श्रद्धेय आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या डॉक्टर साध्वी श्री पीयूष प्रभा जी के सान्निध्य में पर्युषण महापर्व की धर्म आराधना मेंअनेकानेक श्रद्धालु जन उपस्थित हो रहे हैं।
अररिया संवाददाता
फारबिसगंज (अररिया)
भारतीय संस्कृति पर्वो की संस्कृति है। कुछ पर्व लांकिक होते है, जो सामाजिक परंपराओं और मान्याताओं से सम्बद्ध होते है। जैसे दीपावली, होली, दशहरा एवं रक्षाबंधन इत्यादि। कुछ पर्व लोकोत्तर होते हैं ,जिनका उद्देश्य मनोरंजन न होकर आत्मरंजन होता है। ऐसा ही एक पर्व है ‘पयुर्षण पर्व’। इस पर्व को सम्पूर्ण जैन समाज त्याग, तप एवं स्वाध्याय के माध्यम से मनाता है। दिगम्बर परंपरा में यह पर्व दस लक्षण’ के रूप में विख्यात है जो पंचमी से प्रारंभ होकर चतुर्दशी को परिसम्पन होता है। श्वेताम्बर परंपरा में अष्टान्हिक (आठ दिवस) पर्व के रूप में बड़े ही उत्साह से मनाया जाता है। इसका मुख्य दिन है संवत्सरी वर्ष भर में होने वाला दिन। प्रारंभ में यह पर्व एक दिन में ही मनाया जाता था। एक स्थान पर अवस्थित रहकर पुर्युषण करते थे। उत्तरवर्ती आचार्यों ने पर्युषण में कुछ नया जोड़कर उसे महापर्व का रूप दिया। आठ दिन मनाये जाने वाले इस पर्व को पर्युषण शब्द से उपलक्षित किया जाता है। संवत्सरी उसका शिखर दिन है। जैन समाज के लिए महास्नान का पर्व है। अन्तःकरण की व्याधियो मनोकायिक बीमारियों की शुद्धि के लिए चिकित्सा पर्व है। भविष्य की प्रतिबद्धता के लिए सिद्धि पर्व है। यह पर्व आत्मा को निर्मल पावन एवं पवित्र बनाने का संदेश देता है। सामाजिक जीवन जीने वाले हर व्यक्ति के मन मे प्रियता-अप्रियता राग द्वेष के भाव उभरते है। कहीं ये घाव गहरे बनकर ग्रन्थि का रूप ले, इसलिए भविष्य में आने वाले अवरोधों को मिटाने के लिए इस दिन का चयन किया गया है।
गर्मी में स्नान तन में हल्कापन देता है।काया कल्प से यौवन की प्राप्ति होती है। प्रतिक्रमण से आत्म स्नान होता है। आत्मावलोकन का यह पर्व बाहग जगत की यात्रा से दूर अन्तर्जगत की यात्रा पर व्यक्ति को यात्रायित करता है। भौतिक चकाचौंध से मानव मन भ्रमित होता जा रहा है। अपनी आंतरिक शक्ति से परिचय करना ही नहीं, कठिनतर होता जा रहा है। ऐसी स्थिति में यह पर्व पदार्थ चेतना से दूर, आत्म चेतना को जागृत करने का अवसर देता है, भव्य जीवों को।
उठो जागो प्रतिक्रमण आराधना करके अपनी भूलों का परिमार्जन करें ।मन की गांठों को खोल अपने हृदय को सरल बनायें। ‘धम्मों सुद्धस्स चिट्ठइ’ शुद्ध आत्मा में धर्म ठहरता है -यह वीर प्रभु की वाणी है। अतःविषमता के पहाड़ों की ऋजुता की छैनी से काट कर मन को सरल बनाए। अहंकार का विसर्जन कर मन को निर्मल बनाये। यही इस पर्व आराधना की सार्थकता है। पयुर्षण पर्व के माध्यम से तपस्या, ध्यान, स्वाध्याय और संयम के द्वारा अष्टविध कर्मो का क्षीण करने की दिशा में व्यक्ति का पुरूषार्थ प्रकट होता है। हजारों हजारो भाई-बहन इस दिन उपवास एवं पौषध व्रत करते हैं। अनंत काल में कर्मों की जंजीरों में आबद्ध व्यक्ति अपने लिए मोक्ष का द्वार उद्घाटित करता है। अपने अन्तः करण में अहिंसा की भाव विकसित कर चौरासी लाख जीव योनि से खमत खामणा कर मैत्री का स्वर उद्घोषित करता है।
खामेमि सव्व जीवे,सव्वे जीवा खमंतु। मित्ती में सव्व भूएसु, वेरं मध्य न केणई खमत खामणा तनाव मुक्ति का अमोध उपाय है। शुद्ध हृदय से किया गया खमत खामणा टूटे बिखरे रिश्तों को जोड़ पुनः मिठास से भर देता है। पारिवारिक, सामाजिक, वातावरण सरसंता से सरस बन जाता है।