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अतीत के घोषित आपातकाल से सीखें और आज के अघोषित आपातकाल को उखाड़ फेंकें
खिरिया की बाग(कप्तानगंज)।जमीन-मकान बचाओ संयुक्त मोर्चा के तत्वाधान में 256वें दिन धरना जारी रहा।वक्ताओं ने कहा कि
25-26 जून, 1975 की दरम्यानी रात को तत्कालीन कांग्रेसी प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने आपातकाल की घोषणा की थी. यह कांग्रेस शासन पर कलंक के धब्बे की तरह इतिहास में दर्ज हो गया है. साथ ही, कांग्रेस के विघटन की प्रक्रिया की पृष्ठभूमि भी उसी समय से बनने लगी थी.
उस समय का दौर उथल पुथल का दौर था. नवगठित पार्टी सीपीआई (एम एल) के नेतृत्व में गरीब भूमिहीन किसानों का जुझारू आंदोलन देशव्यापी रुप धारण कर चुका था, एक साल पहले शुरू हुआ छात्र आंदोलन जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में देशव्यापी राजनीतिक जनआंदोलन में बदल चुका था, उसके इर्द गिर्द भाकपा, माकपा को छोड़कर शासक वर्ग की सभी राजनीतिक पार्टियां गोलबंद हो चुकी थीं और कोढ़ में खाज की तरह इंदिरा गाँधी के चुनाव के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आ चुका था. यह थी आपातकाल की घोषणा की पृष्ठभूमि.
आज इतिहास अपने को दोहराता नजर आ रहा है जिसमें सभी पात्रों की भूमिका उलट सी गयी है. उस समय कांग्रेस खलनायक की तरह हो गयी थी, देश के स्वतंत्रता संघर्ष की अग्रणी और भारतीय संविधान के निर्माण में जनतंत्र की पक्षधर पार्टी के लिए यह शर्मनाक घटना मानी जा रही थी और महात्मा गाँधी की हत्या के घृणा का शिकार हुए आरएसएस व जनसंघ से लेकर हर किस्म की समाजवादी पार्टियां जनता के लिए नायक बन गयी थीं. आज पूंजीवादी समाजवादी धारा बिखरकर कुछेक राज्यों की क्षेत्रीय पार्टियों में सिमट गयी है, आरएसएस और (जनसंघ की उतराधिकारी) भाजपा खलनायक बन चुकी हैं और लोगों की उम्मीदें क्षेत्रीय दलों और कांग्रेस के गठबंधन पर टिकी हैं. इस यू टर्न के बावजूद भाजपा के नेता आपातकाल की आलोचना और उसके खिलाफ संघर्ष में अपनी भूमिका की बखान से बाज नहीं आते.
इस अर्थ में आज की परिस्थिति ज्यादा खतरनाक है. जिस काम के लिए इंदिरा गाँधी को आपातकाल की घोषणा करनी पड़ी थी, उतना काम भाजपा की नरेन्द्र मोदी सरकार बिना घोषणा के कर रही है. दरअसल आरएसएस और उसके आनुषंगिक संगठन जन्मजात फासिस्ट संस्थाएं हैं, इन्हें बड़े पूंजीपतियों का एकछत्र समर्थन प्राप्त है और मीडिया का बड़ा हिस्सा बिना सेंसर के सत्ता के तलवे चाटने को तैयार है.
इतिहास के दोहराव का दूसरा पक्ष भी गौर करने लायक है. आज बड़े पूंजीपतियों का राजनीतिक खेमा जयप्रकाश पैदा करने की क्षमता खो चुका है और उसकी जगह इस वर्ग के खिलाफ संघर्षरत किसानों ने ले ली है. कोरोना महामारी के बीच तीन कृषि अध्यादेशों के खिलाफ पंजाब से शुरू हुआ यह आंदोलन राजनीतिक रुप धर लिया है. देश भर में जनता और पूंजीवादी पार्टियों व नेताओं का जुटान इसके इर्द गिर्द तेज होता जा रहा है.
खिरिया की बाग से देश की जनता से अपील करते हैं कि इस कदम को सफल करें, अतीत के घोषित आपातकाल से सीखें और आज के अघोषित आपातकाल को उखाड़ फेकें।
वक्ताओं में राम नयन यादव, नरोत्तम यादव ,राहुल विद्यार्थी दुखहरन राम , राजेश आज़ाद,नकछेद राय, शशिकांत उपाध्याय, सुजय उपाध्याय,सुशीला आदि रहे।
संचालन रामशब्द निषाद और अध्यक्षता तारा देवी ने किया।
द्वारा
राम नयन यादव,
अध्यक्ष, जमीन मकान बचाओ संयुक्त मोर्चा,आजमगढ़