दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा सप्त दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा, हवन यज्ञ के साथ हुई संपन्न-स्वामी धीरानंद

दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा सप्त दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा, हवन यज्ञ के साथ हुई संपन्न-स्वामी धीरानंद

फिरोजपुर 10 अप्रैल [कैलाश शर्मा जिला विशेष संवाददाता]:=

दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के द्वारा कैंट रोड़ नज़दीक टीवी टॉवर पर चल रही सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा  हवन यज्ञ के साथ संपन्न हुई। जिसके विधिवत पूजन में एडवोकेट भरत राजदेव,मास्टर रोशन लाल भुसरी,पार्षद पूरन चन्द जसूजा, प्रमुख समाजसेवी कोटकपूरा दविंदर नीटू और बाबू लाल अरोड़ा ने परिवार सहित हिस्सा लिया। संस्थान की ओर से विशेष रूप से पधारे शास्त्री प्रजापत्यानन्द जी के द्वारा वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ यज्ञ में आहुतियां डालकर सर्व मंगल की कामना की गई। इस अवसर पर साध्वी अंबालिका भारती जी ने कहा कि हवन पद्धति भारत की सबसे प्राचीन पद्धति है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम में विश्व के 20 महानगरों में वायु प्रदूषण की स्थिति का गहन अध्ययन किया गया। चेतावनी स्वरूप उन्होंने जो कहा हमारे लिए खतरे की घंटी से कम नहीं है। यदि प्रदूषण इसी गति से बढ़ता रहा, वह दिन दूर नहीं जब हमारे शहर गैस चैंबर जैसे यातना शिविरों में परिवर्तित हो जाएंगे। ओर तो ओर प्रदूषण की महामारी के विस्तार के कारण गांव कस्बे भी रहने लायक नहीं रहेंगे। विस्तारित होती इस महामारी में के कुछ परिणाम तो हमें आज भी स्पष्ट दिखाई दे ही रहे हैं। आज की बहती वायु कीटाणुओं और विषैली गैसों की वाहक बन चुकी है। हरे- भरे प्रदेश रेगिस्तान में परिवर्तित होते जा रहे हैं।
साध्वी जी ने कहा कि वैदिक काल का वातावरण प्रदूषण मुक्त था। ऐसा नहीं है कि उस समय कोई उद्योग नहीं थे अविष्कार, खोजें एवं परीक्षण नहीं हुआ करते थे। सब कुछ होते हुए भी वातावरण प्रदूषित नहीं था। इस पर्यावरणीय शुद्धता एवं शुभता के पीछे एक ही रहस्य था, ऋषि गणों  की अभूतपूर्व वैज्ञानिक दृष्टि। वे वातावरण  संरक्षण के प्रति बेहद जागरूक थे। उन्होंने वातावरण के को प्रदूषित होने से बचाने के लिए अनेक प्रयोगात्मक पद्धतियों का भी अविष्कार किया था। इसमें से सबसे प्रभावी और सर्वोत्तम पद्धति थी  यज्ञ  पद्धति। पर्यावरण प्रदूषण के निराकरण का सर्वोत्तम साधन यज्ञ है, यह सब अशुद्धियों, दोषों या प्रदूषण को दूर कर के वातावरण को पवित्र बनाता है। यज्ञ में प्रयोग होने वाले द्रव्य जैसे समिधा, सामग्री एवम् घी इत्यादि वातावरण को शुद्ध करने में सहायक होते हैं। जैसे की देसी गाय का घी जलाने से कोसों  दूर के कीटाणु मर जाते हैं। जिससे मानव अनेक प्रकार की बीमारियों से बच जाता है। आज पाश्चात्य जगत के वैज्ञानिक भी हमारे प्राचीन  ऋषि गणों  के इस पर्यावरण विज्ञान को मानने लगे हैं और उनमुक्त कंठ से सराह रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमने यज्ञ पद्धति का परीक्षण करके देखा और पाया है कि भारतीयों के हाथ में यह एक आश्चर्यजनक शस्त्र है। इसलिए हमें भी वातावरण को शुद्ध करने के लिए यज्ञ का आयोजन करते रहना चाहिए। सभी यजमानों के द्वारा हवन यज्ञ के अंदर आहुतियां डाली गई। कथा व्यास भागवत भास्कर साध्वी सुश्री भाग्यश्री भारती जी ने यज्ञ में पूर्णाहुति दी। हवन यज्ञ संपूर्ण होने पर सभी प्रभु प्रेमियों ने मिलकर मंगल आरती का गायन किया गया। पावन आरती में स्वामी धीरानन्द,साध्वी सोमप्रभा भारती ,साध्वी वन्दना भारती, साध्वी शुभानंदा भारती,साध्वी सदया भारती, साध्वी ईशदीपा भारती,साध्वी दीक्षा भारती विशेष रूप से उपस्थित रहे। सभी श्रद्धालुओं के लिए लंगर का प्रबंध भी किया गया।गौरव सपड़ा,संदीप खुराना, राकेश कामरा, बलदेव सिंह, राजकुमार ठाकुर, गुरजीत सिंह,बलदेव सिंह,शाम सिंह, अशोक नारंग, दविंदर सिंह, मास्टर गुरदीप,सुमित कुमार, असीम ग्रोवर,सुभाष वर्मा, शिवा ने अपनी सेवाएं प्रदान कर प्रभु का आर्शीवाद प्राप्त किया।

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