अम्बेडकर नगर : पीड़ितों को नहीं मिल रहा न्याय , पुलिस की कार्यशैली पर सवालिया निशान

पीड़ितों को नहीं मिल रहा न्याय , पुलिस की कार्यशैली पर सवालिया निशान

अंबेडकरनगर | प्रदेश की योगी सरकार अपराध नियंत्रण एवं कानून का राज स्थापित करने का चाहे जो भी दावा करे, लेकिन सच्चाई यह है कि राज्य की पुलिस के काम करने का ढंग नहीं बदला है। थानों में तैनात पुलिसकर्मी आज भी गंभीर मामलों के मुकदमों को नहीं दर्ज कर रहे। कई मामलों में न्यायपालिका को हस्तक्षेप करना पड़ रहा है। पीडि़त लोग न्यायपालिका के जरिये न्याय पाने की तलाश में भटक रहे हैं। वहीं दूसरी ओर पुलिस के लचर रवैये से अपराधियों के हौसले बुलंद हैं।
हर दिन दाखिल हो रहे पांच वाद
यदि जिले के आंकड़े पर नजर डालें तो पुलिस के कारनामों की पोल खुल जाती है। सरकार के दावे पूरी तरह झूठे नजर आते हैं। कानून के मुताबिक जिले के सभी थाने दीवानी न्यायालय के मजिस्ट्रेटों के अधीन किए गए हैं। दीवानी न्यायालय में प्रतिदिन प्रत्येक कोर्ट में 5 से 7 वाद धारा 156 (3) के तहत दाखिल हो रहे हैं। न्यायाधीश गण अन्य वादों के बजाय इस तरह के वादों को निस्तारित करने में समय देने को मजबूर हैं। आंकड़ों पर नजर डालें तो इस समय दीवानी न्यायालय में धारा 156 (3) के लगभग 15 सौ वाद लंबित हैं।सभी में कमोबेश एक ही आरोप है कि थाने की पुलिस को तहरीर देने पर भी मुकदमा नहीं दर्ज किया गया। न्यायालय अपनी प्रक्रिया के तहत थाने से रिपोर्ट लेता है। इसके बाद मजिस्ट्रेट द्वारा मुकदमा पंजीकृत कर विवेचना करने का आदेश दिया जाता है। इस आदेश के बाद भी हालत यह है कि काफी दौड़धूप के बाद ही मुकदमा दर्ज किया जाता है। इतनी प्रक्रिया पूर्ण करने में पीडि़त को कम से कम दो से तीन माह का समय लग जाता है। इसका फायदा अपराध करने वाले को मिलने की सम्भावना प्रबल हो जाती है और उसके हौसले बुलन्द हो जाते है।पुलिसकर्मियों की कार्यशैली लगातार सवालों के घेरे में हैं और अब इस फेहरिस्त को आगे बढ़ाते हुए अकबरपुर कोतवाली पर भी सवालिया निशान लग रहा है। जानकारी के मुताबिक कुछ दिन पहले ही लॉकअप के अंदर बंद किए अपराधी को सपा नेता द्वारा अंदर घुसकर मारा पीटा गया परंतु कार्यवाही के नाम पर पुलिस शून्य नजर आई। गत दिवस पुलिस अधीक्षक कार्यालय में युवती द्वारा जहर खाकर आत्महत्या करने का प्रयास किया गया। शायद उसके पहले वह न्याय की गुहार लगा चुकी थी अगर उसे न्याय मिला होता है तो ऐसा कृत्य करने को वह मजबूर न होती। लगभग 1 सप्ताह पहले पार्क में हुए विवाद को लेकर मृत्यु हो जाती है और गिरफ्तारी तथा मुकदमा दर्ज करने के लिए लोगों को सड़क पर उतरना पड़ता है उनकी आवाज को दबाने के लिए पुलिस बल का भी प्रयोग किया गया। ऐसे और कई मामले हैं जिसमें जनता को न्याय पाने के लिए सड़क जाम धरना प्रदर्शन करने के पश्चात भी न्याय मिल पाना अंबेडकर नगर जनपद में मुश्किल है। यहां यह कहावत चरितार्थ होती है “अंधेर नगरी चौपट राजा”। पुलिस विभाग के क्रियाकलापों को देखते हुए यह प्रतीत होता है कि पुलिस अधीक्षक के आदेश और निर्देश इनके लिए ना के बराबर है। अगर यही स्थिति जनपद की रह गई तो जनपद में अपराध की बाढ़ आ जाएगी। इसके लिए पुलिस विभाग को अपने कर्तव्य के प्रति ईमानदारी बरतनी होगी। कुछ बुद्धिजीवियों द्वारा नाम न छापने की शर्त पर कहा गया तहसील दिवस और थाना समाधान दिवस पर जो भी फरियादी प्रार्थना पत्र देते हैं वह महज चेक समझा जाता है किस प्रार्थना पत्र की क्या कीमत है यह उसके जिम्मेदार अधिकारी तय करते हैं। आखिर किस प्रकार योगी सरकार जनता को दी जाएगी न्याय। जब कोतवाली परिसर के लॉकअप के अंदर फरियादी जोकि मारपीट की घटना में बंद हुआ वह नहीं सुरक्षित है तो ऐसी स्थिति से गुजर रही जनपद की व्यवस्था क्या आम जनता को न्याय दिला पाएगी इस पर हम कल्पना कर सकते हैं।

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