पितृ पक्ष है : अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने का शुभ समय : डा. सुरेश मिश्रा।
हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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कॉस्मिक एस्ट्रो के डायरेक्टर व श्री दुर्गा देवी मन्दिर,पिपली ( कुरुक्षेत्र ) के अध्यक्ष डॉ. सुरेश मिश्रा ने बताया कि अपने पितरों को श्रद्धापूर्वक तर्पण और श्राद्ध देने का पर्व और समय काल “पितृ पक्ष” कहलाता है। श्राद्ध 29 सितंबर 2023 से आरंभ होकर 14 अक्तूबर 2023 तक रहेगें I श्राद्ध को भाद्रपद माह की पूर्णिमा से लेकर आश्विन माह की अमावस्या तक मनाया जाता है I पूर्णिमा का श्राद्ध पहला और अमावस्या का श्राद्ध अंतिम होता है I श्राद्ध संस्कार का वर्णन हिन्दू धर्म के अनेक धार्मिक ग्रंथों में किया गया है I श्राद्ध पक्ष को महालय और पितृ पक्ष के नाम से भी जाना जाता है I जिस हिन्दू माह की तिथि के अनुसार व्यक्ति मृत्यु पाता है उसी तिथि के दिन उसका श्राद्ध मनाया जाता है।
जिस व्यक्ति की तिथि याद ना रहे तब उसके लिए अमावस्या के दिन उसका श्राद्ध करने का विधान होता है।
श्राद्ध का महत्व : हिन्दू धर्म में मान्यता है कि आश्विन कृष्ण पक्ष में पितर पृथ्वी लोक पर आते हैं और अपने हिस्से का भाग अवश्य किसी ना किसी रुप में ग्रहण करते है। सभी पितर इस समय अपने वंशजों के द्वार पर आकर अपने हिस्से का भोजन सूक्ष्म रुप में ग्रहण करते है I भोजन में जो भी खिलाया जाता है वह पितरों तक पहुंच ही जाता है I यहाँ पितरों से अभिप्राय ऎसे सभी पूर्वजों से है जो अब हमारे साथ नहीं है लेकिन श्राद्ध के समय वह हमारे साथ जुड़ जाते है और हम उनकी आत्मा की शांति के लिए अपनी सामर्थ्यानुसार उनका श्राद्ध कर के अपनी श्रद्धा को उनके प्रति प्रकट करते है I अपने स्वर्गवासी पूर्वजों की शान्ति एवं मोक्ष के लिए किया जाने वाला दान एवं कर्म ही श्राद्ध कहलाता है। जिसने हमें जीवन दिया, उसके लिए जिसने हमें जीवन देने वाले को जीवन दिया, उसके लिए तथा जो हमारे कुल एवं वंश का है, उसके लिए। इस प्रकार तीन पीढि़यों तक के लिए किया जाने वाला यज्ञ , पिण्डदान तथा तर्पण (जल-भोजन) ही श्राद्धकर्म कहलाता है।
महर्षि पराशर के अनुसार- देश, काल तथा पात्र में विधि द्वारा जो कर्म तिल, जौ, कुशा और मंत्रों द्वारा श्रद्धापूर्वक किया जाये वही श्राद्ध कहलाता है।
कैसे करें पिण्ड दान ? धार्मिक मान्यतानुसार आश्विन मास के कृष्णपक्ष में पितरों के नाम पर तर्पण व पिण्ड दान देने से पितरों को शांति मिलती है और वह जातक को सुखी रहने का आशीर्वाद देते है। इस दिन सुपात्र ब्राह्मण व पंडितों को श्रद्धापूर्वक भोजन ,मिष्ठान्न वस्त्रादि का दान दक्षिणा सहित देना चाहिए और विशेषकर गाय, कुत्ते या कौवे,चीटियों और अग्नि आदि को भोजन कराना चाहिए।
श्राद्ध की तिथियाँ :
29 सितंबर 2023, शुक्रवार: पूर्णिमा और प्रतिपदा का श्राद्ध
30 सितंबर 2023, शनिवार: द्वितीया श्राद्ध
1 अक्टूबर 2023, रविवार: तृतीया श्राद्ध
2 अक्टूबर 2023, सोमवार: चतुर्थी श्राद्ध
3 अक्टूबर 2023, मंगलवार: पंचमी श्राद्ध
4 अक्टूबर 2023, बुधवार: षष्ठी श्राद्ध
5 अक्टूबर 2023, गुरुवार: सप्तमी श्राद्ध
6 अक्टूबर 2023, शुक्रवार: अष्टमी श्राद्ध
7 अक्टूबर 2023, शनिवार: नवमी श्राद्ध
8 अक्टूबर 2023, रविवार: दशमी श्राद्ध
9 अक्टूबर 2023, सोमवार: एकादशी श्राद्ध
11 अक्टूबर 2023, बुधवार: द्वादशी श्राद्ध
12 अक्टूबर 2023, गुरुवार: त्रयोदशी श्राद्ध
13 अक्टूबर 2023, शुक्रवार: चतुर्दशी श्राद्ध
14 अक्टूबर 2023, शनिवार: सर्व पितृ अमावस्या
गया, गंगा, प्रयाग, कुरुक्षेत्र तथा अन्य प्रमुख तीर्थों में श्राद्ध करने से पितर सर्वदा सन्तुष्ट रहते है। श्राद्ध कर्म में श्रद्धा, शुद्धता, स्वच्छता एवं पवित्रता पर विशेष ध्यान देना चाहिए, इनके अभाव में श्राद्ध निष्फल हो जाता है। श्राद्धकर्म से पितरों को शांति एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है तथा प्रसन्न एवं तृप्त पितरों के आर्शीवाद से हमें सुख, समृद्धि, सौभाग्य, आरोग्य तथा आनन्द की प्राप्ति होती है।
श्रेष्ठ सुयोग्य संतान वही है जो जीवित माता -पिता और बुजुर्गों की सेवा निस्वार्थ भाव से अपना कर्तव्य व दायित्व समझकर श्रद्धा पूर्वक करती है और मरणोपरांत उनके लिए श्राद्ध करते है I