लोक आस्था का पर्व चोराब्रत जो बिहार में सिर्फ पूर्णिया के कसबा नगर परिषद में ही आयोजित।
संवाददाता विक्रम कुमार
सूर्य पूजा पर आधारित लोक आस्था पर्व चोराव्रत मनोती पूर्ण होने पर ही किया जाता है। यह पर्व दीपावली के एक दिन बाद से मनाया जाता है। हर वर्ष किसी न किसी परिवार का मनोती पूर्ण होता है और फिर वे इस पर्व को करते है। कसबा नगर में हिन्दू धर्म में सबसे ज्यादा बनिया समाज के लोगों में चोराव्रत करने की एक परपंरा सी बनी हुई है। इस व्रत को करने की परपंरा भी अलग है। व्रत करने वाले मनोती पूर्ण होते ही घर पर व्रत करने की तैयारियां करीब एक वर्ष पूर्व से ही शुरू कर देते है। घर का रंगरोगन करते है। व्रत के एक सप्ताह पूर्व ही गंगा स्नान पूरे परिवार के सदस्यों द्वारा किया जाता है। यह पर्व दीपावली के अर्धरात्रि के समय खरना से शुरू होता है। अर्धरात्रि के समय व्रतधारी एक मिट्टी के चुल्हे में एक विशेष प्रकार का भोजन जो दूध चावल से खीर बनाया जाता है। उसी भोजन का सेवन उसी पहर में परिवार के सभी व्रतधारी द्वारा किया जाता है। अहले सुबह ग्यारह बजे से घर के आंगन में व्रत की पूजन विधि विधान प्रारंभ हो जाता है। परिवार के सभी व्रतधारी पुरूष का सर मुंडन नाई द्वारा कर दिया जाता है तथा नया वस्त्र जो उजला पैजामा एवं गंजी होता है पहनाया जाता है। इसके बाद सर पर पाट का रेशा को पीला रंग में रंग कर बाल कट कर जटा सादृश्य बांधा जाता है तथा शरीर पर चट्टी का बना पीला वस्त्र को पहनाया जाता है। हाथ में छूरी जिसके नोक पर सुपाड़ी गुत्था रहता है। अब ये व्रतधारी पूर्णरूपेण चोर हो जाता है। इन चोरों के सरदार एक मामा भी होता है। जो रिश्ते में मामा होते है। वहीं चोर के मामा बनते है। जिसके हाथों में एक लम्बी तलवार होती है। जो ये चोर भाजा भांजी की सुरक्षा में साथ रहते है। इसे चोरमामा कहते है। इन चोरों के साथ में कीर्तन मंडली भी शामिल रहते है जो सूर्य उपासना पर भक्ति गीत गाते हुए चोरमामा अपने चोर भांजा भांजी को अपने इष्ट मित्रों व स्वजनों के घर जाकर चोरी करते है। चोरी करने के क्रम में घर के महिला सदस्य उसके पांव पानी से धोते हुए एक चोर के माथे पर पाट का रेशा का कुछ अंस काट लेते है और बदले में चावल व दक्षिणा ( रुपया)देते है। इसी तरह यह व्रत दिनभर चलता रहता है। रात्रि समय भगवान सत्यनारायण की पूजा अर्चना की जाती है और फिर शनिवार की सुबह से लेकर दोपहर तक इस्ट मित्रों व स्वजनों के घर चोरी करने का यह कार्यक्रम चलता रहेगा। दोपहर बाद किसी नदी पोखर या तालाब में यह पर्व सम्पन्न हो जायेगा। कहा जाता है कि जिस घर में चोराव्रत का पर्व होता है उस परिवार के सदस्यों को तीन साल लगातार छठ पर्व करना जरूरी होता है।