गुरुकुल का फार्म देखकर अभिभूत हुए जूनागढ़ विश्वविद्यालय के डीन और कृषि वैज्ञानिक।
वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
आचार्य देवव्रत के प्राकृतिक कृषि मिशन को प्रकृति और मानवता के लिए वरदान बताया।
कुरुक्षेत्र, 20 नवम्बर : गुरुकुल कुरुक्षेत्र के प्राकृतिक कृषि फार्म का अवलोकन करने हेतु गुजरात की जूनागढ़ कृषि यूनिवर्सिटी के डीन कई प्रोफेसर और कृषि वैज्ञानिकों के साथ पहुंचे। गुरुकुल में पहुंचने पर व्यवस्थापक रामनिवास आर्य सहित प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक डाॅ. हरिओम ने सभी अतिथियों का जोरदार स्वागत किया और तत्पश्चात् सभी फार्म हेतु रवाना हुए। इस दल में यूनिवर्सिटी के डीन सवालिया शान्तिलाल गोर्वधन, प्रोफेसर वरंजलाल दयाभाई, देवसी शाम, पराग भाई, कृषि वैज्ञानिक सुरेश कुमार, प्रभुदयाल कुमावत, अमित मन्सुखभाई सहित कुल 30 लोग शामिल रहे। वहीं हिमाचल की हालोल यूनिवर्सिटी से डाॅ. वी. पी. उस्डाडिया, डाॅ. जी. एन. थाॅराट, एसिस्टेंट प्रोफेसर डाॅ. कोटाडिया, डाॅ. बीमानी और फार्म मैनेजर रवि पटेल आदि ने भी गुरुकुल फार्म का दौरा किया।
फार्म पर डाॅ. हरिओम ने सबसे पहले अतिथियों को सब्जियों की फसल में प्लास्टिक मल्चिंग और ड्रिप सिंचाई द्वारा खरपतवार प्रबंधन के लिए तैयार किया गया माॅडल दिखाया। उन्होंने बताया कि सब्जियों की फसलों के लिए यह माॅडल बेहद कारगर साबित होगा और इससे कृषि के क्षेत्र में नई क्रांति आएगी। उन्होंने बताया कि इस माॅडल से किसान बिना जुताई के बहुत कम खर्च और पानी से अलग-अलग कई फसल ले जाएंगे और उत्पादन भी अच्छा होगा। इस दौरान उन्होंने प्राकृतिक खेती संबंधित अनेक सवालों के संतोषजनक जवाब दिये।
व्यवस्थापक रामनिवास आर्य ने फार्म पर स्थित जीवामृत निर्माण संयंत्र के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि यह संयंत्र पूरी तरह से आटोमेटिक है और इसी के माध्यम से पूरे फार्म पर फसलों को जीवामृत दिया जाता है। फार्म पर ड्रेगन फ्रूट, सेब और केले के बाग अतिथियों के आकर्षण का केन्द्र रहे। डाॅ. हरिओम ने बताया कि यह करिश्मा आचार्य श्री देवव्रत के कुशल मार्गदर्शन और प्राकृतिक खेती से संभव हो पाया है। अतिथियों ने फार्म पर स्थित गन्ना और गन्ने से बनने वाले गुड़, शक्कर और देशी खाण्ड का भी स्वाद चखा। फार्म के अवलोकन के बाद सभी अतिथियों ने एक स्वर में प्राकृतिक खेती और आचार्य श्री देवव्रत के मिशन को किसानों तक पहुंचाने का आह्वान किया और माना कि प्राकृतिक खेती के माध्यम से ही आज प्रकृति और मानवता को बचाया जा सकता है।