रशिया, यूक्रेन, क्रीमिया आदि देशों से आए कलाकारों ने बिखेरी भारतीय संस्कृति और कला की छटा

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।

परमात्मा से दिल का संबंध जोड़ें बिना उसके सच्चे बच्चे नहीं कहला सकते : बीके संतोष दीदी।
रशियन कलाकारों ने वसुधैव कुटुंबकम, स्वर्णिम भविष्य का स्वर्णिम मंत्र दिया।

कुरुक्षेत्र, 13 मार्च :
प्रजापति ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय कुरुक्षेत्र में रशियन कलाकारों ने अपनी प्रतिभा का जौहर दिखा कर मंच से ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का संदेश दिया। ‘वसुधैव कुटुंबकम’ अर्थात भारतीय संस्कृति का गायन संपूर्ण विश्व में है। विश्व के कोने-कोने में अनेक लोग भारतीय संस्कृति, कला और आध्यात्मिक मूल्यों को अपना कर जीवन यापन कर रहे हैं, जिसका सुंदर नजारा ब्रह्माकुमारीज विश्व शांति धाम कुरूक्षेत्र सेवा केंद्र में देखने को मिला। रशिया, यूक्रेन, क्रीमिया आदि देशों से आए कलाकारों ने भारतीय संस्कृति और कला की छटा बिखेरी। मंच संचालन करते हुए बीके सुदर्शन बहन ने बताया कि यह वही रशियन कलाकारों का समूह है, जिन्हें राष्ट्रपति भवन में भी सम्मानित किया जा चुका है। यह डिवाइन ग्रुप अपनी कला के माध्यम से नैतिकता, सदाचार और खुशियां भरा जीवन जीना सीखा रहा हैं। इससे पहले कार्यक्रम की मुख्यातिथि और सूत्रधार रूस से पधारी बीके संतोष दीदी को पुष्प गुच्छ भेंट कर राजयोगिनी बीके सरोज बहन ने सम्मानित किया और सभागार में उपस्थित सभी बहन भाइयों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि डिवाइन लाइट ग्रुप कुरुक्षेत्र की भूमि पर पहुंचा है, यह हम सबके लिए गर्व की बात है। इन्होंने विदेश में रहते हुए भी ज्ञान की ज्योत जला कर वसुधैव कुटुंबकम की भावना जागृत की है। मुख्यातिथि बीके संतोष दीदी ने ब्रह्माकुमारी सरोज बहन और आए हुए सभी का धन्यवाद करते हुए बताया कि हम आज बहुत तरक्की कर रहे हैं, फिर भी बीमारियां और दर्द बढ़ते जा रहे हैं। क्या यह संसार प्रभु की रचना कह सकते हैं। उन्होंने बताया कि जब तक हम परमात्मा के साथ दिल का संबंध नहीं जोड़ेंगे, तब तक परमात्मा के सच्चे बच्चे नहीं कहला सकते। कलाकारों ने एक फरिश्ता आया…, निराकार शिव है आए गीता ज्ञान सुनाएं…, झलक तुम्हारी हो प्यारे भगवन….., कौन कहते हैं भगवान आते नहीं…. गीत और नृत्य के माध्यम से अपने पापों को भस्म करने का संदेश दिया। मंच पर सभी बीके बहनों ने शिव ध्वज लहराया और मेडिटेशन की अनुभूति करवाई। सभागार में बैठे नन्हे बच्चों को मंच पर बुला कर हाथ की पांच उंगलियां का महत्व बता कर एकता का संदेश दिया। रशियन भाषा में गीत नृत्य से चाय की केतली को भी दर्शा कर परिवार को बांधने का संकेत दिया। ‘एक ओंकार सतनाम करता पुरख’ गुरबाणी द्वारा निर्मोही, निर्वेर बनने की सीख दी। परमात्मा ने जो हमें सुंदर हाथ दिए हैं, वे सदा दूसरों की मदद, रक्षा, निर्माण, सहयोग, प्रेम, एकता के लिए हो, परंतु आज मनुष्य ने इसे उल्टा कर दिया। एक्शन सॉन्ग के माध्यम से बताया कि यही हाथ सदा बदला लेने की जगह क्षमा करना सीखें। देश मेरा रंगीला…, बचपन के दिन भुला ना देना… जैसे मधुर गीतों द्वारा सब को मंत्र मुग्ध कर दिया। कलाकारों द्वारा पंजाब, हरियाणा, हिमाचल की संस्कृति को लोक नृत्य द्वारा प्रस्तुत किया गया। बीके संतोष दीदी ने रंगमंच का सूत्रधार करते हुए कहा कि जीवन को शक्तिशाली और सुंदर बनाने के लिए मेडिटेशन भी अति आवश्यक है। जब हम परमात्मा को याद करते हैं, तो पूरा विश्व हमें एक ही दिखाई देता है। सभी कलाकारों का परिचय करवाते हुए उन्होंने बताया कि यह हर रोज मेडिटेशन करने वाली योगी तपस्वी आत्माएं हैं, जो जन-जन को अपनी संस्कृति कला के माध्यम से ईश्वरीय संदेश देते हैं और सभी कलाकारों का संक्षिप्त परिचय दिया। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान जन गण मन के साथ किया गया। केंद्र प्रभारी राजयोगिनी सरोज बहन ने धन्यवाद देते हुए कहा कि आपने अनेक कल्चरल प्रोग्राम देखे हैं, परंतु ऐसी दिव्यता कहीं भी देखने को नहीं मिलती। भारतीय संस्कृति का अनोखा अनूठा उदाहरण यहां देखने को मिला है।

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