बिहार:सही समय पर जांच व उपचार किया जाए तो कालाजार को जड़ से मिटाना मुश्किल नहीं : डॉ आर.पी. मण्डल

सही समय पर जांच व उपचार किया जाए तो कालाजार को जड़ से मिटाना मुश्किल नहीं : डॉ आर.पी. मण्डल

  • कालाजार उन्मूलन कार्यक्रम को लेकर जलालगढ़ पीएचसी में ग्रामीण चिकित्सकों को दिया गया प्रशिक्षण
  • प्राथमिक उपचार के लिए ग्रामीण चिकित्सकों में भूमिका महत्वपूर्ण: डॉ दिलीप

पूर्णिया संवाददाता

कालाजार एक धीमी गति से बढ़ने वाले वाला एक स्थानीय या देसी रोग है जो लीशमैनिया जाति के एक प्रोटोजोअन परजीवी के कारण होता है। परजीवी मुख्य रूप से प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्युन सिस्टम) को संक्रमित करता है और अस्थि मज्जा, प्लीहा और लिवर में अधिक मात्रा में पाया जा सकता है। जिसके मुख्य लक्षणों में बार-बार बुखार का आना, वजन का घटना, अत्यधिक थकान होना, एनीमिया, लिवर व प्लीहा की सूजन शामिल हैं। कालाज़ार से बचाव के लिए कोई टीके उपलब्ध नहीं हैं। हालांकि समय रहते अगर उपचार किया जाए, तो रोगी ठीक हो सकता है। कालाज़ार के मरीज़ों को सरकारी अस्पतालों में उपचार एवं दवा आसानी से उपलब्ध हैं। कालाजार उन्मूलन कार्यक्रम के तहत सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र जलालगढ़ के नजदीक उच्च विद्यालय के सभागार में शनिवार को कालाजार उन्मूलन को लेकर लगभग 40 ग्रामीण चिकित्सकों को प्रशिक्षण दिया गया। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ आर पी मंडल, वेक्टर नियंत्रण पदाधिकारी रविशंकर सिंह, डब्ल्यूएचओ (एनटीडी) के क्षेत्रीय समन्वयक डॉ दिलीप कुमार, स्थानीय जलालगढ़ पीएचसी के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ तनवीर हैदर, केयर इंडिया के डीपीओ चंदन कुमार, जलालगढ़ प्रखंड की केटीएस स्नेहलता, केयर इंडिया के मनीष उपस्थित थे।

सही समय पर जांच व उपचार किया जाए तो कालाजार को जड़ से मिटाना मुश्किल नहीं : डॉ आरपी मण्डल

जिला मलेरिया पदाधिकारी डॉ आरपी मण्डल ने ग्रामीण चिकित्सकों को कालाजार उन्मूलन कार्यक्रम के संबंध में बताते हुए कहा आपके क्षेत्र में किसी भी व्यक्ति को लगातार 15 दिन या उससे अधिक दिनों तक बुखार रहता है तो उसे अविलंब नजदीकी के सरकारी अस्पताल भेज कर उसकी जांच कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दें। ताकि मरीज का समुचित जांच एवं इलाज समय पर हो सके। मरीज के सही समय पर जांच एवं इलाज की बदौलत ही हमलोग कालाजार जैसी बीमारी को रोक सकते हैं। कालाजार बीमारी से पीड़ित मरीज को सरकार द्वारा 7100 रुपये दिए जाते हैं। इसके अलावा आप सभी ग्रामीण स्तर पर इलाज करने के लिए घर-घर जाते हैं। कालाज़ार को रोकने के लिए अभी तक कोई टीका उपलब्ध नहीं है। लेकिन सबसे अच्छा तरीका यह है कि अपने आप को बड़ी मक्खी या रेत मक्खी के काटने से बचाये रखें। अगर ऐसी जगहों की यात्रा करते हैं जहां इस बीमारी के होने की संभावना ज़्यादा होती है तो वहां बाहरी गतिविधियों को गोधूलि या शाम से सुबह तक कम करने की कोशिश करें। क्योंकि इस वक़्त बड़ी मक्खी या रेत मक्खी सबसे ज्यादा सक्रिय रहती हैं। सबसे अहम बात यह हैं कि जिन्हें पहले भी कभी कालाजार हुआ था और इस समय उनके शरीर में कहीं भी दाग धब्बा है तो यह चमड़ी वाले कालाजार (पीकेडीएल) का लक्षण है, तुरंत नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र जाएं।

प्राथमिक उपचार के लिए ग्रामीण चिकित्सकों में भूमिका महत्वपूर्ण: डॉ दिलीप

डब्ल्यूएचओ (एनटीडी) के क्षेत्रीय समन्वयक डॉ दिलीप कुमार ने बताया यह वही ग्रामीण चिकित्सक हैं , जिनके प्राथमिक उपचार के बाद बहुत से ग्रामीणों की जान बचाये जाते हैं, क्योंकि किसी भी दूरदराज के गांवों में जब किसी भी व्यक्ति को कोई गंभीर बीमारी होती है तो उसे बड़े अस्पताल ले जाने में समय लगता है। उस समय यही ग्रामीण चिकित्सक उस व्यक्ति की जान बचाने में सहायक होते हैं, ताकि वह व्यक्ति अस्पताल तक पहुंच सके।
ग्रामीण चिकित्सको को मरीज की देखभाल एवं जांच सहित कई अन्य तरह की सुविधाएं उपलब्ध कराने के बाद विभाग द्वारा प्रति मरीज़ के दर से पारिश्रमिक भी दिया जाता है हैं। लेकिन इसका भुगतान खाते के माध्यम से किया जाता है। हालांकि यह सुविधा उन्ही ग्रामीण चिकित्सकों को मिलता जो लोग स्वास्थ्य विभाग द्वारा दिये गए प्रशिक्षण में शामिल होते हैं। जहां तक संभव हो अपने त्वचा को अच्छी तरह से ढंक कर रखें यानी पूरे कपड़े पहने, कीट नाशक का उपयोग करें, अच्छी स्क्रीनिंग वाले क्षेत्रों में रहें, सोने वाले बिस्तर पर मच्छरदानी का उपयोग करें। किसी भी गांव में कालाजार के मरीज मिलने पर पूरे गांव में तीन साल तक, साल में दो बार प्रत्येक घरों में कीटनाशक का स्प्रे सरकार द्वारा कराया जाता है।

कालाजार के मुख्य लक्षण:

-बुखार अक्सर रुक-रुक कर या तेजी से तथा दोहरी गति से आता है।
-भूख न लगना, पीलापन और वजन में कमी जिससे शरीर में दुर्बलता।
-खून की कमी-बड़ी तेजी से खून की कमी होती है।
-त्वचा-सूखी, पतली होती है तथा बाल झड़ सकते हैं।
-गोरे व्यक्तियों के हाथ, पैर, पेट और चेहरे का रंग भूरा हो जाता है।

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