धर्मनगरी को प्लास्टिक मुक्त बनाने की मुहीम ‘से नो टू प्लास्टिक’ पर काम कर रही है ब्लिस की संस्थापक अंजलि

हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
दूरभाष – 9416191877

कुरुक्षेत्र : धर्मनगरी से 2000 किलोमीटर दूर कर्नाटक के बेलगाम में जन्मी एक महिला ने धर्मनगरी कुरूक्षेत्र को अपनी कर्मभूमि बना कर 20 साल दिन रात मेहनत करके आज शिखर पर पहुँचने का काम किया है। बात हो रही है कुरूक्षेत्र कि प्रमुख समाजसेविका व नामचीन स्कूल सैंट थोमस कोंवेन्ट स्कूल कि प्रबंध निदेशिका अंजलि मारवाह कि जिसने शिक्षा के क्षेत्र के साथ साथ से नो टू प्लास्टिक यानि प्लास्टिक को न अपनाये धर्मनगरी प्लास्टिक मुक्त हो पर बहुत काम कर रही है । अंजलि ने धर्मनगरी के साथ साथ आसपास के क्षेत्र में खूब नाम कमाया है । स्कूल को ऊँचाईयों तक पहुँचाने में इनकी मेहनत के साथ साथ इनका तजुर्बा और अपनों का मार्गदर्शन भी बहुत काम आया । अंजलि बताती है की वो तो कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से शिक्षा ग्रहण करने आयी थी , सपने में भी नही सोचा था की धर्मनगरी ही कर्मभूमि बनेगी। यहाँ की माटी उन्हें यह मौका देगी की जिस धरा पर शिक्षा ग्रहण की वहाँ वो भविष्य के कर्णधार तेयार करेगी वर्ष 2001 में कुरूक्षेत्र में स्कूल कि शुरआत हुई अब शिक्षा के साथ साथ समाजसेवा भी कर रही हूँ। शिक्षा के क्षेत्र के साथ साथ समाजिक कार्य करने के लिए ब्लिस संस्था का गठन किया गया जिसका मोटो रखा गया (गॉड ग्रेस ) संस्था ( से नो टू प्लास्टिक ) पर मुख्य रूप से कार्यरत है।ब्लिस संस्था का गठन उन्होंने अपनी तीन सहेलियों के साथ मिलकर किया , आरती सूरी , रजनी व लक्ष्मी अरोड़ा जिन्होंने अंजलि के साथ मिलकर आमजन प्लास्टिक के बैग्स का इस्तमाल न करे उन्हें जागरूक करने के लिए निरंतर इस पर कार्य कर रही है, संस्था अब तक एक लाख से ज्यादा जूट बैग्स बाँटने का कार्य कर चुकी है। संस्था द्वारा धर्मनगरी में कई बार रेली निकाल कर आमजन को जगाने का काम कर रहे है। संस्था द्वारा अब तक 6 बार ब्लड डोनेशन केम्प लगा कर सेंकडो यूनिट ब्लड दान का काम किया है। करोना में संस्था द्वारा जरुरतमंदो को राशन बंटवाने का कार्य रेड क्रोस के साथ मिलकर किया गया। ब्लिस द्वारा निशुल्क हेल्थ चेकअप केम्प भी आयोजित किये जाते है। अंजलि कहती है की मनुष्य जीवन के लिए भलाई सबसे बड़ी ताकत है। भलाई या अच्छाई सबसे सुंदर स्वरूप है। जो व्यक्ति जीवन में भलाई के गुण अपनाते हैं उनमें बड़े मौलिक बदलाव नजर आते हैं। मानव जीवन के लिए अच्छाई एक अटूट अंग है। महिलाओ के लिए भी इनके द्वारा काम किया जा रहा है। जिसकी शुरात अपने स्कूल से करती है जहाँ 60 से ज्यादा महिलाओ को रोज़गार देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया जा रहा है, इसी के साथ टीचर्स ट्रेनिग करवा कर एक्सपर्ट्स से मार्गदर्शन दिलवाया जा रहा है।

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