यौन उत्पीड़न से बचने के लिए जागरुकता बहुत ही ज़रूरीः प्रो. मंजूला चौधरी

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।

कुवि में यौन उत्पीड़न जागरूकता पर व्याख्यान सत्र आयोजित।

कुरुक्षेत्र, 3 सितम्बर : दूरस्थ एवं ऑनलाइन शिक्षा केंद्र की निदेशक प्रो. मंजुला चौधरी ने कहा कि यौन उत्पीड़न से बचने के लिए जागरुकता बहुत ही ज़रूरी है। कार्यस्थल व समाज में महिलाओं के व्यवहार में मिथक धारणाएँ देखी जाती है इन धारणाओं के कारण महिलाओं का शोषण निरंतर होता रहता है। जब भी कोई इंसान किसी महिला के प्रति ग़लत धारणा को जन्म देता है तो उसे उसकी जगह पर अपने आप को देखना चाहिए। उन्होंने महिलाओं को आग्रह किया कि वो अपने कार्यस्थल पर किसी का दबाव सहन न करें।
वे कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की आंतरिक शिकायत समिति द्वारा इंडिक स्टडीज संकाय के छात्रों और शिक्षकों के लिए कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न विषय पर आयोजित जागरूकता कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता बोल रही थी। इस अवसर पर विधि विभाग के विद्यार्थियों ने नुक्कड़ नाटक की प्रस्तुति दी।
उन्होंने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को रोकने, निषेध करने और निवारण के लिए संवैधानिक उपायों पर विचार-विमर्श किया। उन्होंने इस विषय पर स्पष्ट और सटीक दृष्टिकोण देते हुए विस्तार से बात की, जहाँ लड़कियों को अनुचित सामाजिक नियंत्रण, भेदभाव और वर्चस्व सहना पड़ता है, और लड़कों को भावुक, कोमल या भयभीत होने से हतोत्साहित किया जाता है। उन्होंने छात्रों को समझाया कि उत्पीड़न महिलाओं के बारे में नहीं है, यह लोगों के बारे में है।
इंडिक स्टडीज संकाय की अधिष्ठाता प्रोफेसर कृष्णा रंगा ने युवाओं में लिंग-संवेदनशील व्यवहार के बारे में जागरूकता पैदा करने और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए समतावादी व्यवहार को विकसित करने पर जोर दिया। उन्होंने विभाग में सहयोग के लिए आंतरिक शिकायत समिति की अध्यक्ष प्रो. सुनीता सरोहा का आभार व्यक्त किया।
कुवि की आंतरिक सहायक समिति की अध्यक्ष प्रो. सुनीता सरोहा ने कहा कि कार्यस्थल पर उत्पीड़न किसी भी रूप में हो सकता है, चाहे वह मौखिक हो या शारीरिक, जिस पर रोक लगनी चाहिए। उन्होंने यौन उत्पीड़न अधिनियम, 2015 के विवरण साझा करके छात्रों को प्रावधानों और दंडों के बारे में जागरूक किया। उन्होंने छात्रों को शिकायत प्रक्रिया और ऐसे मामलों के लिए हेल्पलाइन नंबर के बारे में भी बताया।
प्रेरक व्याख्यान के बाद एक प्रश्न-उत्तर सत्र हुआ, साथ ही एक बातचीत सत्र भी हुआ जहां छात्रों ने अपने विचार साझा किए। कार्यक्रम को ललित कला विभाग के अध्यक्ष प्रो. गुरचरण सिंह ने कोआर्डिनेट किया। इस विचार- विमर्श का उद्देश्य छात्र प्रतिभागियों को उत्पीड़न के मुद्दों, पूर्वाग्रहों और प्रचलित संवेदनशीलताओं के बारे में जानकारी प्रदान करना था। उपस्थित लोगों ने विश्वविद्यालय की यौन उत्पीड़न नीति के माध्यम से कार्यस्थल पर विभिन्न उत्पीड़न चिंताओं को पहचानने और संबोधित करने में बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्राप्त की।
इस अवसर पर प्रो. कृष्णा रंगा, प्रो. भगत सिंह, प्रो. ललित गौड़, प्रो. अनामिका गिरधर डॉ. गुरुचरण सिंह, डॉ. संत लाल, डॉ. आरती श्योकंद, प्रो. शुचिस्मिता सहित शोधार्थी और विद्यार्थी मौजूद थे।

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