बिहार: नवजात शिशुओं को लेकर सामाजिक व्यवहार में बदलाव को लेकर आयोजित कार्यशाला का समापन

नवजात शिशुओं को लेकर सामाजिक व्यवहार में बदलाव को लेकर आयोजित कार्यशाला का समापन:

-पायलट प्रोजेक्ट के रूप में कसबा का किया गया चयन: शिवशेखर आनंद
-नवजात शिशुओं के अस्तित्व को बनाएं रखने में सरकारी योजना का महत्वपूर्ण योगदान: डॉ सरिता
-नवजात शिशुओं की सुरक्षा एवं देखभाल में व्यवहार का अहम योगदान: मोना सिन्हा

पूर्णिया, 13 अप्रैल।
नवजात शिशुओं को लेकर सामाजिक व्यवहार में बदलाव से संबंधित संवेदीकरण कार्यशाला का आज समापन हो गया। कार्यशाला के अंतिम दिन यूनिसेफ़ की ओर से एसबीसी विशेषज्ञ मोना सिन्हा, स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ सरिता वर्मा सहित कई अन्य के द्वारा मास्टर ट्रेनर को प्रशिक्षित किया गया। इस अवसर पर अनुपम श्रीवास्तव एवं यूनिसेफ़ के स्थानीय सलाहकार शिवशेखर आनंद, सुधाकर सिन्हा, अनूप कुमार झा, डॉ शिवानी दास, शादान अहमद खान, स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ सरिता वर्मा, वर्षा चंदा, निसार अहमद, मोअम्मर हाशमी, राज कुमार गोस्वामी, सीफार के प्रमंडलीय कार्यक्रम समन्वयक धर्मेंद्र कुमार रस्तोगी, कसबा प्रखंड से 12, के नगर से 5, पूर्णिया पूर्व से 4, जिला स्तर से 2, अमौर एवं धमदाहा से एक-एक प्रतिभागी उपस्थित थे।

-पायलट प्रोजेक्ट के रूप में कसबा का किया गया चयन: शिवशेखर आनंद
यूनिसेफ़ के क्षेत्रीय सलाहकार शिव शेखर आनंद ने बताया कि जिला मुख्यालय स्थित निजी होटल में ज़िले के 25 चयनित प्रशिक्षकों को नवजात शिशु के जीवन की सुरक्षा एवं देखभाल के लिए सामाजिक एवं व्यवहार परिवर्तन से संबंधित दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आज समापन हो गया। जिसमें जिला स्तर से 2, कसबा प्रखंड से 12, के नगर से 5, पूर्णिया पूर्व से 4, अमौर एवं धमदाहा से 1 प्रशिक्षक को प्रशिक्षित किया गया है। जिसमें कसबा प्रखंड को पायलट प्रोजेक्ट के लिए तैयार किया गया है। इन सभी प्रशिक्षकों द्वारा स्थानीय प्रखंड की आशा कार्यकर्ता, एएनएम, आशा फैसिलिटेटर, जीविका, आईसीडीएस की ओर से महिला पर्यवेक्षिका एवं आंगनबाड़ी सेविकाओं को प्रशिक्षित किया जाएगा। अगर पायलट प्रोजेक्ट शत प्रतिशत खड़ा उतरा तो ज़िले के सभी प्रखंडों में इसे लागू किया जाएगा।

-नवजात शिशुओं के अस्तित्व को बनाएं रखने में सरकारी योजना का महत्वपूर्ण योगदान: डॉ सरिता
स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ सरिता वर्मा ने बताया कि व्यवहार परिवर्तन मुख्य रूप से चार अलग-अलग स्तरों पर भागीदारी को प्रभावित करता है। अगर कोई गर्भवती महिला प्रसव के लिए स्वास्थ्य केंद्र जाना चाहती है तो उसमें उसके पति, सास या अन्य पारिवारिक सदस्यों की सहमति होती है। ऐसा भी देखने या सुनने को मिलता है कि वह अपने परिवार के विरुद्ध नहीं जाना चाहती है। लेकिन जब परिवार की सहमति मिल जाती तभी वह स्वास्थ्य केंद्र जाने को तैयार होती है। क्योंकि क़भी-कभी ऐसा भी सुनने को मिलता है कि सामाजिक मान्यताओं के खिलाफ घर परिवार के अन्य सदस्य अस्पताल नहीं भेजकर घर पर ही प्रसव कराने का काम करते हैं। जिस कारण जच्चा व बच्चा पर खतरा मंडराने लगता है। बिहार में नवजात शिशुओं के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों के माध्यम से प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान, जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम, प्रसव के दौरान मां की सम्मानजनक देखभाल, विशेष नवजात स्वास्थ्य सेवा इकाई, घर पर नवजात शिशुओं की स्वास्थ्य सेवा, मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना का लाभ मिलता है।

-नवजात शिशुओं की सुरक्षा एवं देखभाल में व्यवहार का अहम योगदान: मोना सिन्हा
सामाजिक व्यवहार में बदलाव (एसबीसी) मामले की विशेषज्ञ मोना सिन्हा ने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि
एसबीसीसी में गुणवत्ता सुधार लाने के उद्देश्य से दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया है। जिसमें नवजात शिशुओं के जीवन की सुरक्षा किस तरह से करनी होती है। इसके साथ ही उसके देखभाल में सामाजिक एवं व्यवहार परिवर्तन किस तरह से होना चाहिए। क्योंकि यूनिसेफ़ के द्वारा नवजात शिशुओं को लेकर बहुत ज़्यादा सतर्कता बरतने का कार्य करती है। जब तक नौनिहालों की उचित देखभाल नहीं की जायेगी तब तक उसकी सार्थकता नहीं हो पाएगी। बच्चों की उचित देखभाल करने के लिए समुचित दक्षताएं और पूर्ण रूप से प्रशिक्षित होना चाहिए। क्योंकि यूनिसेफ सामाजिक और व्यवहारगत परिवर्तन पहलों के माध्यम से सुविधाओं की मांग बढ़ाने को लेकर स्वास्थ्य विभाग के साथ समन्वय स्थापित कर कार्य करती है।

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