्वजन हिताय का प्रयोग कर 2007 में अपने बूते सत्ता हासिल की थी दूसरी जातियों के नेता बहिनजी के टिकट का मोह छोड़ नहीं पाते थे फिलहाल लोकसभा में जरूर बसपा के दस सदस्य हैं!लगता है किसी बड़े दल की मेहरबानी ने लुटिया डुबो दी इस बार बसपा की!एक तो खुद निष्क्रिय रहीं ऊपर से चुनाव के दौरान एलान कर दिया कि उनके लिए भाजपा से बड़ी शत्रु सपा है!उनकी हार साफ देख रहे उनके समर्थक मतदाता इसी के बाद बिखरे और भाजपा व सपा में बंट गए!बसपा को एक दौर में कांशीराम ने राष्ट्रीय दल की मान्यता दिला दी थी।पंजाब मध्यप्रदेश हरियाणा और उत्तर प्रदेश में अच्छा जनाधार बनाया था लेकिन कांशीराम माने जाते थे संगठनकर्ता। जबकि मायावती को तो दलित का नेता कहा जाता था!सियासी हलकों में पिछले दो साल से यह यक्ष प्रश्न लगातार उछल रहा है कि मायावती की भाजपा से हमदर्दी के पीछे कोई डर है या सौदेबाजीl