बिहार: बारिश के दिनों में कालाजार रोग के प्रति ज्यादा सतर्क व सावधान रहने की है जरूरत

बारिश के दिनों में कालाजार रोग के प्रति ज्यादा सतर्क व सावधान रहने की है जरूरत

-जिले को पूर्णत: कालाजार मुक्त बनाने के लिये हर स्तर पर किये जा रहे हैं जरूरी प्रयास
-बीते कुछ सालों से कालाजार उन्मूलन के प्रयासों में उल्लेखनीय रही है जिले की उपलब्धि

अररिया

बारिश का मौसम आते ही जिले में कालाजार रोग खतरा बढ़ जाता है। अररिया पूर्व से ही कालाजार प्रभावित अति संवेदनशील जिलों की सूची में शामिल है। बावजूद इसके कालाजार उन्मूलन के प्रयासों में बीते कुछ सालों से जिले की प्रगति उल्लेखनीय रही है। वर्ष 2007 में जहां जिले में कालाजार के लगभग 04 हजार मामले थे। वहीं वर्ष 2021 में इसकी संख्या घट कर महज 24 थी। वर्ष 2022 में बीते मई माह तक जिले में कालाजार के 10 मामले मिले हैं। जिले के सभी 09 प्रखंड कालाजार प्रभावित प्रखंडों की सूची से बाहर आ चुके हैं। जिले के कालाजार प्रभावित सभी प्रखंडों में प्रति 10 हजार आबादी पर कालाजार के 01 से कम मामले आने पर एनवीबीडीसीपी भारत सरकार द्वारा कालाजार उन्मूलन का लक्ष्य प्राप्त कर चुके राज्य के 09 जिलों में अररिया का नाम भी शामिल है। इसे लेकर जिले को विशिष्ट सम्मान भी प्राप्त हो चुका है।

जिले को पूर्णत: कालाजार मुक्त बनाने का है लक्ष्य :
जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ अजय कुमार सिंह ने बताया कि जिले को पूर्णत: कालाजार मुक्त बनाना हमारा लक्ष्य है। जिले के सभी नौ प्रखंड कालाजार प्रभावित प्रखंडों की सूची से बाहर आ चुके हैं। इस स्थिति को लगातार बरकरार रखने की जरूरत है। लिहाजा आईआरएस, वीएल, व पीकेडीएल मरीजों की खोज व उपचार की प्रक्रिया जिले में निर्बाध रूप से जारी है। कालाजार रोगियों की सूचना देने पर ग्रामीण चिकित्सकों को प्रोत्साहन राशि के रूप में 200 रुपये का भुगतान किया जाता है। वहीं नये चिकित्सकों को मरीजों के उपचार को विशेष रूप से प्रशिक्षित किया गया है। जिले के सभी पीएचसी में कालाजार की के जांच व इलाज का समुचित इंतजाम है।
कालाजार उन्मूलन के प्रयासों में छिड़काव अभियान प्रभावी :
वीबीडीसीओ डॉ अजय कुमार सिंह ने कहा कि कालाजार उन्मूलन के प्रयासों में सिंथेटिक पायरोथायराइड यानि एसपी दवा का छिड़काव प्रभावी साबित हुआ है। हर साल अप्रैल व अक्टूबर माह सघन दवा छिड़काव अभियान संचालित किया जाता है। इस बीच कहीं कालाजार का मामला सामने आने पर तो पुन: उन इलाकों में छिड़काव कराया जाता है। फारबिसगंज के थैराबिकिया में वर्ष 2020 में एक साथ 18 मामले सामने आये। इसके बाद वहां महज तीन माह में 18 बार छिड़काव किया गया। दो साल बीत जाने के बाद भी थैराबकिया में कालाजार का कोई मामला नहीं आया है। वर्ष 2022 में संचालित अभियान के पहले चरण में जिले के चिह्नित 123 गांवों के 2.41 लाख घरों में दवा छिड़काव का लक्ष्य था। इसमें पलासी व रानीगंज प्रखंड में छिड़काव का कार्य अंतिम चरण में है। शेष अन्य प्रखंडों में छिड़काव का कार्य संपन्न हो चुका है।

मरीजों को सरकार द्वारा दी जाती है क्षतिपूर्ति राशि :

वीडीसीओ ललन कुमार ने जानकारी देते हुए कहा कि कालाजार के मरीजों को सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिये क्षतिपूर्ति के रूप में सरकार द्वारा 71 सौ रुपये उपलब्ध कराने का प्रावधान है। पीकेडीएल के मरीजों को पूर्ण इलाज के बाद चार हजार रुपये श्रम क्षतिपूर्ति के रूप में दिया जाता है।

रोग का लक्षण दिखते ही तुरंत करायें इलाज :

सिविल सर्जन डॉ विधानचंद्र सिंह के मुताबिक कालाजार बालू मक्खी के काटने से होता है। जो नमी व अंधेरे स्थानों पर ज्यादा तेजी से विकसित करता है। भूख की कमी, पेट का आकार बड़ा होना, शरीर का काला पड़ना कालाजार रोग के कुछ प्रमुख लक्षण है। उन्होंने कहा कि बुखार पीड़ित वैसे मरीज जिनका बुखार मलेरिया व अन्य एंटीबायोटिक दवा सेवन से दूर नहीं हो रहा हो। उन्हें तुरंत अपने नजदीकी अस्पताल में जाकर कालाजार की जांच करानी चाहिये।

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