बिहार:गाफिल की पंक्ति ‘पढ़ेगी रजिया, पढ़ेगा हरिया, साक्षर होगा जिला अररिया’ से सार्थक हुआ था साक्षरता अभियान

गाफिल की पंक्ति ‘पढ़ेगी रजिया, पढ़ेगा हरिया, साक्षर होगा जिला अररिया’ से सार्थक हुआ था साक्षरता अभियान

सुपुर्द-ए-खाक के लिए उमड़ा जन शैलाब

अररिया संवाददाता

5 मई 1965 को ननिहाल बसंतपुर ककुड़वा अररिया में जन्मे सीमांचल की शान मशहूर व मारूफ शायर,अधिवक्ता,पत्रकार व ऑल इंडिया रेडियो के उद्घोषक हारून रशीद गाफिल का देहांत 56 वर्ष की उम्र में रविवार की देर शाम अचानक दिल का दौड़ा पड़ने के कारण अररिया के निजी अस्पताल से पूर्णिया ले जाने के क्रम में हो गई। वह एक मशहूर शायर, वरिष्ठ पत्रकार, चर्चित वकील, बेहतरीन एनाउंसर, अच्छे समाज सेवी के साथ-साथ शानदार व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति थे। एक बेमिसाल वक्ता और क्षेत्रीय भाषाओं में सामाजिक मुद्दों पर आधारित कविताओं के माध्यम से वह पूरे देश भर में अपने गांव और जिला का नाम रोशन किया। जिसके लिए उन्हें कई बार विभिन्न संगठनों तथा प्रशासन द्वारा अवार्ड से सम्मानित भी किया गया। उन्हें अबरू-ए-सीमांचल, अलंकार शान-ए-अररिया’ पूर्णिया श्री, कवीर जैसे दर्जनों सम्मान व खिताब हासिल था। गाफिल ने 1980 में आंचलिक कुल्हैया शायरी की शुरुआत की थी।
1999 में साक्षरता अभियान गीत का आगाज कर पूरे सीमांचल में नाम कमाया और साक्षरता अभियान को जन-जन तक पहुंचाने के लिए और निरक्षरों को अक्षर ज्ञान की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए उनका नारा “पढ़ेगी रजिया, पढ़ेगा हरिया, साक्षर होगा जिला अररिया” बहुत प्रसिद्ध हुआ था। आंचलिक भाषा में ग़ाफ़िल कई शेरो शायरी तैयार कर जिले की समस्याओं को सामने ला चुके हैं। जिले भर में शानदार मंच उद्घोषक की भूमिका निभाने वाले हारून रशीद गाफिल रेडियो आकाशवाणी पूर्णिया में बतौर उद्घोषक भी थे। 6 दिसंबर 1992 को उनका पहला प्रसारण हुआ था। कहा भी जाता है कि जिंदगी के विरोधाभास से कविताओं का जन्म होता है। यही वजह है कि गैयारी के रहने वाले अवामी शायर हारून रशीद गाफिल की कविताओं में गांव की खुशी और गम एक साथ गूंजती है। सुदूर गांव में पले बढ़े गाफिल की कविताओं ने देश के सारे मुशायरा और कवि सम्मेलनों में जिले का नाम ऊंचा किया है। सामाजिक संघर्षों को उजागर करते हुए गाफिल की एक शेर सबसे अधिक चर्चित हुई थी। “जमीर बेचकर जिंदा रहूं ये नामुमकिन, मैं अपने आप से दगा करूं ये नामुमकिन, जमाना तुझको मसीहा कहे ये मुमकिन है, मगर मैं तुझको मसीहा कहूं ये नामुमकिन”
वह अररिया जिला बनने के बाद से ही मुख्य समारोह स्थल नेताजी सुभाष स्टेडियम में स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के मौके पर शानदार तरीके से मंच संचालन कर अपनी अदाकारी पेश करते रहे हैं। कुल्हैया जाति से ताल्लुक रखने वाले गाफिल सभी समुदाय में बहुत प्रचलित थे और निहायत ही सादा जीवन यापन करने वाले व्यक्ति थे। गाफिल साहब का इस दुनिया से जाना अररिया के साथ साथ पूरे बिहार वासियों के लिए अपूर्णीयक्षति है।उनके जनाजे की नमाज में करीब पंद्रह हजार से अधिक संख्या में लोग शरीक हुए थे। सोमवार दोपहर उनके पैतृक गांव गैयारी के कब्रिस्तान पर उन्हें हज़ारों नम आंखों के साथ सुपुर्द-ए-खाक किया गया। उनके असामयिक निधन से जिला पदाधिकारी, जिला पुलिस अधीक्षक, सांसद, विधायक, पत्रकार संघ, अधिवक्ता संघ, सैकड़ो नवनिर्वाचित जनप्रतिनिधियों और सामाजिक संगठनों ने गहरी शौक संवेदना व्यक्त किया है और सभो ने अल्लाह से दुआ की कि उन्हें जन्नतुल फिरदोस में जगह का मामला अता फरमाए, आमीन,,,, सुम्मा आमीन ।

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