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हिन्दी रंगमंच दिवस के अवसर पर पूर्णिया में पहली बार रेणु रंगमंच संस्थान पूर्णियाँ रंग संगोष्ठी का आयोजन मध्य विद्यालय उफरैल प्रांगण में अपराह्न 2बजे से किया गया। रंग संगोष्ठी की शुरुआत सुधांशू रंगमंच के सचिव श्री अमित कुँवर ने गणेश वंदना से किया एवं मध्य विद्यालय उफरैल स्कूल की बालिकायें नेहा, कल्पना, भावना, जुली ने स्वागत गान से सभा को उद्वेलित किया। तत्पश्चात पूर्णियाँ एवं बिहार के गणमान्य नाटककार, साहित्यकार , रंगकर्मी एवं अन्य उपस्थित विद्वतजन के द्वारा दीप प्रज्वलन कर रंग संगोष्ठी का उद्घाटन किया। कार्यक्रम के आगे कर्म में रेणु रंगमंच संस्थान के सचिव श्री अजीत सिंह बप्पा ने अथितियों का सादर सम्मानित करते हुए विषय प्रवेश करवाया एवं उपस्थित वक्ताओं ने अपने अपने विचार रखे। कार्यक्रम के उद्घाटन स्त्र का मंच संचालन कला भवन नाट्य विभाग के रंगकर्मी श्री अंजनी श्रीवास्तव ने किया वहीं रंग संगोष्ठी का संचालन वरिष्ठ रंगकर्मी श्री गोविंद कुमार ने किया। संगोष्ठी में सर्वप्रथम वरिष्ठ रंगकर्मी एवं भिखारी ठाकुर सम्मानित श्री मिथिलेश राय ने कहा कि वर्तमान समय में हिंदी रंगमंच को एक नए रूप में देखने की जरूरत है और इसके लिए आवश्यकता हो जाता है कि हम हिंदी के साहित्यकार नाटककार के रूप में अपना सहयोग प्रदान कर नए नए विषय अनुकूल नाटकों की उत्पत्ति करें, वही संस्कृत नाटकों से विशिष्ट रूप से जुड़े चंद्रशेखर मिश्र ने कहा कि संस्कृत नाटक के बाद हिंदी नाटक जिस तरह से सम्मिलित हुई है उसमें भारतेंदु हरिश्चंद्र और मोहन राकेश का योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। जरूरत है वैसे ही विषयों पर काम करने की जिस पर की कवि भारतेंदु हरिश्चंद्र ने पहले की थी जगदीश चंद्र माथुर के नाटकों पर शोध कर चुकी डॉ० उत्तिमा केसरी ने कहा हिंदी रंगमंच पर महिला रंग कर्मियों को विशेष रूप से सक्रिय होने की जरूरत है ताकि पुरुष और महिला दोनों ही समानांतर रूप से हिंदी रंगमंच का विकास कर सके। वही कवित्री मंजुला उपाध्याय ने कहा कि जीवन एक रंगमंच है और इस रंगमंच पर हर एक का अपना अपना किरदार है जीवन के इन किरदारों को देखने और समझने का एक सशक्त माध्यम है रंगमंच और हिंदी रंगमंच पर यह काम बखूबी किया जा रहा है जो इसके विकास के लिए सहायक है इसलिए हिंदी रंगमंच की दिशा बिल्कुल सही जा रही है।
वही कसम सांस्कृतिक मंच के सचिव एस० के० रोहिताश पप्पू ने कहा कि हिंदी रंगमंच पर हम लगातार काम कर रहे हैं और विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में भी और भी रंगमंच हो रहे हैं लेकिन वैश्विक समृद्धि के साथ जिस तरीके से हिंदी रंगमंच पर लोग तत्वों को सहेजने का काम किया जा रहा है वह अनेकता में एकता का संदेश देती भी नजर आती है जो अभी के लिए बहुत जरूरी है।
कवि गौरी शंकर ने कहा कि मुझे आज भी मौजूद लगता है कि फिल्म आनंद में बोले गए राजेश खन्ना के संवाद जिसमें कहा गया है कि जीवन एक रंगमंच है और हम सब इस की कठपुतलियां ना जाने कब कहां किस की डोर कट जाएगी कोई नहीं जानता लेकिन जब तक हम हैं तब तक जीवन के रंगमंच के साथ साथ हमें हिंदी के रंगमंच को भी सम्मिलित करने का काम जारी रखना चाहिए। वही डॉक्टर रामनरेश भक्तों ने कहा की हिंदी रंगमंच की समृद्धि के लिए हर संभव प्रयास किए गए हैं और आज भी मुझे भारतेंदु युगीन नाटक से लेकर वर्तमान पीढ़ी के नाटक के लिखे नाटक को पढ़ने में विशेष आनंद आता है और जब भी मंचन होता है तो वह आनंद और दुगुना हो जाता है। मुझे खुशी है कि मेरे लिखे हुए नाटकों का भी हिंदी रंगमंच पर मंचन किया गया है और मैं हिंदी रंगमंच के प्रति अपना योगदान दे पाया हूं। इसके अलावा समाजसेवी अरविंद कुमार सिंह जी ने अपने संबोधन में कहा की नाटक के क्षेत्र में जो भी हो सके तन मन धन से अपना पूरा सहयोग करेंगे। जिससे पूर्णिया रंगमंच और समृद्ध हो सके एवं साथ में रेणु रंगमंच संस्थान के सचिव श्री अजीत सिंह बसपा को इस कार्यक्रम के लिए तहे दिल से धन्यवाद दिया। वहीं अंत मे रंग संगोष्ठी का धन्यवाद ज्ञापन में अजीत सिंह बप्पा ने मध्य विद्यालय उफरैल, की प्रधानाध्यापिका राष्ट्रपति सम्मानित श्रीमती अर्चना जी का जिन्होंने रेणु रंगमंच संस्थान को अपने विद्यालय प्रांगण में यह संगोष्ठी करने का अवसर प्रदान किया। साथ ही वहां के शिक्षक एवं शिक्षकेतर कर्मचारियों का धन्यवाद किया। हिन्दी रंगमंच दिवस के अवसर पर उपस्थित गण्यमान्य विद्वतजन का धन्यवाद किया।
रंग संगोष्ठी में उपस्थित गणमान्य विद्वतजन मोहम्मद रहमान, गिरजनन्द मिश्र, चंद्रशेखर मिश्र, श्रीनिवास, सुमित प्रकाश, अनंत भारती,डेज़ी,मधुसी,रवि,सुधीर कुमार, अदिति राज, रंजीत तिवारी, सुमित प्रकाश,प्रियंक और मयंक ,शशि रंजन, अक्षय शर्मा, सियाराम, मयंक, दिनकर दीवाना, अमित कुमार नूतन कुमारी, जयदीप मयंक रॉनी, प्रवीण कुमार, छोटी सिंह,नूतन कुमारी, साक्षी कुमारी, सत्यजीत राज, मोनू, बादल,राजीव रंजन भर्ती, अमित आनंद , श्री शिव शंकर हालदार, एवं अन्य गणमान्य ने अपने अपने विचार रखे।