बिहार:श्रेष्ठ भारत एक भारत के सपने को साकार करता चार दिवसीय नाट्योत्सव

• श्रेष्ठ भारत एक भारत के सपने को साकार करता चार दिवसीय नाट्योत्सव
• प्यार के चक्कर में कैसे एक अच्छा युवा बन जाता है आंतकी, गलत निर्णय लेने पर कैसे भटक जाता है इंसान
• शादी के लिए रखी अनोखी शर्त, 100 लोगों के कान काटकर लाने को कहा

संवाददाता, पूर्णिया।

श्रेष्ठ भारत एक भारत के सपने को साकार करता चार दिवसीय नाट्योत्सव ने पूर्णिया की धरती को सांस्कृतिक विविधता की रंगो में सरोबार कर दिया है। प्रारंभ से ही दर्शकों की काफी भीड़ भी देखी जा रही है। पूर्वी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र कोलकाता एवं कलाभवन नाट्य विभाग के सहयोग से होने वाले इस चार दिवसीय नाट्योत्सव का भव्य समापन आज किया जाएगा।
कार्यक्रम की शुरुवात में सर्वप्रथम पश्चिम बंगाल के सभी कलाकारों का स्वागत कर उनके मस्तक पर तिलक लगाकर किया गया।
पूर्वी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र कोलकाता के डिप्टी डायरेक्टर डॉ तापस कुमार सामंत्रे ने
विभिन्न राज्यों इस नाट्योत्सव में आए सभी कलाकारों को धन्यवाद दिया और बिहार एवं पूर्णिया की धरती से अवगत कराते हुए बताया कि यही वह जिला है जहां प्रख्यात लेखक रचनाकार फणीश्वर नाथ रेणु का जन्म हुआ है। उनके रचना मारे गए गुलफाम पर राजकपूर साहब ने तीसरी कसम फिल्म भी इसी पूर्णिया जिला के गढ़बनैली एवं गुलाबबाग व पूरणदेवी आदि स्थानों में बनाया था। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि भारत का सबसे पहला जिला पूर्णिया ही है जिसकी आयु आज 252 वर्ष हो चुकी है। मिथिला की इस धरती पर कभी आदि गुरु शंकराचार्य भी शास्त्रार्थ के लिए आए थे और पराजित होकर उन्हें जाना पड़ा था। अज्ञातवास के दौरान पांडवों को भी पूर्णिया आना पड़ा था और यही से वे नेपाल की ओर गए थे। पूर्णिया की यह धरती बहुत ही पवित्र और पावन है। डॉ तापस ने यह भी जानकारी दी की कला सांस्कृति के लिए पहचानी जाती है।
कलाभवन नाट्य विभाग के सचिव सह कार्यक्रम कोर्डिनेटर विश्वजीत कुमार सिंह ने सभी पूर्णियावासियों की ओर से इस नाट्योत्सव में आए सभी कलाकारों को धन्यवाद देते हुए कहा कि इस प्रकार का आयोजन जनमानस के लिए प्रेरणादायक है जो कभी भाषा के नाम पर अथवा क्षेत्रवाद के नाम एक दूसरे से खुद को अलग समझते हैं उनके लिए यह बहुत प्रेरणादायक है कि हम सभी भारत के रहने वाले विभिन्न प्रांतो के भले ही है किंतु हम सब में मानवीय संवेदना है और हम सभी का अपनी संस्कृति और प्रकृति से बहुत ही प्रेम है। बिना भाषा के भी हम एक दूसरे को अपनी हाव-भाव से समझ और समझा सकते हैं यही हमारी संस्कृति है। हम सब दुसरे से जुड़कर भारत को सर्वश्रेष्ठ बना सकते हैं।
नाट्योत्स्व की पूरी व्यवस्था रंगकर्मी अंजनी कुमार श्रीवास्तव, विधि व्यवस्था में शिवाजी राम राव, राज रोशन, बादल झा, चंदन, अभिनव आनंद, मयूरी आदि कलाकार को भी डॉ तापस कुमार सामंत्रे ने धन्यवाद देते हुए कहा है इस महोत्सव में इन सबों का योगदान महत्वपूर्ण है।
पूर्वी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र कोलकाता के निदेशक गौरी बासु ने आज होने वाले के बारे में बताते हुए कहा कि नाटक की कहानी दो प्रेमियों की अनोखी कहानी है और इस नाटक का नाम है कनेक्शन जिसकी प्रस्तुति पश्चिम बंगाल के कलाकारों के द्वारा किया गया है। सभी कलाकारों एवं आयोजन सदस्यों को तीसरी दिन के बेहतर कार्यक्रम के लिए उनके द्वारा बधाई दी गई।

युवा प्रेमी की कहानी है कनेक्शन:-
शादी के लिए रखी अनोखी शर्त, 100 लोगों के कान काटकर लाने को कहा
साबुज और तितास, दो युवा प्रेमी। जहां साबुज का जीवन बेहद सामान्य है, वहीं तितास आर्थिक रूप से संपन्न परिवार की बेटी है। दोनों के बीच संबंध अभी तक साबुज की विचार पुस्तक में सबसे आगे नहीं आए हैं जहां तितास इस रिश्ते में एक विशिष्टता खोजने की कोशिश करता है। तो एक दिन साबुज को तितास की बात अपने पिता तक पहुंचानी है। तितास के पिता साबुज को वे शर्तें देते हैं जहां उसे समाज के किसी एक उच्च स्तर के लोगों के कानों में लाना पड़ता है। पैसे के बदले तितास के पिता के लिए 99 लोगों के कान काट दिए गए थे। अगर साबुज 100वां कान ला सकता है, तो रिश्ते को स्वीकार किया जाएगा। साबुज इसी की तलाश में निकल जाता है और एक दलाल बीबी इस अजीब यात्रा में उसकी साथी बन जाती है, इस उम्मीद में कि उसे कान लग जाए। एनजीओ से लेकर मीडिया तक, जहां भी ग्लैमर हाउस जाता है, साबुज और बीबी को तोहफे के रूप में केवल असफलता ही मिलती है। हालांकि, खोज जारी है और वे इस बार देश से बाहर एक प्रमुख उद्योगपति तक पहुंचते हैं, इस बार अंडरवर्ल्ड की सुबह। लेकिन किसी तरह कान नहीं लगा। संचार के साधनों की संख्या बढ़ने पर बीबी और साबुज अंततः राज्य के सर्वोच्च नायक तक पहुँच गए। वहां से उन्हें निराशा हाथ लगी। साबुज की सारी सादगी खर्चे की किताब में रह जाती है और वह खुद एक राजनीतिक शख्सियत बन जाता है। धोखे की सबसे बड़ी परीक्षा पास करके, वह अब आतंक का एक उच्च स्थापित व्यक्ति है। लेकिन तितास को यह आमूलचूल परिवर्तन पसंद नहीं है, वह अपना साबुज नहीं ढूंढ सकता। उनकी टूर फ्रेंड बनी बीबी वहां से चली गईं। आखिरकार उसने तितास के पिता के लिए अपना ही कान काट दिया। इस नाटक में अंजीत मजूमदार, सौर्य मदराजी, प्रसेनजीत भट्टाचार्य, देबाशीष दत्ता, कार्तिक बेरा, देबाशीष रॉय, रेशमा दास, मौली माजी, सुष्मिता साहा, देबंकना भट्टाचार्य, शुभ्रानिल भौमिक, बिक्रम सिंहा, सूरज दत्ता, इरशा डे, सानंदिता दास, आयुष बनर्जी, पियाली रॉय आदि ने अपनी बेहतर प्रदर्शन से दर्शकों का काफी मनोरंजन किए है। प्रोडक्शन में आईएफटीए (तथ्यात्मक थिएटर कला संस्थान), पटकथा-देबाशीष दत्ता, डायरेक्शन-कार्तिक बेर, सीनोग्राफी-देबाशीष दत्ता, प्रकाश-प्रोसेनजीत भट्टाचार्य, संगीत-तमाल मुखर्जी, सेट-अद्रीश रॉय आदि इस नाटक को तैयार करने में अपनी बेहतर भूमिक अदा की है।

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