बिहार:अमर कथा शिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु की मनाई गई जयंती साहित्य में योगदान पर चर्चा

अमर कथा शिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु की मनाई गई जयंती साहित्य में योगदान पर चर्चा

नवगठित महाविद्यालय सांस्कृतिक समिति पूर्णिया कॉलेज पूर्णिया द्वारा कथा सम्राट फणीश्वर नाथ रेणु की 101 वी जयंती समारोह पूर्वक मनाई गई ।महाविद्यालय सांस्कृतिक समिति के अध्यक्ष और पूर्णिया कॉलेज के प्राचार्य डॉ मुहम्मद कमाल ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की ।मुख्य अतिथि हिंदी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ कुमार जितेंद्र थे और विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ प्रभात नारायण झा निदेशक आकाशवाणी पूर्णिया, डॉ रामनरेश भक्त एवं श्री चंद्रकांत राय थे ।दीप प्रज्वलन और पुष्पांजलि के पश्चात इस समारोह का शुभारंभ हुआ। कार्यक्रम की संयोजिका और मंच संचालन कर रही संस्कृत विभाग की प्राध्यापिका डॉ निरुपमा राय ने विषय प्रवेश कर रेनू जी के संक्षिप्त जीवन परिचय और रचनाओं पर चर्चा करते हुए आगत अतिथियों का स्वागत किया ।मुख्य अतिथि डॉ कुमार जीतेंद्र ने रेणु जी को कालजयी साहित्यकार बताते हुए उनसे जुड़े कई संस्मरण और रेणु जी के मैला आंचल और परति पलार नामक उपन्यासों पर विशेष चर्चा की। उन्होंने कहा अपने समय की परिस्थितियों का और देश काल का यथार्थ अंकन रेणु की विशेषता है । 1942 से 1950 ईस्वी के मध्य का पूर्णिया का सामाजिक चित्रण मैला आंचल को विश्व विख्यात उपन्यास की श्रेणी में रख देता है। वस्तुत: रेनू जी ने संपूर्ण अंचल को पात्रता प्रदान की। विशिष्ट अतिथि आकाशवाणी के निदेशक डॉ प्रभात नारायण झा ने कहा रेणु जब लिखते हैं तो उसमें पूर्णिया गाता है और जनजीवन स्पंदित होता है ।प्रेमचंद और रेणु की कहानियों का तुलनात्मक ब्यौरा प्रस्तुत करते हुए डॉ झा ने कहा कि रेणु के पात्र शोषण की व्यथा का उत्सव मनाते पात्र हैं जो विश्व साहित्य में दुर्लभ हैं। डॉ रामनरेश भक्त ने रेणु की रचना धर्मिता और प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला और उन्हें विश्व विख्यात साहित्यकार बताते हुए नमन किया। उन्होंने कहा कि रेणु भाव भाषा और शिल्प में प्रेमचंद से भिन्न है रेनू वस्तुतः शब्दों के जादूगर हैं क्रांति धर्मी महान शिल्पी साहित्यकार हैं।प्रसिद्ध कथाकार सॉरी नो पॉलिटिक्स कहानी संग्रह के रचयिता श्री चंद्रकांत राय ने रेणु की कहानियोंऔर उनकी रचना प्रक्रिया पर अपनी बात रखी और कहा की रेणु के उपन्यास विशुद्ध सामाजिक और आंचलिक उपन्यास है और जब भी कोई इस अंचल का कथाकार कुछ लिखता है तो उससे रेणु जैसी रचना कृति की अपेक्षा की जाती है। रेणु ने साहित्य में ऐसी लकीर खींच दी है, आज तक उससे कोई आगे नहीं बढ़ पाया है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पूर्णिया कॉलेज के प्राचार्य डॉ मुहम्मद कमाल ने विस्तार से रेणु के साहित्य के अनछुए पहलुओं पर ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा रेणु साहित्य एवं संस्कृति के जीवित इतिहास है ।कॉलेज की सांस्कृतिक समिति द्वारा पहली बार मनाया जा रहा यह कार्यक्रम ऐतिहासिक है। रेणु के साहित्य का मूल्यांकन करने के लिए यह समारोह छोटा सा है सपने देखने वाला है और धीरे-धीरे कोशिश करते हुए कदम आगे बढ़ाने वाला है ।समय को नायक बनाकर लिखी गई विशिष्ट कालजयी रचना करने वाले रेणु बड़े थे या उनकी रचनाएं बड़ी थी यह शोध का विषय है। आलोचना की दीवार को पार करने वाले साहित्यकार ही रेणु हो सकते हैं। आचार्य नलिन विलोचन शर्मा के कारण मैला आंचल विश्वविख्यात उपन्यास सिद्ध हुआ। वस्तुत पूर्णिया की पहचान रेणु जी से ही है। साहित्यकार गौरीशंकर पूर्वोत्तरी ने रेणु जी पर स्मारिका निकालने का सुझाव दिया ।भौतिकशास्त्र विभाग के प्रो डॉ उपेंद्र कुशवाहा ने कहा, विज्ञान में टाइम ट्रेवल की बात होती है जो हम साहित्यकारों की रचनाओं में आज भी देखते हैं रेनू जी के समय का सामाजिक परिदृश्य उनकी रचनाओं को पढ़ने से आज भी प्रत्यक्ष हो जाता है। यही साहित्य की विशेषता है। दर्शनशास्त्र की विभागाध्यक्ष डॉ अनीता महतो ने रेणुजी की सुंदर कविता का पाठ किया। डॉ निशा प्रकाश ने रेनू जी से जुड़े अपने परिवार के संस्मरण को साझा किया। उर्दू विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ मुजाहिद हुसैन ने रेणु जी को नमन करते हुए अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम में गोविंद जी डॉ रहमान श्री गिरजानंद मिश्रा कपिल देव कल्याणी डा उमेश उत्पल विश्वविद्यालय अर्थशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ रामदयाल पासवान डॉ इश्तियाक अहमद परीक्षा नियंत्रक डॉ मनोज सेन दर्शनशास्त्र विभाग की प्राध्यापिका अमृता सिंह बीबीए की प्राध्यापिका सुम्मी दत्ता भौतिकी विभाग की प्राध्यापिका डॉ अंजना झा अधिवक्ता श्रीमती किरण सिंह विश्वविद्यालय संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ गीता अग्रवाल श्रीमती विजयारानी पूर्व विभागाध्यक्ष दर्शनशास्त्र विभाग, के साथ-साथ पूर्णिया कॉलेज पूर्णिया के शिक्षक, शिक्षकेतर कर्मचारी और छात्रों की उपस्थिति रही। संस्कृत विभाग के छात्र संदीप मनोरंजन और पप्पू का योगदान बेहद सराहनीय था। धन्यवाद ज्ञापन संस्कृत विभाग की डॉ मिताली मीनू ने किया।

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