अम्बेडकर नगर: बच्चे के जीवन में शुरुआती दिन हजार स्वस्थ्य जीवन का आधार

बच्चे के जीवन में शुरुआती दिन हजार स्वस्थ्य जीवन का आधार

👉राजकीय मेडिकल कॉलेज तिर्वा, कन्नौज में दो दिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन

कन्नौज ✍️
मातृ शिशु एवं छोटे बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए राजकीय मेडिकल कालेज तिर्वा,कन्नौज सभागार में दो दिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उद्वघाटन हेड आफ डिपार्टमेंट कम्यूनिटी मेडिकल डा.डी.एस.मार्तोलिया ने किया। इस प्रशिक्षण में जिला अस्पताल कन्नौज व विनोद दीक्षित चिकित्सालय के डॉक्टरों एवं नर्सों को मातृ,नवजात एवं शिशु पोषण सेवा एवं गुणवत्ता सुधार से संबंधित प्रशिक्षण दिया गया।प्रशिक्षण के दौरान एलाइव एण्ड थ्राइव संस्था के सीनियर प्रोग्राम मैनेजर राजेन्द्र प्रसाद ने कहा कि बच्चों को कुपोषण से बचाना है तो उसके गर्भ में आने के साथ ही बचाव शुरू करना होगा। क्योंकि बच्चे के मां के पेट में आने से शुरू होकर 2 साल तक होने यानि एक हजार दिन में यह समस्या सबसे ज्यादा देखने को मिलती है। बच्चे के एक हजार दिन उसके पूरे जीवन के स्वास्थ्य की रूपरेखा तय करते हैं। इस दौरान हुआ स्वास्थ्यगत नुकसान पूरे जीवन चक्र पर असर डालता है। इसलिए गर्भावस्था के दौरान विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है। इस प्रशिक्षण के माध्यम से हमें यह सीखने का मौका मिलता है। कि मां को कैसा भोजन दें। जिससे कि 2 वर्ष तक मां और नवजात दोनों के लिए पर्याप्त पोषण मिलता रहें।
प्रशिक्षक डा.तनु मिधा ने प्रशिक्षण के दौरान स्तनपान कराने के सही तरीकों व गर्भावस्था के दौरान जरूरी पोषण,गर्भ के साथ रखी जाने वाली सावधानियां आदि की जानकारी देते हुए कहा कि कुपोषण चक्र को तोड़ने एवं मातृ मृत्यु दर में कमी लाने के लिए मातृ पोषण की भूमिका सबसे अहम है। शिशु के मस्तिष्क का 70% विकास गर्भकाल में ही हो जाता है। इसलिए अगर माता कुपोषित होगी, तो उसकी संतान भी अल्पवजनी एवं मानसिक रूप से कमजोर होगी। उन्होंने गर्भावस्था में किस तरह से पोषण की जरूरत को पूरा किया जाए इस पर भी विस्तार पूर्वक चर्चा की।
प्रशिक्षक डा.नरेन्द्र सिंह ने बताया कि जब बच्चा जन्म के बाद छह महीने का हो जाता है तो समुचित विकास के लिए प्रोटीन के अलावा कई पोषक तत्वों की जरूरत होती है। ऐसे में छह महीने के बाद बच्चों को स्तनपान के साथ-साथ थोड़ी मात्रा में ऊपरी आहार भी दिया जाना चाहिए। 
उन्होंने बताया कि छह से नौ माह के बच्चे को माँ के दूध के साथ दलिया, आटे या सूजी का हलवा, सूजी की खीर, मसला हुआ केला, मसला हुआ दाल – चावल, खिचड़ी एक चम्मच घी और तेल अवश्य दें | इसके साथ ही मौसमी फल भी दें । जैसे जैसे बच्चा बड़ा हो खाने की मात्रा बढ़ाते रहें। नौ माह की आयु के बाद बच्चे को स्वयं खाना खाने को दें। पहले तो वह खाने को गिरायेगा लेकिन बाद में वह धीरे-धीरे खाने लगेगा । जैसे – जैसे बच्चा बड़ा हो उसे घर का बना हुआ जो परिवार के अन्य सदस्यों के लिए बनता है वहीँ भोजन बच्चे को दें।
इस मौके पर जिला अस्पताल के चिकित्साधीक्षक डा.शक्ति वसु ने कहा कि इस प्रशिक्षण के माध्यम से परिचारिकाओं की दक्षता में गुणात्मक वृद्धि होगी। जिससे मातृ एवं नवजात शिशु के स्वास्थ्य के सभी लक्ष्यों को आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। इस तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन सभी स्वास्थ्य केंद्रों एवं सभी स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का होना चाहिए।
इस दो दिवसीय प्रशिक्षण के मौके जिले के विभिन्न स्वास्थ्य केन्द्रों के डाक्टर, ए एन एम,स्टाफ नर्स आदि मौजूद रहे।

👉राजकीय मेडिकल कॉलेज तिर्वा, कन्नौज में दो दिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन

कन्नौज ✍️
मातृ शिशु एवं छोटे बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए राजकीय मेडिकल कालेज तिर्वा,कन्नौज सभागार में दो दिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उद्वघाटन हेड आफ डिपार्टमेंट कम्यूनिटी मेडिकल डा.डी.एस.मार्तोलिया ने किया। इस प्रशिक्षण में जिला अस्पताल कन्नौज व विनोद दीक्षित चिकित्सालय के डॉक्टरों एवं नर्सों को मातृ,नवजात एवं शिशु पोषण सेवा एवं गुणवत्ता सुधार से संबंधित प्रशिक्षण दिया गया।प्रशिक्षण के दौरान एलाइव एण्ड थ्राइव संस्था के सीनियर प्रोग्राम मैनेजर राजेन्द्र प्रसाद ने कहा कि बच्चों को कुपोषण से बचाना है तो उसके गर्भ में आने के साथ ही बचाव शुरू करना होगा। क्योंकि बच्चे के मां के पेट में आने से शुरू होकर 2 साल तक होने यानि एक हजार दिन में यह समस्या सबसे ज्यादा देखने को मिलती है। बच्चे के एक हजार दिन उसके पूरे जीवन के स्वास्थ्य की रूपरेखा तय करते हैं। इस दौरान हुआ स्वास्थ्यगत नुकसान पूरे जीवन चक्र पर असर डालता है। इसलिए गर्भावस्था के दौरान विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है। इस प्रशिक्षण के माध्यम से हमें यह सीखने का मौका मिलता है। कि मां को कैसा भोजन दें। जिससे कि 2 वर्ष तक मां और नवजात दोनों के लिए पर्याप्त पोषण मिलता रहें।
प्रशिक्षक डा.तनु मिधा ने प्रशिक्षण के दौरान स्तनपान कराने के सही तरीकों व गर्भावस्था के दौरान जरूरी पोषण,गर्भ के साथ रखी जाने वाली सावधानियां आदि की जानकारी देते हुए कहा कि कुपोषण चक्र को तोड़ने एवं मातृ मृत्यु दर में कमी लाने के लिए मातृ पोषण की भूमिका सबसे अहम है। शिशु के मस्तिष्क का 70% विकास गर्भकाल में ही हो जाता है। इसलिए अगर माता कुपोषित होगी, तो उसकी संतान भी अल्पवजनी एवं मानसिक रूप से कमजोर होगी। उन्होंने गर्भावस्था में किस तरह से पोषण की जरूरत को पूरा किया जाए इस पर भी विस्तार पूर्वक चर्चा की।
प्रशिक्षक डा.नरेन्द्र सिंह ने बताया कि जब बच्चा जन्म के बाद छह महीने का हो जाता है तो समुचित विकास के लिए प्रोटीन के अलावा कई पोषक तत्वों की जरूरत होती है। ऐसे में छह महीने के बाद बच्चों को स्तनपान के साथ-साथ थोड़ी मात्रा में ऊपरी आहार भी दिया जाना चाहिए। 
उन्होंने बताया कि छह से नौ माह के बच्चे को माँ के दूध के साथ दलिया, आटे या सूजी का हलवा, सूजी की खीर, मसला हुआ केला, मसला हुआ दाल – चावल, खिचड़ी एक चम्मच घी और तेल अवश्य दें | इसके साथ ही मौसमी फल भी दें । जैसे जैसे बच्चा बड़ा हो खाने की मात्रा बढ़ाते रहें। नौ माह की आयु के बाद बच्चे को स्वयं खाना खाने को दें। पहले तो वह खाने को गिरायेगा लेकिन बाद में वह धीरे-धीरे खाने लगेगा । जैसे – जैसे बच्चा बड़ा हो उसे घर का बना हुआ जो परिवार के अन्य सदस्यों के लिए बनता है वहीँ भोजन बच्चे को दें।
इस मौके पर जिला अस्पताल के चिकित्साधीक्षक डा.शक्ति वसु ने कहा कि इस प्रशिक्षण के माध्यम से परिचारिकाओं की दक्षता में गुणात्मक वृद्धि होगी। जिससे मातृ एवं नवजात शिशु के स्वास्थ्य के सभी लक्ष्यों को आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। इस तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन सभी स्वास्थ्य केंद्रों एवं सभी स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का होना चाहिए।
इस दो दिवसीय प्रशिक्षण के मौके जिले के विभिन्न स्वास्थ्य केन्द्रों के डाक्टर, ए एन एम,स्टाफ नर्स आदि मौजूद रहे।

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