मध्य प्रदेश /रीवा/ RTI पर 35 वें राष्ट्रीय वेबीनार में धारा 4 के 17 बिंदुओं पर हुई चर्चा

मध्य प्रदेश /रीवा/ RTI पर 35 वें राष्ट्रीय वेबीनार में धारा 4 के 17 बिंदुओं पर हुई चर्चा// सूचना आयुक्त राहुल सिंह की अध्यक्षता में हुआ आयोजन, पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी और आत्मदीप रहे विशिष्ट अतिथि // रीवा कलेक्टर डॉक्टर इलैयाराजा टी के धारा 4 के 17 बिंदुओं पर कार्यवाही का हुआ जिक्र // राहुल सिंह की नोटिस के बाद जागा था प्रशासन।।*

ब्यूरो चीफ// राहुल कुशवाहा रीवा मध्य प्रदेश…8889284934

दिनांक 21 फरवरी 2021, स्थान रीवा मप्र

 सूचना के अधिकार कानून को जन जन तक पहुंचाने के लिए मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह की अध्यक्षता में प्रत्येक रविवार को सुबह 11:00 बजे से 1 बजे तक ज़ूम मीटिंग का आयोजन किया जाता है जिसमें देश के विभिन्न प्रदेशों मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, गुजरात, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर, नई दिल्ली, पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा आदि राज्यों से आरटीआई एक्टिविस्ट, सामाजिक कार्यकर्ता, सिविल राइट्स एक्टिविस्ट, आरटीआई यूजर एवं उत्सुक आवेदक कार्यक्रम में हिस्सा लेते हैं। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के तौर पर पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी, पूर्व राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप एवं माहिती अधिकार मंच मुंबई के संयोजक भास्कर प्रभु सम्मिलित रहते हैं। 

 कार्यक्रम का संयोजन प्रबंधन का कार्य एक्टिविस्ट शिवानंद द्विवेदी, अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा एवं छत्तीसगढ़ से देवेंद्र अग्रवाल और आरटीआई रिवॉल्यूशनरी ग्रुप और नेशनल आरटीआई ग्रुप के संयुक्त तत्वावधान में किया जाता है। 

आरटीआई की धारा 4(1)(बी) के 17 पॉइंट मैनुअल पर हुई चर्चा

कार्यक्रम में सूचना के अधिकार कानून जिसमें धारा 4 के तहत लोक प्राधिकारिओं की बाध्यताएं सम्मिलित रहती है जिसमें उन्हें समस्त जानकारी डिजिटल स्वरूप के साथ-साथ अन्य माध्यमों के द्वारा साझा की जानी चाहिए लेकिन क्योंकि यह जानकारी सर्वसुलभ नहीं रहती है इसलिए आवेदकों को समस्या का सामना करना पड़ता है और छोटी-छोटी बातों के लिए आरटीआई लगाना पड़ता है जबकि देखा जाए तो यह जानकारियां आवश्यक तौर पर आरटीआई कानून बनने के 120 दिन के भीतर सार्वजनिक की जानी चाहिए थी।

  कार्यक्रम में पूर्व राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने बताया कि आरटीआई की धारा 19(8)(ए)(6) के तहत सूचना आयोग को अपनी वार्षिक रिपोर्ट विधानसभा एवं लोकसभा को देना होता है। उन्होंने बताया कि जब वह सूचना आयुक्त बने थे तब 4 वर्ष से कोई वार्षिक प्रतिवेदन नहीं गया था जिसकी उन्होंने शुरुआत की थी। नीरज कुमार ने बताया की लीगल नोटिस जारी करने के लिए अच्छे सर्वसुलभ और सस्ते वकील नहीं मिलते हैं जिसकी वजह से जनहित के कार्य प्रभावित होते हैं। पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने कहा की जानकारी इलेक्ट्रिक फॉर्म में होनी चाहिए साथ में सिस्टमैटिक ढंग से होनी चाहिए। सरकारी कार्यालय कंप्यूटरीकृत हो जाए तो पेपरलेस ऑफिस बन जाए जिससे महाराष्ट्र के परिपेक्ष्य में 36 हज़ार पेड़ों को वार्षिक रूप से कटने से बचाया जा सकता है। श्री गांधी ने कहा कि जो रिकॉर्ड सरकारी अधिकारियों को दिखाई दे रहा है वह आम जनता को भी दिखाई देना चाहिए अर्थात लॉगिन पासवर्ड हटाया जाय और जानकारी वेबपोर्टल पर रखी जाय। 

 इस बीच अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा ने कहा कि जनहित याचिका लगाने और लीगल नोटिस सर्व करने के लिए वह कार्यकर्ताओं की मदद करेंगे। आत्मदीप द्वारा बताया गया कि अंजलि भारद्वाज के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका लगाने वाले वकीलों से संपर्क हो सकता है। याचिका लगाने के प्रश्न पर शैलेश गांधी ने बताया कि यदि आरटीआई किसी जिले से दायर की गई है और केंद्रीय सूचना आयोग के विरुद्ध याचिका लगाना है तो दिल्ली जाने की जरूरत नहीं है बल्कि उसी राज्य के हाई कोर्ट से याचिका लगाई जा सकती है। देवेंद्र अग्रवाल ने कहा कि उन्होंने लीगल नोटिस के फॉर्मेट को समझने का प्रयास किया है लेकिन वह कॉन्प्लिकेटेड है इसलिए शैलेश गांधी से मदद की अपील की। नित्यानंद मिश्रा ने पत्र याचिकाओं का हवाला देकर कहा कि यद्यपि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में पत्र याचिकाएं स्वीकार की जाती है लेकिन अपना पक्ष मजबूती से रखने के लिए आवश्यक है कि रिट पिटिशन ही दायर की जाए क्योंकि पत्र याचिका में कोर्ट उतना गंभीर नहीं रहता है और विभागीय प्रतिवेदन के आधार पर केस को समाप्त कर देता है।

  आत्मदीप ने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि वह 2014 में सूचना आयुक्त बने थे तब उन्होंने आयोग में 40 कर्मचारियों के पदों को स्वीकृत करने हेतु सरकार को लिखा था लेकिन पूरा मामला ब्यूरोक्रेसी और व्यापम घोटाले में इस प्रकार उलझा कि वह आज तक हल नहीं हो पाया है इसलिए सरकार से कर्मचारियों की अपेक्षा करना ठीक नहीं है। वहीं शैलेश गांधी ने कहा कि हमने अपनी पेमेंट से वॉलिंटियर्स ऑफर किए थे। कार्यक्रम में थोड़ा देरी से जुड़े मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा की काफी बातें आजकल व्यक्ति विशेष पर निर्भर करती है। जहां तक उनका सवाल है तो वह फेसबुक लाइव आदि माध्यमों से सुनवाई कर रहे हैं और शिकायतों को ट्विटर पर भी ले लेते हैं लेकिन सभी सूचना आयुक्तों का अपना नजरिया होता है। रीवा जिले में धारा 4(1)(बी) के 17 पॉइंट्स मैनुअल की चर्चा करते हुए राहुल सिंह ने कहा कि इस मामले में हमने लोक प्राधिकारी जिला रीवा कलेक्टर इलैयाराजा टी को जिम्मेदार ठहराया और उनके द्वारा अच्छा प्रयास किया जा रहा है। सभी विभागों की मीटिंग लेकर कलेक्टर ने निर्देश जारी कर दिए हैं। उन्होंने कहा कि हर जिले में यही व्यवस्था लागू होनी चाहिए लेकिन सबसे पहले आयोग रीवा संभाग में कार्य कर रहा है। आरटीआई कार्यकर्ताओं का जिक्र करते हुए राहुल सिंह ने कहा कि सभी को अपने अपने जिले और प्रदेशों में इसी प्रकार धारा 4 के 17 पॉइंट मैनुअल लागू करने के लिए कार्य करना चाहिए। 

  सूचना आयोग में मामलों का निपटारा किस समय अंतराल में और कितने समय में कितने मामले निपटने चाहिए इस बात पर आत्मदीप ने बताया कि इसका कोई समय सीमा और संख्या निर्धारित नहीं है। यह सूचना आयोग पर निर्भर करता है। इस बात पर शैलेश गांधी ने कहा कि हमने अपने समय में औसतन प्रति वर्ष 5 हज़ार प्रतिवर्ष मामले निराकृत किए हैं और अपने साढे 4 वर्ष के कार्यकाल में 20 हज़ार से अधिक मामले निपटाए हैं। जबकि यदि देखा जाए तो वर्तमान में एक सूचना आयुक्त ढाई हजार मामले निराकृत कर सकता है लेकिन स्थितियां नहीं सुधर रही है। राहुल सिंह ने कहा कि टाइम बाउंड मैनर में निराकरण किया जाना बहुत आवश्यक है और इसके लिए शैलेश गांधी के द्वारा बनाई गई लीगल नोटिस का सहारा लिया जा सकता है। आत्मदीप ने बताया कि पी पी तिवारी एक बेहतर सूचना आयुक्त थे और उनके लिखने के बाद सरकार को बात माननी पड़ती थी लेकिन उसके बाद स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। 

   छत्तीसगढ़ से आरटीआई एक्टिविस्ट देवेंद्र अग्रवाल ने बताया कि उन्होंने 4(1)(बी) के 17 पॉइंट मैनुअल को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार के विभिन्न कार्यालयों में आरटीआई आवेदन दायर किया था और जानकारी चाही थी कि क्या उन कार्यालयों में 17 पॉइंट मैनुअल का संधारण किया जा रहा है? इसके जवाब में जहां 38 कार्यालयों ने नकारात्मक जवाब दिया वही 11 कार्यालय ने उन्हें कोई जवाब ही नहीं दिया। जिससे समझा जा सकता है की आरटीआई कानून की धारा 4 की स्थिति क्या है। प्रयागराज उत्तर प्रदेश से अशोक जयसवाल ने प्रधानमंत्री कार्यालय में आरटीआई के विषय में चर्चा की और बताया कि धारा 6(3) के तहत 21 दिन के बाद आवेदन का अंतरण किया गया जबकि नियम 5 दिन के भीतर अंतरण किए जाने का है। इस पर शैलेश गांधी ने बताया की इस बात पर वह कुछ नहीं कह सकते क्योंकि सूचना आयोग की स्थितियां बहुत ही खराब है। तरुण ने बताया की प्रथम अपीलीय अधिकारी कोई कार्य नहीं करते हैं इसलिए इनका पद समाप्त किया जाना चाहिए इस पर राहुल सिंह ने कहा कि उन्होंने कई बार डेरेलीक्शन ऑफ ड्यूटी के मामले में प्रथम अपीलीय अधिकारी पर कार्यवाही की है।


    कार्यक्रम में देरी से जुड़े भास्कर प्रभु ने धारा 19(8)(ए)(6) के प्रावधानों पर चर्चा करते हुए कहा कि सूचना आयोग के पास हर एक कार्यालय से वार्षिक रिपोर्ट मंगाए जाने का प्रावधान होता है। यदि सूचना आयोग सभी कार्यालयों से धारा 4(1)(बी) के तहत वार्षिक रिपोर्ट मंगाएगा तो कार्यालय सही तरीके से कार्य करेंगे। इसलिए सभी कार्यकर्ताओं को सूचना आयोगों में आरटीआई आवेदन दायर कर वार्षिक रिपोर्ट की जानकारी मांगी जानी चाहिए। 

  अधिवक्ता अमित तिवारी ने बताया कि उन्होंने यूको बैंक में आरटीआई लगाया था लेकिन बोला गया कि लोक सूचना अधिकारी नहीं है इस पर राहुल सिंह ने बताया कि कोई भी राष्ट्रीयकृत बैंक में आरटीआई दायर की जा सकती है और जानकारी प्राप्त की जा सकती है। यूको बैंक जानकारी नहीं देता तो उसकी रेगुलेटरी बॉडी अर्थात आरबीआई के कार्यालय में आरटीआई लगाकर यूको बैंक से संबंधित जानकारी चाहिए जा सकती है। कई बार आपसी जानकारी बोलकर बैंक अपने ग्राहक की जानकारी देने से मना कर सकता है इसके लिए भी सचेत रहने की आवश्यकता है। इस प्रकार आरटीआई कानून से जुड़े हुए विभिन्न मामलों को लेकर उपस्थित पार्टिसिपेंट्स ने प्रश्न पूछे जिसका एक्सपोर्ट्स ने जवाब दिए। 

संलग्न – कृपया जूम मीटिंग में वेबीनार की तस्वीरें देखने का कष्ट करें।


*शिवानंद द्विवेदी सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता जिला रीवा मध्य प्रदेश

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