बिहार: अंतिम असरा शुरू, इस दौरान शब-ए-कद्र की इबादत हजार महीनों से है अफजल ,,,,,,,,,, मौलाना

अंतिम असरा शुरू, इस दौरान शब-ए-कद्र की इबादत हजार महीनों से है अफजल ,,,,,,,,,, मौलाना ।

माहे रमजान के अंतिम दस दिनों के दरमियान 21,23,25, 27 व 29 वीं रात की इबादत हजार महीनों से है अफजल ।

फोटो , मौलाना मुस्सवीर आलम नदवी

अररिया

मुक़द्दश व महीना रमजान का तीसरा व अंतिम असरा यानी आखरी दस दिन जहन्नुम से छुटकारे का असरा शुरू होगया है । उक्त बातें मौलाना मुस्सवीर आलम नदवी ने कही । उन्होंने कहा माह ए रमजान का पूरा महीना अन्य महीनों में से एक विशेष स्थान रखता है । लेकिन अंतिम दस दिनों का महत्व और भी अफजल है । तमाम अकीदतमंद इन अंतिम असरे के दरमियान विशेष इबादत समेत अपने किये गए गुनाहों से मुक्ति व देश के तमाम लोगों में अमन सलामती कायम रहने की दुआ भी करने का एहतमाम करते हैं । उन्होंने कुरआन व हदीश का हवाला देते हुए कहा माह ए रमजान के अंतिम दस दिनों के दरमियान पैग़बर हजरत मोहम्मद साहब अन्य दिनों के मुकाबले में अल्लाह की इबादत करने में मशगूल रहते थे । माह ए रमजान के आखरी असरे यानी अंतिम दस दिनों का सबसे महत्व पूर्ण गुण व विशेषता यह बताई गई है कि इस दौरान शब ए कद्र की रात भी मौजूद है, जो एक हजार महीनों की इबादत से बेहतर है । उन्होंने यह भी कहा कि पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब को इसी रात के दौरान पवित्र पुस्तक कुरआन का सम्पूर्ण सूरह उतारा गया । जिसे सूरह अल कद्र के नाम से जाना जाता है । उन्होंने हदीश के मद्देनजर कहा जो कोई भी ईमान व सवाब की उम्मीद से शब ए कद्र की रात में इबादत करता है तो उसके पिछले तमाम गुनाह माफ कर दिए जाते हैं । इस माह के दरमियान शब ए क़द्र की रात का जिक्र करते हुए कहा कि अल्लाह के रसूल हजरत मोहम्मद साहब ने फरमाया कि रमजानुल मोबारक महीने की अंतिम दस दिनों की विषय संख्यां वाली रात यानी 21, 23, 25, 27, व 29 वीं ताक रात को तलाश करने को कहा गया है । इस रात का इतना महत्व है कि हजरत आयशा रजि अल्लाहु अन्हा के बयान के मुताबिक जब माह ए रमजान का अंतिम असरा शुरू होता तो पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब पुरी रात जाग कर अल्लाह की इबादत करने में मशगूल रहते थे व परिवार के सभी सदस्यों को इस रात की खास एहमियत बताते हुए इबादत करने को लेकर जगाते थे । माह ए रमजान की अंतिम दस दिनों की एक महत्व पूर्ण विशेषता मस्जिद या अपने घरों में अलग थलग इबादत करने के लिए एतिकाफ में बैठना भी है । अंतिम दस दिनों के दौरान अलग थलग रहकर अल्लाह की इबादत करना एतिकाफ कहलाता है । एतिकाफ का शाब्दिक अर्थ रुकना व जमना है । उन्होंने कहा पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब माह ए रमजान के अंतिम असरा के दौरान दस दिनों तक एतिकाफ किया करते थे । लेकिन जिस वर्ष पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब का निधन हुआ था उस वर्ष उन्होंने बीस दिनों का एतिकाफ किया गया था । मोहम्मद साहब ने एतिकाफ करने के संबंध में बताया जो कोई अकीदतमंद अल्लाह के खातिर एक दिन के लिए एतिकाफ करेगा अल्लाह उसको जहन्नुम की आग से निजात दिलाएगा व उनके सभी पिछले गुनाह को माफ कर दिए जाने की बात कही ।

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