आज़मगढ़:104वीं: बीपी मंडल,जिनकी सिफारिशों ने देश की तस्वीर व ओबीसी की तकदीर बदल दिया

रिपोर्ट पदमाकर पाठक

104वीं: बीपी मंडल,जिनकी सिफारिशों ने देश की तस्वीर व ओबीसी की तकदीर बदल दिया

आजमगढ़। मंडल कमीशन का नाम तो लगभग सभी सुनते रहे हैं। यह वही कमीशन है, जिसकी रिपोर्ट के आधार पर केंद्र की नौकरियों में पिछड़े वर्ग का आरक्षण सुनिश्चित हुआ। आज इन्हीं बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल (बीपी मंडल) की 104वीं जयंती है। उन्हें पिछड़ा वर्ग के नायक के तौर पर याद किया जाता है, जिनकी सिफारिशों ने वंचितों को मुख्यधारा में लाने में ऐतिहासिक परिवर्तन का काम किया।

पिता भी थे क्रांतिकारी विचारों के धनी

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और भारत सरकार द्वारा गठित दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष बीपी मंडल का जन्म 25 अगस्त,1918 को बनारस में हुआ।वे काफी धनी व जमींदार परिवार से थे और उनके पिता रासबिहारी लाल मंडल भी राजनीति में सक्रिय थे। तब रासबिहारी लाल मंडल वो व्यक्ति थे, जिन्होंने पिछड़ी जातियों के लिए जनेऊ पहनने की मुहिम चलाई थी।वैसे तो कहा जाता रहा कि ये काम प्रतिक्रियावादी था, लेकिन असल में यह एक पहल थी, सामाजिक रुढ़ियों को तोड़ने व वर्णव्यवस्था की ऊँच-नीच की व्यवस्था में सुधार लाने की।इनका पैतृक स्थान सहरसा (अब मधेपुरा) के मुरहो स्टेट में था।दुर्भाग्य रहा कि इनके पिता जी बनारस में स्वास्थ्य लाभ ले रहे थे, उसी दौरान वे स्वर्ग सिधार गए। जिस दिन इनके पिता की मृत्यु हुई, उसी दिन इनका जन्म हुआ।

स्कूल से छेड़ी बदलाव की मुहिम

पिता के रौब और क्रांति के बीच ही बीपी मंडल की परवरिश हुई।यही कारण है कि वे खुद भी स्कूल के जमाने से ही वंचितों के हक में बोलने लगे थे। शुरुआती पढ़ाई बिहार के मधेपुरा से करने के बाद छात्र बीपी मंडल दरभंगा आ गए। यहां से उनका सामाजिक राजनीति में रुझान और साफ दिखने लगा था। तब जातियों में भेदभाव का दौर था, जो स्कूल में भी दिखता था।तथाकथित अगड़ी जातियां ऊपर या आगे बैठतीं, और बाकियों को नीचे या पीछे की ओर बैठकर पढ़ना होता था। कई दूसरी समस्याएं भी थीं।बीपी मंडल ने स्कूल में इन सबके खिलाफ आवाज हुई और वहीं से बदलाव शुरू हुआ। बीपी मंडल स्कूल के जमाने से ही वंचितों के हक में बोलने लगे थे।

राजनीति की शुरुआत

साल 1952 में भारत में हुए पहले आम चुनाव में वे मधेपुरा से बिहार विधानसभा के सदस्य चुने गए।वे तब कांग्रेस पार्टी से निर्वाचित हुए थे। दस सालों बाद बीपी मंडल दूसरी बार विधायक बने और इसी दौरान साल 1965 में उन्होंने पिछड़ी जातियों के खिलाफ पुलिसिया अत्याचार को लेकर कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और सोशलिस्ट पार्टी का हिस्सा बन गए। साल 1967 में वे लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुए। इस दौरान कई उतार -चढ़ाव आए और वे साल 1968 में बिहार के मुख्यमंत्री बन गए। ये मात्र बिहार के मात्र 51 दिनी मुख्यमंत्री रहे। इससे पूर्व इनके परममित्र सुशील बाबू (कोयरी) 3 दिन के मुख्यमंत्री इन्हीं के परामर्श पर बने।

सदन में दिलाया सम्मान

मुख्यमंत्री काल के दौरान विधानसभा में कई नाटकीय बातें होती रहीं। इस दौरान मंडल लगातार अगड़ी जातियों की अजीबोगरीब टिप्पणियों पर आपत्ति लेते रहे। जैसे कई बार सदस्यों के ‘ग्वाला’ शब्द कहने पर उन्होंने तुरंत एतराज जताया। आखिरकार बात बीपी मंडल के ही पक्ष में जाकर रुकी और सभापति ने सदन में यादव जाति के लिए इस शब्द के इस्तेमाल को असंसदीय मान लिया। पिछड़ी जातियों के प्रति तथाकथित ऊँची जातियों की दुर्भावना का एक प्रमाण मिलता है। एक बार बरौनी रिफाइनरी से तेल बहकर गंगा नदी में चला गया। रासायनिक गुणधर्म के कारण गंगा के पानी मे आग लग गयी। उस समय बीपी मण्डल जी बिहार के मुख्यमंत्री थे। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पंडित विनोदानंद झा ने जातिवादी मानसिकता का परिचय देते हुए अत्यंत ही ओछी टिप्पणी करते हुए कहा- “जब नन्हजातियां राजा बनिहैं तो गंगा जी में अगिया लगबै न करी”, यानी जब शूद्र पिछड़ी/दलित जाति का मुख्यमंत्री बनेगा तो गंगा में आग तो लगेगी ही।

मोरारजी देसाई ने बीपी मंडल को पिछड़ा वर्ग आयोग का बनाया अध्यक्ष

1 जनवरी, 1979 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने बीपी मंडल को पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष नामित किया। इस जिम्मेदारी को उन्होंने काफी शानदार तरीके से निभाते हुए पूरी तरह अध्ययन किया।इस दौरान उन्होंने रिपोर्ट तैयार करने के लिए पूरे देश का भ्रमण किया और पिछड़ी जातियों की पहचान करते हुए उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने की सिफारिश की। इसी रिपोर्ट को मंडल कमीशन रिपोर्ट कहते हैं।

राजनीति में भी हुआ बदलाव

माना जाता है कि इसके जरिए समाज से जुड़ने के कारण वंचित समुदाय और भी मजबूती से देश से जुड़ सके। बता दें कि मंडल कमीशन की रिपोर्ट आने के बाद ही बिहार और उत्तरप्रदेश समेत देश के कई राज्यों से पिछड़ी जातियों के नेता आगे आने लगे। इसे भारतीय राजनीति में साइलेंट रिवॉल्यूशन/मूक क्रांति का दौर भी कहा गया, यानी चुपचाप क्रांति होना। शीर्ष अदालत के निर्णय की बाध्यता को ध्यान में रखते हुए मण्डल ने 52 प्रतिशत ओबीसी की जातियों के लिए सरकारी सेवाओं में 27 प्रतिशत कोटा की सिफारिश के साथ अन्य और 39 सिफारिशें कीं। जिसमें से अभी तक मात्र 2 सिफारिशें- 1.सरकारी सेवाओं में ओबीसी को 27 प्रतिशत कोटा और 2.केन्द्रीय व उच्च शिक्षण -प्रशिक्षण संस्थानों में 27 प्रतिशत कोटा।

लोकतांत्रिक मूल्यों से देश के बड़े समुदाय को और बेहतर तरीके से जोड़ने वाले इस नेता का निधन 13 अप्रैल, 1982 को पटना में हो गया। उनकी इच्छा के मुताबिक ही उनका अंतिम संस्कार पैतृक गांव मुरहो में किया गया। इस तरह बीपी मंडल की कहानी खत्म तो हुई लेकिन पिछड़े वर्ग से आने वाले युवा उन्हें एक नायक की तरह हमेशा याद करते रहेंगे।

वीपी सिंह ने बीपी मण्डल को सामाजिक न्याय का महानायक बना दिये

बीपी मण्डल ने बाकायदा मण्डल कमीशन की सिफारिश को 31 दिसम्बर,1980 को तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानीजैल सिंह को सौप दिए। मण्डल कमीशन की रिपोर्ट लगभग 10 वर्षों तक कांग्रेस के रद्दीखाने में पड़ी रही। 7 अगस्त 1990 को राष्ट्रीय मोर्चा की वीपी सिंह सरकार ने चुनाव घोषणा पत्र के संकल्पों को पूरा करते हुए लागू करने का निर्णय ले लिया। मण्डल आयोग की केवल एक सिफारिश यानि कि सरकारी सेवाओं में अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण लागू करने की घोषणा की जिसकी अधिसूचना 13 अगस्त 1990 को लागू हुयी। केवल सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण की एक संस्तुति लागू क्या हुयी, पूरा देश जल उठा। सारे पदों पर अघोषित आरक्षण से पदासीन लोग रेल-बस फूंकने लगे तथा खुद को जलाने लगे। पूरा सवर्ण समाज उद्वेलित हो उठा कि कैसे इस देश के 60 प्रतिशत भूखे लोगो को खाने की सुविधा दी जायेगी। वीपी सिंह रातोरात राजर्षि से मान सिंह की औलाद हो गए। पूरे देश में नारे लगने लगे कि “राजा नही रंक है,देश का कलंक है”।
रातों रात संघ ने भाजपा को मण्डल के विरुद्ध कमण्डल उठाने का निर्देश दिया। आडवाणी मण्डल के विरुद्ध कमण्डल लेकर रामरथ पर सवार हो गए। देश में मण्डल और कमण्डल के पक्ष में जबर्दस्त ध्रुवीकरण हो गया।मण्डल कमीशन की लड़ाई को सुप्रीम कोर्ट में घसीट लिया गया। कोर्ट ने इसके क्रियान्वयन पर 1 अक्टूबर,1990 को स्टे कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन चीफ जस्टिस श्री एम एच कानिया के नेतृत्व में बहुमत से इसे क्रीमीलेयर की असंवैधानिक बाधा के साथ 16 नवम्बर,1992 को लागू करने का फैसला सुनाया। 10 सितम्बर, 1993 को पीवी नरसिंहा राव की सरकार ने ओबीसी के 27 प्रतिशत कोटा की अधिसूचना जारी किया।
मण्डल साहब ने अपने कठिन परिश्रम से तैयार रिपोर्ट को देकर जहां पिछड़ो के तरक्की की राह खोला वहीं वे इस रिपोर्ट के नाते अमर हो गए। यह अनुचित नहीं कि वीपी सिंह ने मण्डल कमीशन की सिफारिश को लागू कर स्वयं नायक से खलनायक तो बन गए, पर बीपी मंडल को सामाजिक न्याय का महानायक बना दिये।
आज मण्डल साहब और मण्डल कमीशन की देन है कि देश का उपेक्षित वर्ग सत्ता का स्वाद चख रहा है, उसमे जागृति आई है और हर कोई पिछड़े वर्गों को लुभाने की कोशिशों में दिन-रात लगा रहता है। यहां तक कि आज के वर्तमान प्रधानमंत्री जी ने भी केंद्रीय सत्ता पाने के लिए अपनी जाति को गुजरात का मुख्यमंत्री रहते जबरन अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल करवाया।
पिछड़ो में चेतना और सत्ता, सम्मान, सम्पत्ति, शिक्षा, समानता की चाह जागृत करने में मण्डल साहब का जो योगदान है, उसे कभी भी भुलाया नही जा सकता है।
विगत कुछ वर्षों से पिछड़े व पसमांदा वर्ग के संगठन बीपी मण्डल की जयंती “सामाजिक न्याय दिवस” के रूप में मनाना शुरू किए हैं। केन्द्र व राज्य सरकारों के द्वारा 25 अगस्त को सामाजिक न्याय दिवस के रूप में घोषित किया जाना चाहिए।बीपी मण्डल व वीपी सिंह को भारतरत्न से सम्मानित करने चाहिए। देश में 100% रिजर्वेशन की व्यवस्था संवैधानिक व न्यायोचित रहेगी।जातिगत जनगणना के आंकड़े जल्द से जल्द जारी किये जाने चाहिए। ओबीसी, एससी, एसटी के लिए “रिजर्वेशन इन प्रमोशन” लागू करने के साथ इनका बैकलॉग पूरा करने का कदम उठाया जाना चाहिए। सरकारी उपक्रमों व संस्थानों के निजीकरण के कारण ओबीसी, एससी, एसटी का प्रतिनिधित्व प्रभावित हो रहा है, इसलिए निजी क्षेत्रों में भी आरक्षण की व्यवस्था की जानी चाहिए। सभी निजी और सरकारी संस्थानों के सूचना पटल पर उसमें काम करने वाले सदस्यों के जातिवार विवरणों को दर्शाना अनिवार्य किये जाने के साथ “समान शिक्षा और समान स्वास्थ के अधिकारों को तुरंत प्रभाव से लागू किया जाना आवश्यक है।

Read Article

Share Post

VVNEWS वैशवारा

Leave a Reply

Please rate

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

नगर परिषद अपनी जमीन सार्वजनिक करें, धर्म नगरी में शराब शबाब और कबाब पर लगे बैन : योगेश शर्मा

Thu Aug 25 , 2022
हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।दूरभाष – 9416191877 कुरुक्षेत्र, 25 अगस्त : थानेसर नगरपरिषद कि कई जमीनों पर कुछ रसूखदारों ने अपने कब्जे कर रखे हैं। हालात ये हैं कि इंतकाल किसी और के नाम पर है और नगरपरिषद अससेमेंट किसी औऱ के नाम से बना रही है। असल […]

You May Like

advertisement