बिहार: नाट्य संगीत कार्यशाला 8वा दिन

नाट्य संगीत कार्यशाला 8वा दिन।

शाम की पाठशाला द्वारा पर्यवेक्षण गृह/ बाल सुधार गृह पूर्णिया में चल रहे 15 दिवशीय नाट्य संगीत कार्यशाला के आठवें दिन कार्यशाला में सांस्कृतिक वैज्ञानिक
डॉ अखिलेश कुमार जयसवाल एवं वरिष्ठ रंगकर्मी श्री अजित कुमार सिंह बप्पा ने अलग अलग विषयों पर बच्चो को प्रशिक्षण दिया।

जिसमें प्रथम सत्र में वरिष्ठ सांस्कृतिक वैज्ञानिक डॉ अखिलेश कुमार जायसवाल ने बच्चो को नाट्य लेखन एवं नाट्य लेखन की प्रक्रिया को बच्चो को बताया, नाट्य लेखन में शब्द को पकड़ना चाहिए, और शब्दो को पकड़ते हुये तथ्य परिदृश्य एवं चिंतन को नाट्य लेखन के माध्यम से व्यक्त कर सकते हैं,
नाट्य लेखन एक संवाद नही हैं, नाट्य लेखन में विभिन्न कलाओ का सामंजस कैसे हो ये समझ नाटकार को रखनी होती हैं,

इसी लेखन क्रम में गुज्जु गुज्जु कौन कोणा
की परिचर्चा हुई, डॉ अखिलेश ने बताया कि कोशी क्षेत्र में जो खेल बच्चे खेलते हैं उसी खेल को दूसरे रूपों में बड़े लोग भी खेलते हैं, बड़े जो खेल, लोग खेलते हैं, बच्चे अपनी भाषाओं में खेल के माध्यम से भावनाओ को व्यक्त करते हैं, गुज्जु गुज्जु कौन कोणा कोशी का अति प्राचीन खेल हैं ,
इस खेल को आकाशवाणी दिल्ली द्वारा डॉ अखिलेश कुमार जायसवाल के सीरियल कोशी क्षेत्र के लोक गीत में राष्ट्रीय प्रसारण हुआ था, साथ ही पूर्णिया आकशवाणी से प्रसारण हुआ हैं ,
उसी खेल गीत को नाटक के रूप में लिखा गया हैं, जिसमे चार कोणा
होता हैं, बीच के खिलाड़ी चोर होता हैं, क्यो की उसे कोई कोणा
नही मिलता हैं,हर व्यक्ति अपना अपना कोणा
चाहता हैं, और बदलता हैं, जिसे कोणा
नही मिलता हैं उसे गलत ठहरता हैं,मतलब जो अपनी जिंदगी में कुछ हासिल नही किया उसे लोग गलत भाव से देखते हैं, इसी खेल को बच्चे व्यंग रूप में बीच के खिलाड़ी को चोर बना कर बंगाल की खाड़ी में भेज देना चाहता हैं, त्तो दूसरी तरफ नाटकार ने उस बीच के खिलाड़ी के परिवार से जोड़ कर कोशी क्षेत्र के सामाजिक परिवेश को उजागर करने का प्रयास किया, इसलिए बाल सुधार के बच्चो को भी भविष्य में अपना जगह स्थापित करना चाहिए, जिससे समाज का भला हो और अपना भाल हो।

वही दूसरे सत्र में रेणु रंगमंच के सचिव सह वरिष्ठ रंगकर्मी श्री अजित कुमार सिंह “बप्पा” ने बच्चो को अभिनय, बॉडी लैंग्वेज , फेस एक्सप्रेशन के बारे में बताया कि नाटक में और आम जीवन में फेस एक्सप्रेशन का बहुत ही महत्व है , इसके जरिये हम एक दूसरे के भाव को समझने में आसानी होती हैं, एक गलत भाव से बहुत बड़ी घटना हो सकती हैं, आपका शरीर सोच पर निर्भर करता हैं, जैसा सोचेंगे वैसा ही शरीर होगा, मूक अभिनय में भी हम इन सब चीजों को रखने का प्रयास करते हैं, वँहा आवाज नही होती, वँहा शरीर होता हैं, शरीर ही बता देता हैं कि व्यक्ति क्या हैं। नाटक में भी हमे अपने भाव को नही भूलना हैं, दर्शको को आपके भाव ही बांध कर रख सकते हैं, और आप नाटक के माध्यम से जो सन्देश समाज को देना चाह रहे हैं, वो स्पष्ठ रूप से मालूम चलेगा,
वंही शाम की पाठशाला के श्री रंजन ने कहाँ की जल्द ही डिजिटल माध्यम से बाहर के कला विशेषज्ञयो द्वारा अलग अलग विषयों पर प्रशिक्षण दिया जायेगा,

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